1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
विज्ञानविश्व

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग होता क्या है?

१४ जुलाई २०२०

कोरोना संकट से निपटने के लिए लगातार कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की बात चल रही है. कई जगह तो इसके लिए ऐप भी बन गए हैं. लेकिन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग किया कैसे जाता है?

https://p.dw.com/p/3fISr
Smartphone mit Corona Warn-APP
तस्वीर: Imago Images/M. Weber

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का उद्देश्य होता है लोगों को आगाह करना ताकि वे किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में ना पहुंचें और इस तरह से खुद भी इस वायरस को फैलाने से बचें. जानकार मानते हैं कि कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग बेहद अहम है. अगर यह ठीक से किया जाए तो सुनिश्चित किया जा सकता है कि दोबारा कभी लॉकडाउन की कोई जरूरत नहीं रहेगी. लेकिन यह कहने में जितना आसान है, करने में उतना ही मुश्किल.

किसी व्यक्ति के कोरोना पॉजिटिव टेस्ट करने के बाद कॉन्टैक्ट ट्रेसर उससे संपर्क करता है और पता लगाता है कि वह कहां गया और किन लोगों के आसपास रहा. ट्रेसर उन लोगों पर ध्यान देता है जो आम तौर पर व्यक्ति के इर्दगिर्द रहते हैं, जैसे कि घर या दफ्तर में या फिर जो लोग छह फीट से कम दूरी में व्यक्ति के आसपास रहे, वह भी कम से कम दस मिनट तक. इन लोगों को फिर सेल्फ आइसोलेट करने को कहा जाता है. इन लोगों को लक्षणों पर ध्यान देने को कहा जाता है और जरूरत पड़ने पर इनका टेस्ट भी किया जाता है.

Nutzung der Corona-Warn-App auf einem Smartphone
ऐप पर मिलता है कोरोना पॉजिटिव से संपर्क का पता तस्वीर: Imago Images/R. Wölk

जिन लोगों में लक्षण साफ साफ दिखते हैं, फिर उनकी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जाती है, यानी उनके संपर्क में कौन कौन आया, इसका पता लगाया जाता है. दुनिया भर में यह काम अलग अलग तरीकों से किया जा रहा है. लेकिन जैसे जैसे रेस्त्रां और बाजार खुल रहे हैं, लोग दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने निकल रहे हैं, वैसे वैसे यह काम मुश्किल होता चला जा रहा है. ऐसे में मुमकिन है कि मामले इतने बढ़ जाएं कि स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए इन पर नजर रखना ही मुमकिन ना रह जाए.

अमेरिका में लोगों को एसएमएस भेज कर पूछा जाता है कि कहीं वे किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं है. कई मामलों में फोन भी किया जाता है. लेकिन अगर लोग फोन और एसएमएस का जवाब ही ना दें, तो कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग मुश्किल हो जाती है. भारत में भी इसी तरह लोगों को व्हाट्सऐप पर संदेश भेजे जा रहे हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है जल्द से जल्द लोगों को चेतावनी देना. कोई भी मामला आने के 24 घंटों के भीतर उन्हें कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग शुरू कर देनी होती है. कई देशों में ऐप इस काम में मदद दे रहे हैं लेकिन इन्हें डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं है, इसलिए इन पर पूरी तरह निर्भर नहीं किया जा सकता.

जर्मनी में सेकंड वेव मुमकिन

वहीं, ब्रिटेन और स्वीडन समेत कुछ देश हर्ड इम्यूनिटी बन जाने का इंतजार करते रहे हैं. हर्ड इम्यूनिटी यानी आबादी के इतने बड़े हिस्से में किसी बीमारी के लिए इम्यूनिटी बन जाना कि उसका फैलाव रुक सके. जर्मनी के रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट ने डोनेट किए गए खून के सैम्पलों में पाया है कि महज 1.3 फीसदी में ही एंटीबॉडी मौजूद थे. अप्रैल से अब तक 11,695 सैम्पलों की जांच की गई. खून में एंटीबॉडी की मौजूदगी का मतलब है कि व्यक्ति को संक्रमण हुआ था फिर चाहे इसके लक्षण दिखे हों या नहीं.

ऐसे में इंस्टीट्यूट का कहना है कि बीमारी की दूसरी लहर का आना मुमकिन है. अपनी रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट ने कहा है कि संभवतः अब तक आबादी के अधिकतर हिस्से को संक्रमण नहीं हुआ है और ज्यादातर लोगों पर अब भी इसका खतरा बना हुआ है. हाल ही में स्पेन के द्वीप मायोरका पर जर्मन सैलानियों की भीड़ की खबर आई थी जिसके बाद भी सेकंड वेव के खतरे की बात की गई थी. साथ ही, अब तक ऐसा भी माना जा रहा था कि एक बार कोरोना से संक्रमित हो कर ठीक हो जाने के बाद शरीर में इम्यूनिटी बन जाती है लेकिन अब ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं जहां एक ही व्यक्ति को दो बार संक्रमण हुआ.

आईबी/सीके (एपी, डीपीए)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी