बच्चों के लिए कितना बुरा रहा पिछला साल
२२ जून २०२१संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2,674 बच्चे दुनियाभर में चल रहे विभिन्न विवादों में मारे गए. दुनियाभर में जारी हिंसक विवादों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेश की सुरक्षा परिषद को दी गई इस रिपोर्ट में बच्चों के मारे जाने, घायल हो जाने और विद्रोही गुटों में भर्ती करने के लिए अगवा कर लेने जैसी घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में जारी 21 हिंसक विवादों के दौरान 19,379 में बच्चों के खिलाफ हिंसा हुई. इनमें से 14,097 लड़के थे और 4,993 लड़कियां. 289 बच्चों के लिंग की जानकारी नहीं है. सबसे ज्यादा घटनाएं बच्चों को सैनिक के तौर पर भर्ती करने की हुईं. 8,521 बच्चों को सैनिक के तौर पर भर्ती किया गया. 2,674 बच्चों की जान चली गई और 5,748 बच्चे घायल हुए. बच्चों के खिलाफ पिछले साल सबसे ज्यादा हिंसा सोमालिया, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, अफगानिस्तान, सीरिया और यमन में हुई.
बच्चों के अपहरण के मामले 90 प्रतिशत बढ़े जबकि यौन उत्पीड़न के 70 फीसदी. अस्पतालों पर हमलों में कमी आई, लेकिन स्कूलों पर हमले बढ़े. खासकर साहेल और चाड में स्कूलों पर हमलों में बहुत बढ़त देखी गई. सैनिक के तौर पर भर्ती किए गए 85 फीसदी बच्चे लड़के थे, जबकि यौन हिंसा का शिकार बच्चों में से 98 प्रतिशत लड़कियां थीं.
भारत की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले साल दो बच्चों के सैनिक के तौर पर भर्ती किए जाने की पुष्टि हुई है. इसके अलावा भारतीय सेना द्वारा तीन बच्चों को 24 घंटे से कम समय के लिए इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट भी है, जिसकी समीक्षा की जा रही है.
सेना ने जम्मू और कश्मीर में चार बच्चों को हथियारबंद समूहों से संपर्क होने के आरोपों में हिरासत में रखा. 9 बच्चों की पेलेट गन से हमले या अन्य वजहों से मौत हुई, जबकि 30 स्थायी रूप से विकलांग हो गए. भारतीय सेना ने चार महीने तक सात स्कूलों का इस्तेमाल किया और उन्हें साल के आखिरी हफ्तों में खाली किया गया.
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंटोनियो गुटेरेश ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, "मैं जम्मू-कश्मीर में बच्चों के खिलाफ हो रही हिंसा को लेकर चिंतित हूं और सरकार से जरूरी कदम उठाने का आग्रह करता हूं. बच्चों की सुरक्षा के लिए पेलेट्स का इस्तेमाल बंद करना और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चे किसी तरह सेना से न जोड़े जाएं." गुटेरेश ने बच्चों को यातनाएं दिए जाने और सेना द्वारा स्कूलों का इस्तेमाल किए जाने को लेकर भी चिंता जताई है.
ब्लैकलिस्ट
इस रिपोर्ट में एक ब्लैकलिस्ट भी बनाई गई है जहां कुछ पक्षों के नाम जानबूझकर उजागर किए गए हैं ताकि वे बच्चों को बचाने की दिशा में कुछ कदम उठाएं. इस सूची पर काफी समय से विवाद रहा है क्योंकि कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि सऊदी अरब और इस्राएल दोनों ने हाल के सालों में इस सूची के बाहर रहने के लिए खासा दबाव बनाया है.
इस्राएल को इस सूची में कभी नहीं रखा गया है, जबकि सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन को 2020 में सूची से हटा दिया गया. इससे पहले यह संगठन कई साल तक सूची में रहा था और उन्हें यमन में बच्चों के कत्ल का आरोपी बताया गया था.
2017 में जो सूची जारी की गई थी, उस पर भी काफी विवाद हो गया था क्योंकि उसे दो हिस्सों में बांट दिया गया था. एक हिस्से में वे नाम थे, जिन्होंने बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ कदम उठाए हैं. दूसरे हिस्से में कोई कदम न उठाने वाले पक्षों को शामिल किया गया था.
21 जून को जो सूची जारी की गई, उसमें कई बड़े बदलाव देखने को मिले. इस बार सिर्फ दो देश है जिसका नाम बच्चों की सुरक्षा के लिए कदम न उठाने वाली सूची में रखा गया है. म्यांमार की सेना को बच्चों की हत्या, विकलांगता और यौन उत्पीड़न का जिम्मेदार बताया गया है. जबकी सीरिया की सरकारी फौजों को बच्चों की भर्ती, हत्या, यौन उत्पीड़न और स्कूलों व अस्पतालों पर हमलों का जिम्मेदार कहा गया है.
वीके/एए (एपी, एएफपी)