इतने ज्यादा भारतीय युवा क्यों हैं बेरोजगार?
५ अप्रैल २०२४जगदीश पाल उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से हैं और गणित में स्नातक हैं. 21 साल के जगदीश ने 2023 में एक निम्न श्रेणी की सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया था. इस पद के लिए भी प्रतिस्पर्धा चरम पर थी. जगदीश पाल इस पद के लिए आवेदन करने वाले उन 75 हजार से ज्यादा लोगों में थे, जिनमें से कई के पास स्नातकोत्तर डिग्री थी और वो भी इस नौकरी को पाने की उम्मीद कर रहे थे. डीडब्ल्यू से बातचीत में जगदीश पाल कहते हैं, "मुझे पता था कि मैं नौकरी के लिए जरूरी योग्यता से कहीं ज्यादा योग्य हूं, लेकिन फिलहाल मेरे पास कोई नौकरी नहीं है. इसलिए मैंने आवेदन किया है."
भारत में कई युवा खुद को ऐसी ही स्थिति में पा रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. साल 2023 की चौथी तिमाही के दौरान इसमें 8.4 फीसदी वृद्धि हुई. लेकिन अर्थव्यवस्था में होने वाली यह वृद्धि उन लाखों युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा करने में संघर्ष कर रही है, जो हर साल श्रम बाजार में प्रवेश कर रहे हैं.
इस समस्या का एक कारण यह है कि पिछले कुछ दशकों में अधिकांश वृद्धि भारत के सेवा क्षेत्र के विस्तार की वजह से हुई है, जो कि विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में उतने रोजगार नहीं पैदा कर पाती है. इंग्लैंड के बाथ विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने डीडब्ल्यू को बताया, "समावेशी विकास के लिए जरूरी है कि तेजी से नौकरियां न सिर्फ उन्हें मिलें, जो वेतन और कौशल वितरण के शीर्ष पर हैं, बल्कि उन्हें भी मिलें जो सबसे निचले स्तर पर हैं."
स्नातक भी बड़ी संख्या में बेरोजगार हैं
भारत में बेरोजगारी हर तरफ है. यहां तक कि कॉलेज ग्रेजुएट्स भी बड़ी संख्या में बेरोजगार हैं. हालांकि, कृषि और निर्माण क्षेत्र में नौकरियां काफी हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में उतने कुशल श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं जितनी उम्मीद की जाती है. यही वजह कि नव शिक्षित वर्ग श्रम क्षेत्र की मांगों को पूरा नहीं कर पा रहा है. यानी, उन क्षेत्रों में नौकरियां भी हैं और नौकरी चाहने वाले भी, लेकिन काम के हिसाब से योग्यता और कौशल की कमी है.
हाल ही में इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने 'इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024' जारी किया है. यह रिपोर्ट भी भारत में रोजगार की स्थिति को बहुत गंभीर रूप में पेश करती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जो बेरोजगार कार्यबल है, उनमें लगभग 83 फीसद युवा हैं.
कुल बेरोजगार भारतीयों में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी साल 2000 में जहां 35.2 फीसद थी, वो साल 2022 में लगभग दोगुनी यानी 65.7 फीसद हो गई है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, "भारत में युवा बेरोजगारी दर अब वैश्विक स्तर से कहीं ज्यादा है. भारतीय अर्थव्यवस्था नए शिक्षित युवाओं के लिए गैर-कृषि क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार पैदा करने में सक्षम नहीं है, जो बढ़ती बेरोजगारी दर में दिखता है."
एक बड़ा चुनावी मुद्दा
भारत में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. 19 अप्रैल से शुरू होकर छह हफ्ते तक, सात चरणों में चुनाव होने वाले हैं. जाहिर है, युवाओं में इतनी ज्यादा बेरोजगारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए एक बड़ी परेशानी है. मोदी प्रशासन ने अर्थव्यवस्था के प्रबंधन को अपने अभियान का मुख्य हिस्सा बनाया है.
पिछले तीन वर्षों में सरकार ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और रोजगार पैदा करने के तौर पर सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाया है. इन तमाम प्रयासों के बावजूद, युवाओं के लिए रोजगार सृजन अपर्याप्त है जो कि आईएचडी/आईएलओ की रिपोर्ट से पता चल रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं, "बेरोजगारी एक बहुआयामी समस्या है. विभिन्न मोर्चों पर नीतिगत कार्रवाई की जरूरत है. यह मूल रूप से एक आर्थिक पक्ष है, लेकिन इसके कई सामाजिक और राजनीतिक आयाम भी हैं."
अरुण कुमार आगे कहते हैं, "पिछले तीन दशक में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ भारतीय कार्यबल ज्यादा शिक्षित हुआ है, लेकिन उनके लिए नौकरियां ज्यादा नहीं बढ़ी हैं. यही कारण है कि शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बन गई है."
विपक्षी दलों ने इस समस्या के लिए मोदी प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है. प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "मोदी सरकार की इस उदासीनता का खामियाजा हमारे युवाओं को भुगतना पड़ रहा है...आईएलओ और आईएचडी की रिपोर्ट निर्णायक रूप से कहती है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या गंभीर है."
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, विपक्ष बेरोजगारी को एक प्रमुख मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है और इसके खिलाफ अभियान चलाने की कोशिश में लगा है. भारत जैसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में जहां 65 फीसद भारतीयों की उम्र 35 वर्ष से कम होने का अनुमान है, वहां निश्चित तौर पर बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है.
महिलाओं पर क्या असर है?
नौकरियों का संकट महिलाओं को खासतौर पर प्रभावित करता है. आईएलओ और आईएचडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षित बेरोजगार युवाओं में पुरुषों (62.2%) की तुलना में महिलाओं की हिस्सेदारी कहीं ज्यादा (76.7%) है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत उन देशों में से एक है जहां महिला श्रम बल भागीदारी दर दुनिया में सबसे कम, करीब 25 फीसदी है.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी की वरिष्ठ अर्थशास्त्री लेखा चक्रवर्ती कहती हैं कि भारत में शिक्षितों, खासकर महिलाओं के बीच बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण समस्या है. वह बताती हैं, "यह तीन कारणों से है- व्यापक 'केयर इकोनॉमी' वाली बुनियादी ढांचे की नीतियों की कमी, कठोर सामाजिक मानदंड और पर्याप्त कौशल की कमी. यदि हम व्यापक आर्थिक नीतियों में केयर इकोनॉमी को शामिल करते हैं, तो देश के समग्र आर्थिक हितों में वृद्धि होगी. महिलाओं और हाशिए पर मौजूद सामाजिक समूहों के विरुद्ध श्रम बाजार में भेदभाव जैसे मामलों को दुरुस्त करने के लिए ठोस उपायों की जरूरत है."