राजघरानों और बाहुबलियों में घिरा यूपी चुनाव का यह चरण
२६ फ़रवरी २०२२पांचवें चरण की जिन 61 विधानसभा सीटों पर 27 फरवरी को मतदान होने हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में उनमें से 51 सीटों पर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने जीत हासिल की थी लेकिन 2022 में स्थितियां बदल गई हैं. 2017 में समाजवादी पार्टी को इस चरण में सिर्फ पांच सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस पार्टी को एक सीट हासिल हुई थी. दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी जिनमें से एक सीट प्रतापगढ़ जिले की बहुचर्चित सीट कुंडा भी है जहां से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया पिछले कई साल से लगातार विधायक रहे हैं. बीएसपी को साल 2017 में इस चरण में एक भी सीट नहीं मिली थी.
राजा भैया को चुनौती
प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से राजा भैया इस बार निर्दलीय की बजाय अपनी पार्टी जनसत्ता दल से चुनाव लड़ रहे हैं. राजा भैया अब तक निर्विरोध भले ही जीतते आए हैं लेकिन इस बार उनकी लड़ाई आसान नहीं दिख रही है. स्थानीय पत्रकार मनोज त्रिपाठी बताते हैं, "समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ पहली बार उम्मीदवार उतारा है और उम्मीदवार भी ऐसा जो कभी राजा भैया का ही खास हुआ करता था. गुलशन यादव मजबूत दावेदारी तो पेश कर ही रहे हैं बीजेपी उम्मीदवार भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. ऐसे में इस सीट को बचाए रखना राजा भैया के लिए उतना आसान नहीं है.”
राजा भैया प्रतापगढ़ की भदरी रियासत से संबंध रखते हैं और उत्तरी भारत की कई दूसरी रियासतों में उनकी रिश्तेदारी है. साल 1993 के विधानसभा चुनाव से राजनीति में की शुरुआत करने वाले राजा भैया कुंडा से लगातार छह बार जीत चुके हैं और पड़ोस की बाबागंज सीट पर भी उनके चहेते उम्मीदवार को ही जीत मिलती रही है. चुनाव वो भले ही निर्दलीय लड़ते रहे हों लेकिन बीजेपी और समाजवादी पार्टी की सरकारों में वो मंत्री भी रहे हैं.
साल 2013 में सीओ जियाउल हक हत्याकांड में उनके साथ नामजद रहे गुलशन यादव अब उन्हीं के खिलाफ राजनीतिक मैदान में ताल ठोंक रहे हैं. बीजेपी ने पूर्व मंत्री शिव प्रताप मिश्र सेनानी की पत्नी सिंधुजा मिश्रा को टिकट दिया है, जिससे राजा भैया की डगर कुछ और मुश्किल हो गई है. इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता बड़ी संख्या में हैं और माना जाता है कि अब तक वो राजा भैया का ही साथ देते रहे हैं.
पांचवें चरण में अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर, बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, श्रावस्ती जैसे अवध के और भी कई जिले हैं जहां राजघरानों और बाहुबलियों का जोर राजनीति में चलता रहा है. कैसरगंज से बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह का इस इलाके में अच्छा-खास प्रभाव है और इन जिलों की ज्यादातर सीटों पर उनकी इच्छा से उम्मीदवारों की जीत तय होती रही है. हालांकि इसी इलाके में सपा नेता और पूर्व मंत्री पंडित सिंह का भी वर्चस्व था लेकिन पिछले साल कोविड संक्रमण के चलते उनकी मृत्यु हो गई.
संजय सिंह इस बार बीजेपी से
कभी कांग्रेस का गढ़ रहे अमेठी जिले की अमेठी विधानसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला दिख रहा है. संजय गांधी के बेहद खास रहे डॉक्टर संजय सिंह कई बार गांधी परिवार के सदस्यों के लिए अमेठी सीट खाली कर चुके हैं. इस बार वे इसी अमेठी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी से नहीं बल्कि बीजेपी से. मौजूदा समय में इस सीट पर उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह विधायक हैं जिन्हें साल 2017 में बीजेपी ने टिकट दिया था और उन्होंने रोचक मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार और संजय सिंह की दूसरी पत्नी अमिता सिंह को हराया था.
संजय सिंह पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर से लड़े थे जहां उन्हें बीजेपी उम्मीदवार मेनका गांधी ने हरा दिया था. उसके बाद संजय सिंह अपनी दूसरी पत्नी अमिता सिंह के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. संजय सिंह अमेठी राजघराने से संबंध रखते हैं और कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में से रहे हैं. हालांकि इससे पहले भी वो कांग्रेस पार्टी छोड़ चुके हैं और वापस भी आ चुके हैं. यहां की राजनीति आज भी इसी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है लेकिन साल 2012 में अमेठी से समाजवादी पार्टी के टिकट पर गायत्री प्रजापति चुनाव जीते थे. इस बार सपा ने उनकी पत्नी को टिकट दिया है.
कुछ समय पहले तक कांग्रेस पार्टी के लिए वोट मांगने वाले संजय सिंह अब बीजेपी की तारीफ करते थकते नहीं हैं. वो कहते हैं, "केंद्र और राज्य दोनों जगह की बीजेपी सरकारें बहुत अच्छा काम कर रही हैं. पार्टी के उम्मीदवार उन्हीं लोकप्रिय कार्यों के चलते चुनाव में वोट मांग रहे हैं. हमें जनता का काफी समर्थन मिल रहा है और इस बार फिर बीजेपी सरकार बनाएगी.”
हालांकि संजय सिंह कांग्रेस छोड़ने और कांग्रेस की स्थिति जैसे सवालों पर ज्यादा बात नहीं करना चाहते हैं. अमेठी के एक स्थानीय बीजेपी नेता नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं कि संजय सिंह की राह बड़ी मुश्किल है क्योंकि बीजेपी के तमाम नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए उन्हें पार्टी ने टिकट दिया है. नेता के मुताबिक, "खुद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी प्रचार में बहुत दिलचस्पी नहीं ले रही हैं जबकि वो यहां से सांसद हैं. कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार आशीष शुक्ला को काफी समर्थन मिल रहा है. प्रियंका गांधी ने उनके लिए रोड शो भी किया था. बीजेपी के भी तमाम नेता छिपे तौर पर आशीष शुक्ला के साथ लगे हैं.”
अमेठी और सुल्तानपुर से लगे प्रतापगढ़ में तो राजनीति राजघरानों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही और कालाकांकर का राजपरिवार हमेशा कांग्रेस के साथ रहा लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व सांसद और राजा दिनेश सिंह की बेटी रत्ना सिंह कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चली गईं. रत्ना सिंह विधानसभा चुनाव में तो सक्रिय नहीं हैं लेकिन बीजेपी नेताओं के पक्ष में वोट करने के लिए लोगों से अपील कर रही हैं.
प्रतापगढ़ में कुंडा के अलावा दूसरी महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है रामपुरखास, जहां से कांग्रेस के प्रमोद तिवारी 1980 से लेकर लगातार नौ बार विधायक रहे. साल 2013 में प्रमोद तिवारी के राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद से इस सीट पर उनकी बेटी आराधना मिश्रा मोना कांग्रेस की विधायक हैं. पहले 2014 के उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की और फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में. कांग्रेस पार्टी ने इस बार भी उन्हीं पर अपना विश्वास जताया है.
रामपुर खास के ही रहने वाले दिनकर श्रीवास्तव कहते हैं, "इस सीट पर तो दूसरी पार्टियों के पोस्टर बैनर भी नजर नहीं आते. प्रमोद तिवारी ने यहां जितना विकास किया है, उतना तो किसी मंत्री ने भी नहीं किया होगा. यहां की जनता के लिए विधायक का मतलब प्रमोद तिवारी ही है और उनके विकास कार्यों को ही देखकर लोग उन्हें वोट देते हैं.”
रामपुर खास सीट से समाजवादी पार्टी ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है जबकि बीजेपी ने नागेश प्रताप सिंह को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है. बीएसपी ने यहां से बांकेलाल पटेल को उतारा है.
प्रतापगढ़ आंवले की खेती के लिए जाना जाता है लेकिन उससे संबंधित उद्योग या फिर विपणन की अब तक कोई खास व्यवस्था नहीं हुई है. आंवला किसान राजदेव तिवारी कहते हैं, "नेता लोग कहते हैं कि आंवले के लिए विशेष मंडी बनवाएंगे, लेकिन बनवाए नहीं. एक जिला एक उत्पाद के तहत भी आंवले को चुना गया लेकिन आंवले की खेती और व्यापार के लिए कोई खास सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई. सभी सीटों पर बीजेपी के लोग ही जीते थे और पार्टी की सरकार थी, फिर भी प्रतापगढ़ जनपद के लिए कुछ खास काम नहीं हो सका. हां, अयोध्या से प्रयागराज का रास्ता यहीं से होकर जाता है इसलिए हाईवे जरूर बन गया है. पर शहर के भीतर सड़कों का हाल अच्छा नहीं है."
प्रयागराज शहर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाते शिक्षा और संस्कृति का एक बड़ा केंद्र भले ही रहा हो और कई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री देने का गौरव इस शहर को हासिल रहा हो लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस शहर की राजनीति बाहुबली नेताओं की वजह से ही चर्चा में रही है. शहर पश्चिमी सीट पर बीजेपी सरकार में मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने 2017 में जीत हासिल करके इस सीट पर पहली बार बीजेपी को जीत दिलाई थी और इस बार फिर वो चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह से है जो पिछली बार महज कुछ हजार वोटों से हार गई थीं. शहर पश्चिमी सीट कभी बाहुबली नेता अतीक अहमद की वजह से चर्चा में रहती थी जो लंबे समय तक यहां से विधायक रहे और इस समय तमाम मुकदमों का सामना करते हुए अहमदाबाद जेल में बंद हैं.
बाहुबली नेताओं के तौर पर यहां करवरिया बंधुओं की भी चर्चा होती है. मौजूदा समय में मेजा से विधायक और बीजेपी उम्मीदवार नीलम करवरिया के पति उदयभान करवरिया बारा से विधायक रहे हैं और इस समय अपने दो अन्य भाइयों पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया और पूर्व विधायक सूरजभान करवरिया के साथ हत्या के एक मामले में सजा होने के बाद जेल में बंद हैं. जिन पूर्व विधायक जवाहर यादव की हत्या के आरोप में इन लोगों को सजा हुई है, उनकी पत्नी विजमा यादव भी विधायक रही हैं और इस समय प्रतापपुर सीट से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार हैं.
जहां तक मुद्दों की बात है तो यहां स्थानीय मुद्दों के अलावा आवारा पशुओं की समस्या को लेकर लोग वैसे ही परेशान हैं जैसे कि राज्य के अन्य हिस्सों में हैं. प्रयागराज के पास गोहरी गांव के एक किसान राम आसरे का कहना था, "सरकार गरीबों को हर महीने पांच किलो राशन तो दे रही है लेकिन खेतों का जो हजारों किलो अनाज आवारा पशु बर्बाद कर दे रहे हैं, उसकी भरपाई कौन करेगा?”