प्लास्टिक के खात्मे की दिशा में ऐतिहासिक पल
२ मार्च २०२२संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण सभा (यूएनईए) बुधवार से नैरोबी में बातचीत शुरू करेगी कि कैसे प्लास्टिक के कचरे के संकट से पृथ्वी को निजात दिलाई जाए. इस बातचीत का मकसद 2024 तक एक समझौता का मसौदा तैयार करना है, जो सभी देशों द्वारा कानूनन मान्य हो.
एक अनुमान के मुताबिक 2024 तक महासागरों में प्लास्टिक का कचरा तीन गुना हो जाएगा. इस खतरे के कारण ही विभिन्न देशों पर दबाव है कि एकजुट हों और साझा हल निकालें. सूत्रों के मुताबिक वैश्विक प्लास्टिक समझौते का एक समग्र समझौते का फ्रेमवर्क तैयार हो चुका है, जिसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने मंजूरी भी दे दी है. इनमें अमेरिका और चीन जैसे प्लास्टिक के सबसे बड़े उत्पादक भी शामिल हैं.
मसौदे को अंतिम रूप
मसौदे का शीर्षक ‘प्लास्टिक प्रदूषण का खात्माः कानूनी रूप से बाध्य एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज की ओर' रखा गया है. इस प्रस्ताव की भाषा को तकनीकी विशेषज्ञों ने तैयार किया है. बीते हफ्ते तक रातों को देर-देर तक जागकर इस पर काम करने के बाद सोमवार को ही इसे अंतिम रूप दिया गया.
प्रस्तावित मसौदे पर दस्तखत करने वाले पेरू के विदेश मंत्रालय में पर्यावरण निदेशक आना टेरेसा लेसारस कहती हैं, "इस परिणाम से हम सौ प्रतिशत खुश हैं."
यूएन की पर्यावरण एजेंसी यूएनईपी की प्रमुख इंगर ऐंडरसन कहती हैं कि पेरिस जलवायु समझौते के बाद प्लास्टिक समझौता हमारे ग्रह के लिए सबसे अहम समझौता होगा और इसे ‘इतिहास की किताबों में जगह मिलेगी'. ऐंडरसन कहती हैं, "मुझे पूरा भरोसा है कि महासभा द्वारा पारित होने के बाद हमारे हाथों में एक ऐतिहासिक दस्तावेज होगा."
कचरे के ढेर से पेट्रोल, डीजल बनाता जाम्बिया
अधिकारी कहते हैं कि विभिन्न देशों द्वारा मिली यह मंजूरी वार्ताकारों के हाथ काफी मजबूत कर देती है कि वे ऐसे कड़े नियम बनाएं जिनसे प्लास्टिक प्रदूषण को कच्चे माल की तैयारी से लेकर ग्राहक के पास पहुंचकर इस्तेमाल होने तक हर चरण में कम किया जा सके.
कैसे हों नियम
नए नियमों में तेल और गैस से प्लास्टिक के निर्माण में कटौती जैसे सख्त कदम शामिल हो सकते हैं. हालांकि अंतिम फैसला बातचीत के बाद ही होगा. इस बातचीत में दुनियाभर के लिए ऐसे लक्ष्य तय किए जा सकते हैं जिन पर कानूनन बाध्यता हो. साथ ही गरीब देशों को वित्तीय मदद के लिए राष्ट्रीय योजनाओं के विकास और प्रक्रियाओं पर भी चर्चा हो सकती है.
वार्ताकार प्रदूषण के विभिन्न रूपों पर भी चर्चा कर सकते हैं. यानी बातचीत में सिर्फ महासागरों का प्रदूषण ही नहीं बल्कि हवा, मिट्टी और खाने-पीने में प्लास्टिक के बारीक कणों का मिल जाना भी शामिल हो सकता है, जो कई देशों की मुख्य मांग है.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि प्लास्टिक के उत्पादन की दर अन्य किसी भी पदार्थ से ज्यादा तेजी से बढ़ी है और दो दशक में इसके दोगुना हो जाने की संभावना है. लेकिन दस प्रतिशत प्लास्टिक की रीसाइकल हो पाता है और ज्यादातर धरती पर कचरे के ढेरों या महासागरों में जा गिरता है.समंदर के हर हिस्से में दाखिल हो चुका है प्लास्टिक, 88% प्रजातियां प्रभावित
कुछ अनुमान बताते हैं कि हर मिनट एक भरे ट्रक जितना प्लास्टिक समुद्र में फेंका जा रहा है. यूएनईए के प्रमुख और नॉर्वे के पर्यावरण मंत्री एस्पेन बार्थ आइडे कहते हैं, "प्लास्टिक प्रदूषण अब प्लास्टिक महामारी में बदल चुका है." हालांकि, आइडे को काफी उम्मीद है कि नैरोबी में कुछ सख्त नियम बन पाएंगे.
पर्यावरण समूह भी नैरोबी के नतीजों पर निगाह गड़ाए हुए हैं, लेकिन वे आगाह करते हैं कि किसी भी समझौते की मजबूती तब तय होती है जब उसकी शर्तों पर मोलभाव शुरू होगा. बड़ी कंपनियों ने भी ऐसे एक समझौते के लिए अपना समर्थन जताया है जिसमें सभी के लिए एक जैसे नियम हों और सभी बराबरी पर काम सकें. ये कॉरपोरेशन निर्माण, दवाओं और समंदर के हर हिस्से में दाखिल हो चुका है प्लास्टिक, 88% प्रजातियां प्रभावितअन्य उद्योगों में प्लास्टिक की अहमियत पर भी जोर देते हैं और चेताते हैं कि इस पदार्थ पर प्रतिबंध सप्लाई में बड़ी बाधाएं पैदा कर सकता है.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एपी)