"कौमार्य परीक्षण किसी भी हाल में ना हो"
४ सितम्बर २०२०अफगानिस्तान में अब तक कुछ शर्तों के साथ महिलाओं की वर्जिनिटी टेस्ट करने के आदेश दिए जा सकते हैं. "नैतिक अपराधों” के दायरे में आने वाले मामलों जैसे-कोई महिला या लड़की घर से भाग गई हो या फिर उस पर शादी से पहले सेक्स करने का आरोप हो, तो देश के कानून में व्यवस्था है कि किसी महिला का या तो अपनी मर्जी से या फिर किसी अदालत के आदेश से कौमार्य परीक्षण किया जा सकता है. बेहद पिछड़े, पुरुषवादी और संकीर्ण सोच वाले अफगान समाज में इस पर रोक लगवाने के लिए अभियान चलाने वाले लोगों का कहना है कि ज्यादातर मामलों में महिलाओं की मर्जी के खिलाफ ऐसा किया जाता है और टेस्ट में बिल्कुल सहयोग ना करने पर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है.
अब देश के मानव अधिकार आयोग के एक पैनल ने अपने सुझाव पेश करते हुए कहा है कि कौमार्य परीक्षण पर "बिना किसी शर्त प्रतिबंध" लगाया जाना चाहिए. उन्होंने पाया कि एक तो ऐसे परीक्षणों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता क्योंकि कौमार्य परखने के लिए गुप्तांग की जिस हाइमेन झिल्ली को आधार बनाया जाता है, वह सेक्स में इंटरकोर्स के अलावा भी कई कारणों से टूटती या लचीली हो सकती है. दूसरे, पैनल ने साफ कहा कि एक इंसान होने के नाते यह किसी भी महिला के मूलभूत अधिकारों का हनन होता है.
महिला की सहमति का मामला
एक दिन पहले ही अफगानिस्तान की एक सरकारी समिति ने एक कानून के मसौदे को स्वीकार किया है जिसमें वर्जिनिटी टेस्ट के लिए महिला की मर्जी लेना अनिवार्य होगा. इसे कानून बनाने के लिए पहले संसद और राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी. संसद 21 सितंबर तक ग्रीष्मकालीन अवकाश पर है. अब तक अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी सत्ता में रहते हुए कौमार्य परीक्षण को प्रोत्साहन नहीं दिया है लेकिन उसे पूरी तरह बैन भी नहीं किया है.
इस स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के पास इस पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है और पहले भी कई बार उनके दिए सुझावों को अमल में नहीं लाया गया है. इसकी प्रमुख शहरजाद अकबर ने बताया, "मुझे बहुत ज्यादा उम्मीद तो नहीं है कि इस पर पूरी तरह और बिना शर्त प्रतिबंध लग जाएगा…लेकिन हम इसकी कोशिश करते रहेंगे."
वर्जिनिटी टेस्ट पर अंतरराष्ट्रीय रवैया
वर्जिनिटी टेस्ट को संयुक्त राष्ट्र "दर्दनाक, अपमानजनक और सदमा पहुंचाने वाला" करार दे चुका है और इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए जाने की मांग कर चुका है. लेकिन भारत समेत अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी लड़कियों और महिलाओं के साथ ऐसा होता है. पैनल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि चूंकि अफगानिस्तान जैसे देश में केवल महिलाओं के ही कौमार्य को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है, इसीलिए इसे साबित करने के लिए ऐसी "कठोर" परीक्षा लेने से परहेज नहीं किया जाता, जिसका किसी महिला की गरिमा, भावनात्मक स्थिति और सामाजिक रूतबे पर गहरा आघात लगता है.
अफगानिस्तान की राजधानी में स्थित काबुल यूनिवर्सिटी में लेक्चरर शबनम सालेही कहती हैं, "भले ही कोर्ट इसका आदेश दे या महिला की मर्जी ले ली जाए, यह अवैज्ञानिक है और मानवाधिकारों का उल्लंघन है और कोई अपराध साबित करने में इसका सहारा नहीं लिया जा सकता.”
आरपी/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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