विकास का खामियाजा भरता पूर्वोत्तर भारत
१३ जुलाई २०२२मणिपुर की राजधानी इंफाल से करीब सौ किमी दूर टूपूल में भूस्खलन की वजह से 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और कम से कम 20 लोग अब भी लापता हैं. इनमें टेरीटोरियल आर्मी के करीब तीन दर्जन जवान भी हैं जिनको इस परियोजना की सुरक्षा के लिए मौके पर तैनात किया गया था.
मणिपुर में सामान और यात्री परिवहन के लिए बनने वाली इस पहली ब्रॉड गेज लाइन की लंबाई 111 किमी है. इस लाइन के जरिए ही पूर्वोत्तर भारत को आसियान देशों से जोड़ा जाना है. तामेंगलांग जिले के जिरीबाम से शुरू होकर यह रेलवे लाइन पहले चरण में नोनी जिले के टूपूल तक जाएगी. दूसरे चरण में यह 27 किमी दूर राजधानी इंफाल तक जाएगी. तीसरे और आखिरी चरण में यह सीमावर्ती शहर मोरे होते हुए म्यांमार के तामू तक जाएगी.
इस परियोजना के तहत 46 सुरंगों के अलावा 16 रोड ओवरब्रिज और 140 छोटे-बड़े रेलवे ब्रिजों का निर्माण किया जाना है. इनमें से नोनी में 141 मीटर ऊंचाई वाला विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज भी शामिल है. इस परियोजना के तहत सुरंगों और पुलों का निर्माण कार्य वर्ष 2012 में शुरू हुआ था.
इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद मणिपुर का रेल संपर्क पूरे देश से हो जाएगा. इस परियोजना के तहत ही विश्व के सबसे ऊंचाई वाले रेलवे ब्रिज का काम भी जोरों पर चल रहा है. लेकिन मुश्किल यह है कि भौगोलिक परिस्थितियों और प्रतिकूल मौसम के कारण साल में महज छह महीने ही इस परियोजना का काम सुचारू रूप से चल पाता है.
जगह-जगह पहाड़ों को काटने के साथ ही सड़क को चौड़ा करने के काम के कारण पहाड़ और भी कमजोर होने लगे हैं और बड़े पैमाने पर लोगों पर भूस्खलन का खतरा मंडराने लगा है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह कहते हैं, "राज्य की पहाड़ियों की मिट्टी काफी नरम है. ऐसे में इसके धंसने का खतरा हमेशा बना रहता है. इस परियोजना को दिसंबर 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य था. लेकिन अब इस हादसे के कारण वह आगे बढ़ जाएगा.”
वह कहते हैं कि रेलवे को अब इस परियोजना की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी. यह इलाका भूकंप के लिहाज से संवेदनशील जोन में आता है. ऐसे में कभी भी एक बड़े भूकंप की आशंका बनी हुई है. मुख्यमंत्री कहते हैं कि इलाके में किसी भी दिन बड़ा भूकंप आ सकता है और भारी तबाही मच सकती है.
जहां हादसा हुआ वहां के लोगों का आरोप है कि रेलवे ने काम शुरू करने से पहले उनसे कोई सलाह नहीं ली थी. सलाह लेने की स्थिति में ऐसे हादसों से बचा जा सकता था. लोगों का कहना है कि परियोजना के लिए बेतहाशा पेड़ काटे गए लेकिन उनकी जगह नए पौधे नहीं लगाए गए. इसी तरह सड़कों और नालों के निर्माण के लिए भी गलत जगहों का चयन किया गया. स्थानीय लोगों ने फिलहाल परियोजना को रोकने और इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने की मांग उठाई है.
बांध परियोजनाएं
मणिपुर में विकास परियोजना के लिए हुआ हादसा कोई पहला या आखिरी नहीं है. इससे पहले अरुणाचल प्रदेश में पनबिजली परियोजनाओं के लिए बनने वाले बड़े-बड़े बांध भी तबाही लाते रहे हैं और उनके खिलाफ लगातार आवाजें उठती रही हैं. बावजूद इसके वहां इन परियोजनाओं का काम जारी है. पर्वतीय राज्य सिक्किम में तीस्ता नदी पर प्रस्तावित पनबिजली परियोजना के खिलाफ भी लगातार आंदोलन होते रहे हैं. तीस्ता नदी पर पहले से ही चार बड़ी परियोजनाएं बन चुकी हैं. इनमें 12 सौ मेगावाट क्षमता वाली सबसे बड़ी तीस्ता ऊर्जा परियोजना भी शामिल है. यह दोनों राज्य भी भूकंप के प्रति संवेदनशील इलाकों में शुमार हैं.
इन बांधों की वजह से इलाके में कई गांव तो डूब ही गए हैं, मानसून के दौरान इनका पानी छोड़ने के कारण बाढ़ की तस्वीर और भयावह हो उठती हैं.
आपदाओं को न्योता
विशेषज्ञों का कहना है कि इलाके में विकास परियोजनाओं के लिए जिस तेजी से जंगल साफ किए जा रहे हैं वह प्राकृतिक आपदाओं को न्योता दे रहा है. मणिपुर में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय में संयुक्त सचिव डॉ ब्रज कुमार सिंह कहते हैं, "रेलवे परियोजना के लिए तेजी से जंगल साफ किए गए. इसके अलावा भारी बारिश ने भी इस प्राकृतिक आपदा को न्योता दे दिया." वह बताते हैं कि जंगलों के तेजी से कटने और भारी बारिश के कारण पहाड़ियों की मिट्टी नरम हो गई है. इस इलाके की पहाड़ियां अपेक्षाकृत नई है.
पर्यावरणविद राजेश सलाम कहते हैं, "रेलवे ने परियोजना को लागू करने की हड़बड़ी में सुरक्षा उपायों पर खास ध्यान नहीं दिया है. इस मामले में इलाके की भौगोलिक खासियतों की अनदेखी की गई है.”
असम के जाने-माने पर्यावरणविद धीरेन कुमार भट्ट कहते हैं, "केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को इन बांधों और दूसरी विकास परियोजनाओं के प्रतिकूल असर के बारे में कोई चिंता नहीं है. परियोजनाओं को मंजूरी पहले दी जाती है और इनके असर का अध्ययन बाद में किया जाता है.”
पर्यावरणविदों ने इलाके में जारी इन विकास परियोजनाओं पर गहरी चिंता जताई है. सिक्किम के एक पर्यावरणविद केसी लामा कहते हैं, "प्राकृतिक संसाधनों के बड़े पैमाने पर दोहन के जरिए सरकार विकास के नाम पर विनाश को न्योता दे रही है. बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण कार्यों के कारण इलाके में जमीन धंसने का खतरा बढ़ गया है. पहले ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं. लेकिन किसी के कानों पर कोई जूं तक नहीं रेंगती.”
दूसरी ओर, मणिपुर में रेलवे परियोजना को लागू करने वाले पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के अधिकारियों की दलील है कि वर्ष 2016 में इलाके में आए भयावह भूकंप और वहां होने वाली झूम खेती ने संभवतः पहाड़ी मिट्टी को नरम बना दिया है. इसी वजह से पहाड़ियों की मिट्टी खिसक गई.