1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

एसपीआर से तेल निकालने को मजबूर अमेरिका

२३ नवम्बर २०२१

तेल की कीमतों ने अमेरिकी राष्ट्रपति को परेशान कर दिया है. ओपेक देश उनकी बात मान नहीं रहे तो उन्होंने भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से साथ आने का आग्रह किया है.

https://p.dw.com/p/43M4i
तस्वीर: Imago/Bluegreen Pictures

उत्पादन बढ़ाने के लिए तेल उत्पादक देशों पर अमेरिका का दबाव लगभग बेकार गया है. अब वह भारत और जापान आदि देशों से अपनी बचत से तेल निकालने को कह रहा है. लेकिन इस पूरे वाकये से यह सबक भी मिला है कि तेल उत्पादक देश चाहें भी तो ज्यादा तेल उत्पादन नहीं कर सकते.

ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) और उसके सहयोगी देशों ने 2020 में जो पाबंदियां सप्लाई पर लगाई थीं, वे हटाना शुरू तो किया है लेकिन उसकी रफ्तार उतनी नहीं है जितनी अमेरिका चाहता है. इसलिए कीमतें तीन साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैं.

रूस को मिलाकर बने ओपेक प्लस देशों ने उत्पादन बढ़ाने के अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है. वह रोजाना चार लाख बैरल उत्पादन बढ़ाने की अपनी योजना पर कायम हैं. उनका कहना है कि अगर इससे ज्यादा तेजी से उत्पादन बढ़ाया गया तो 2022 में कीमतें बहुत ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं.

रिजर्व में हाथ डालेगा अमेरिका

ऐसी संभावनाएं जताई जा रही हैं कि ऊर्जा कीमतों को कम करने के लिए अमेरिका ने एशियाई देशों के साथ मिलकर अपने आपातकालीन स्टॉक में से कर्ज पर तेल देने की योजना बनाई है जिसका ऐलान मंगलवार को हो सकता है.

अमेरिका में गैसोलीन और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बहुत ज्यादा बढ़ने से राष्ट्रपति जो बाइडेन की लोकप्रियता को खासा धक्का पहुंचा है. इसका असर अगले साल होने वाले कांग्रेस चुनावों में उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है.

इसलिए उनके पास फिलहाल आपातकालीन स्टॉक में से तेल निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. इस आपातकालानी स्टॉक (स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व, एसपीआर) के लिए भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ मिलकर अदला-बदली की योजना बना गई है.

कैसे होती है अदला-बदली

जो बाइडेन ने एशियाई देशों से भी आग्रह किया है कि अपने अपने एसपीआर में से तेल निकालें. भारत और जापान ऐसा करने के रास्ते खोजने में लग गए हैं. एशियाई देशों के साथ मिलकर अमेरिका की यह कोशिश तेल की कीमतें करने के अलावा तेल उत्पादक देशों के लिए एक तरह की चेतावनी भी है कि उन्हें बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कीमतें बढ़ने से रोकने के लिए अतिरिक्त उत्पादन करना चाहिए. ओपेक देश और रूस दो दिसंबर को उत्पादन नीति पर चर्चा के लिए मिलने वाले हैं.

तस्वीरों मेंः जीवाश्म ईंधनों का काला सच

अब तक अमेरिका पेरिस स्थित इंटरनेशनल ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के साथ मिलकर तेल का उत्पादन और कीमतें स्थिर करने के लिए काम करता रहा है. जापान और दक्षिण कोरिया दोनों 30 सदस्यों वाली आईईए का हिस्सा हैं जबकि चीन और भारत सहयोगी देश हैं.

एसपीआर की अदला-बदली के तहत तेल कंपनियां भंडारों से तेल ले सकती हैं, लेकिन उन्हें वह तेल ब्याज लौटाना होता है. अमेरिका ने अब तक तीन बार ही एसपीआर से तेल निकालने की इजाजत दी है. 2011 में लीबिया में युद्ध के वक्त, 2005 में कटरीना तूफान के दौरान और 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान ऐसा किया गया था.

क्या है एसपीआर?

स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व यानी एसपीआर ऐसे तेल भंडार होते हैं जिन्हें विभिन्न देश आपातकाल में इस्तेमाल के लिए रखते हैं. अमेरिका के पास दुनिया के सबसे बड़े एसपीआर हैं जिनके तहत लुईजियाना और टेक्सस में 71.4 करोड़ बैरल तेल रखा जा सकता है. 1975 के तेल संकट के बाद अमेरिका ने ये भंडार बनाए थे. 4 सितंबर तक इन भंडारों में अमेरिका के पास 62.13 करोड़ बैरल तेल था.

लोहारों और ग्वालों के भी काम आ रही है सोलर एनर्जी

दुनिया के सबसे बड़े आपातकालीन तेल भंडार रखने वाले देशों में वेनेजुएला, सऊदी अरब, कनाडा, ईरान, इराक, रूस, कुवैत, यूएई, लीबिया, नाइजीरिया, कजाखस्तान, कतर, चीन, अंगोला, अल्जीरिया और ब्राजील शामिल हैं.

भारत के पास मात्र 3.69 करोड़ बैरल तेल आपातकालीन भंडारों में रखा है, जो साढ़े नौ दिन का काम चला सकता है. लेकिन उसके तेल शोधक कारखानों में भी 64.5 दिन के लायक कच्चा तेल रखा जाता है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी