1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समानतासंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका की किशोरियां गहरे संकट में हैं

१८ अप्रैल २०२३

पढ़ाई की फिक्र, लॉकडाउन के बाद की परेशानियां और सोशल मीडिया की चिंता. एक के बाद एक स्टडी दिखा रही हैं कि अमेरिकी युवा संकट में हैं. खासकर किशोरियों में मानसिक सेहत की चुनौतियां खतरनाक स्तर पर पहुंच गई हैं.

https://p.dw.com/p/4QG7q
मानसिक सेहत की खतरनाक स्थिति का सामना कर रही हैं अमेरिकी लड़कियां
अमेरिकी किशोरियों के लिए सोशल मीडिया से लेकर स्कूल तक सब समस्या का हिस्सा हैंतस्वीर: Olivier Douliery/AFP/Getty Images

सबसे चौंकाऊ आंकड़ा जो सामने आया है, वह सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी CDC की रिपोर्ट में है. इसके मुताबिक अमेरिका की 60 फीसदी लड़कियों ने लगातार उदास और हताश रहने की शिकायत की है. यही दिक्कत लड़कों में भी बढ़ी है और देश के करीब आधे किशोर इस मनोदशा से गुजर रहे हैं.

वयस्कों के पास इसे समझने के लिए कुछ सिद्धांत हैं, लेकिन किशोरावस्था से गुजर रहे ये बच्चे खुद से क्या कहें? क्या सोशल मीडिया इन सब परेशानियों की जड़ है? क्या उनके नर समवयस्क इन सबसे दूर हैं या फिर वे भी परेशानी का हिस्सा हैं? समाचार एजेंसी एपी ने इस बारे में चार राज्यों की पांच लड़कियों से बात की. मामले की संवेदनशीलता देखते हुए इनके सिर्फ पहले नाम ही जाहिर किए गए हैं. इन लड़कियों ने बहुत गंभीर और कई बार चौंकाने वाली बातें कही हैं.

अवसाद और घबराहट

इलिनॉय राज्य में रहने वाली 16 साल की अमीलिया को गाने से प्यार है. वह सर्जन बनना चाहती हैं. अमीलिया कहती हैं, "हम बहुत मजबूत हैं और हमने बहुत कुछ झेला है." अमेलिया भी अवसाद और घबराहट से जूझ रही हैं. वह एक बार अपनी जान लेने तक की कोशिश कर चुकी हैं.

एक सरकारी रिपोर्ट के लिए जिन लड़कियों से बात की गई, उनमें 13 फीसदी लड़कियों ने अवसाद और घबराहट की शिकायत की थी. 2020 में आत्महत्या की कोशिश के बाद अमीलिया को अस्पताल में भर्ती किया गया और थेरेपी से उन्हें थोड़ी मदद मिली.

अमेरिकी किशोरियां गहरे अवसाद से जूझ रही हैं
16 साल की अमेलिया अवसाद की शिकार रहीं और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ातस्वीर: Erin Hooley/AP Photo/picture alliance

अमीलिया ने स्कूल में बदमाशी, कपटपूर्ण दोस्ती और एक लड़के की खतरनाक धमकियों का सामना किया है. वह लड़का अमीलिया से कहता था कि ‘तुम्हारा बलात्कार हो जाना चाहिए'.

CDC की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की हर दस में एक से ज्यादा लड़की ने बताया कि उसे सेक्स के लिए मजबूर किया गया. किशोरियों को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें सिर्फ यौन धमकियां ही नहीं हैं. अमीलिया कहती हैं, "हम एक ऐसी दुनिया में बचने की कोशिश कर रहे हैं, जो हमारे पीछे पड़ी है."

जॉर्जिया में 18 साल की एमा एक उभरती कलाकार हैं, जो ध्यान में कमी की समस्या और कभी-कभार अवसाद की समस्या से जूझ रही हैं. वह पढ़ाई को लेकर चिंतित रहती हैं और कॉलेज तनाव का एक बड़ा कारण है. एमा ने कहा, "आखिरकार मैंने और मेरे दोस्तों ने यह महसूस किया कि हर कोई दुनिया, सामाजिक मुद्दों और भविष्य किस ओर जा रहा है, इसके दबाव के आगे पस्त है."

मिसीसिपी में 15 साल की जोई एक सख्त, लेकिन प्यारी अकेली मां के हाथों पली-बढ़ीं. उन पर स्कूल और जीवन में सफल होने का भारी दबाव था. वह भी कुछ इसी तरह की बातें करती हैं. जोई कहती हैं, "स्कूल आपकी तंत्रिका को बहुत चोट पहुंचाने वाला और मानसिक स्वास्थ्य पर इतना बुरा असर डालने वाला हो सकता है कि आप इसे तब तक नहीं जान पाएंगे, जब तक आप उस जगह न हों, जहां आपको पता न हो कि करना क्या है." उन्हें भी दोस्ती में संघर्ष करना पड़ा, जिसका अंत एक गहरे अवसाद के साथ हुआ. उन्होंने क्लास में अकेली काली लड़की होने की वजह से भी दिक्कतें सहीं.

यौन दुर्व्यवहार

बहुत सारी लड़कियों का कहना है कि समाज अपने मानकों के जरिए उन पर बहुत ज्यादा दबाव डालता है कि वे कैसी दिखें. एमा ने कहा, "बहुत सारे लोग औरतों के शरीर और लड़कियों के शरीर को सेक्सुअल नजरिए से देखते हैं."

जब दुनिया में #MeToo आंदोलन शुरू हुआ, तब इन लड़कियों की उम्र बहुत कम थी. लेकिन, महामारी के दौरान यह तेज हो गया. इन लड़कियों ने बहुत ज्यादा अवांछित यौन पहलों को झेला है.

इनका कहना है कि लड़कों में जागरूकता बहुत कम है. लड़कियां भद्दे मजाक, गलत तरीके से छूने और यौन धमकियों या असल हिंसा की शिकायत करती हैं. उनका यह भी कहना है कि उन्हें जबर्दस्ती के ध्यान से उन्हें बहुत दिक्कत होती है. अमीलिया ने कहा, "यह हमारा हक है कि हमें सेक्सुअलाइज न किया जाए या सनसनीखेज न बनाया जाए, क्योंकि हम बच्चे हैं."

न्यू जर्सी की 18 साल की सिया का कहना है कि वह जितनी लड़कियों को जानती हैं, उन सबने यौन दुर्व्यवहार का सामना किया है. सिया का कहना है, "मेरे लिए तो यह बिल्कुल आम बात है. जब आप एक लड़की हैं और अकेले कहीं जा रही हैं, तो आपने खुद को इस खतरनाक स्थिति में डाल लिया है. मेरे ख्याल से यह बहुत बुरा है. मुझे नहीं पता कि उस डर के बगैर कैसा लगता है."

मिसीसिपी की हाईस्कूल की सीनियर माकेना कहती हैं कि वह और उनकी दोस्त कई बार ढीले-ढाले कपड़े पहनती हैं, जिससे उनके शरीर की आकृति न पता चले. फिर भी लड़के "फब्तियां कसते हैं, चाहे जो हो जाए." वह अवसाद की शिकार रहीं और उन्हें अपना इलाज कराना पड़ा.

माकेना कहती हैं कि वह ऐसे समुदाय में पली-बढ़ी हैं, जहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी वर्जनाएं हैं. माकेना का कहना है, "काले लोगों के समुदाय में हमें अक्सर अपनी भावनाएं जाहिर करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता." इसकी वजह वे तकलीफें हैं, जो पिछली पीढ़ी को झेलनी पड़ीं.

समस्या बढ़ा रहा है सोशल मीडिया

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंसान के बाहरी रंग-रूप पर बहुत ध्यान देते हैं और संपूर्णता को पाने लायक दिखाते हैं. लड़कियां कहती हैं कि वे समस्या का हिस्सा हैं. माकेना कहती हैं, "सोशल मीडिया ने हमें हमारे बारे में सोचने के तरीके पूरी तरह बदल दिए हैं."

ऐतिहासिक रूप से लड़कियां अवसाद और घबराहट से ज्यादा प्रभावित होती थीं. हालांकि, उन आंकड़ों में यह सच्चाई भी दिखती थी कि लड़कों की तुलना में लड़कियां अपनी भावनाओं और अनुभवों के बारे में ज्यादा बात करती थीं. लड़के अपनी मर्दाना छवि बनाने के चक्कर में अपनी घबराहट के बारे में बात ही नहीं करते थे.

मार्च में द जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन में छपी एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतों के कारण अस्पताल में भर्ती किशोरों में 60 फीसदी लड़कियां थीं. एक दशक पहले लड़के और लड़की के बीच नाममात्र का फर्क था. महामारी ने यह समस्या और बढ़ा दी. बहुत सारे बच्चे महामारी के दौर में ही शरीर में हो रहे बदलावों का सामना कर रहे थे. वह भी ज्यादातर अकेले और ऑनलाइन रहते हुए.

जब वे महामारी से बाहर आए, तो सामाजिक रूप से थोड़ी असहज स्थिति में थे कि दोस्ती और रिश्तेदारी के बीच से खुद को कैसे लेकर चलें. वे एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां आए दिन स्कूलों में गोलीबारी हो रही है, पर्यावरण तेजी से बदल रहा है, सामाजिक और राजनीतिक अशांति है और कई अन्य तरह की समस्याएं हैं.

एनआर/वीएस (एपी)