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स्तन कैंसर से मर रही हैं पाकिस्तानी महिलाएं

१५ नवम्बर २०२१

पाकिस्तान में कई महिलाएं सामाजिक वर्जनाओं के कारण स्तन कैंसर की जल्द जांच कराने से हिचकिचाती हैं. जब तक कैंसर का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

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तस्वीर: PPI/ZUMAPRESS/picture alliance

पूरे एशिया में स्तन कैंसर की दर सबसे ज्यादा पाकिस्तान में है. और रुझान बताते हैं कि जब तक प्रारंभिक जांच में आने वाली बाधाओं को दूर करने की और कोशिशें नहीं होतीं, तब तक इसके और अधिक बढ़ने की संभावना है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, पाकिस्तान में साल 2020 में करीब 26 हजार महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था और 13,500 से ज्यादा महिलाओं की इस वजह से मृत्यु हो गई थी.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस उच्च मृत्यु दर की वजह जांच और उपचार केंद्रों की कमी है. हालांकि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन पाकिस्तान में स्तन कैंसर की समस्या में सामाजिक कारण भी योगदान दे रहे हैं.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर साल 2020 में 23 लाख महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था और 6 लाख 85 हजार महिलाओं की स्तन कैंसर से मौत हुई थी.

कैंसर की जांच सामाजिक वर्जना कैसे हो सकती है?

कैंसर विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि स्तन कैंसर के गंभीर मामलों को रोकने के लिए शुरुआती जांच बेहद महत्वपूर्ण है. हालांकि, शौकत खानम कैंसर रिसर्च सेंटर के शोध के मुताबिक, पाकिस्तान में कुछ महिलाएं अपने स्वास्थ्य के मुद्दों को दूसरों के साथ साझा नहीं करती हैं और किसी भी प्रकार की स्तन जांच कराने से कतराती हैं.

इस्लामाबाद पॉलीक्लिनिक अस्पताल में स्तन कैंसर की विशेषज्ञ एरम खान कहती हैं कि स्तन कैंसर के निदान में देरी के पीछे पाकिस्तान की पितृसत्तात्मक संस्कृति और महिलाओं के शरीर से संबंधित वर्जनाएं प्रमुख कारक हैं.

डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं कि स्तन कैंसर की जांच और उपचार की कोशिश में लगी कुछ महिलाओं को ताना मारा जाता है. वह कहती हैं, "एक मरीज यह बताते हुए रो पड़ी कि जब उसके स्तनों को सर्जरी के जरिए हटा दिया गया तो उसके पति ने कहा कि स्तन हटने के बाद तो वो एक ‘पुरुष' बन गई है.”

डीडब्ल्यू से बातचीत में पाकिस्तान की महिला कार्यकर्ता मुख्तारन माई कहती हैं, "विवाहित महिलाएं सोचती हैं कि अगर उनके पति को इस बीमारी के बारे में पता चल गया तो वे दूसरी महिला से शादी कर सकते हैं जबकि अविवाहित लड़कियों का मानना ​​​​है कि महज जांच कराने भर से उनकी शादी में मुश्किलें आ सकती हैं.”

ऑनलाइन डेटाबेस बीएमसी विमिंस हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, पाकिस्तान में महिलाएं शुरुआती जांच कराते समय बेइज्जती महसूस करती हैं, खासकर ऐसे मामलों में जब जांच करने वाला डॉक्टर पुरुष हो और उनके सामने कोई और विकल्प न हो.

रिपोर्ट में उम्र, रोजगार की स्थिति, जागरूकता की कमी, सर्जरी का डर और पारंपरिक उपचारों में विश्वास और आध्यात्मिक उपचार को भी स्तन कैंसर को बढ़ाने वाले कारकों में रूप उल्लेख किया गया है. नतीजतन, पाकिस्तान में स्तन कैंसर के 89 फीसदी रोगियों में स्तन कैंसर की पहचान काफी देर में होती है और 59 फीसदी में तो तब पता चलता है जब कैंसर अपनी चरम यानी उन्नत अवस्था में होता है.

Pakistan | Kampagne zur Brustkrebsvorsorge
तस्वीर: PPI/ZUMAPRESS/picture alliance

एरम खान कहती हैं कि महिला स्तन कैंसर विशेषज्ञों की अधिक संख्या में भर्ती, महिला कॉलेजों में अधिक जागरूकता अभियान और स्त्री रोग विशेषज्ञों और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की जरूरत है ताकि पाकिस्तान में महिलाओं को स्तन कैंसर से बचाने में मदद मिल सके.

खान कहती हैं कि जिन महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चलता है, तो यहां एक गलता धारणा यह भी है कि उसके लिए सिर्फ सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है. वह कहती हैं कि बहुत से लोग यह नहीं जानते कि कैंसर के पहले और दूसरे चरण में कई बार सर्जरी की जरूरत नहीं होती है.

पाकिस्तान में स्तन कैंसर पर हुए एक शोध के मुताबिक, पाकिस्तानी औरतें स्तनों में गांठों को दर्द न होने के कारण नजरअंदाज कर देती हैं और इसके इलाज में इसलिए भी लापरवाही बरतती हैं क्योंकि स्तन वो एक "गुप्त अंग” समझती हैं.

नजरअंदाजी औरतों को मार रही है

पचास साल की वहीदा नैयर को दो साल पहले पता चला कि उन्हें स्तन कैंसर है और वो इस स्थिति में थीं कि मर्ज बढ़ने से पहले उसका इलाज करा सकें. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं कि ज्यादातर पाकिस्तानी महिलाएं इतनी भाग्यशाली नहीं हैं. उनके मुताबिक, नजरअंदाजी, अंधविश्वास और कुछ सांस्कृतिक कारणों की वजह से स्तन कैंसर से महिलाओं की मौत हो रही है.

पाकिस्तान के दक्षिणी शहर कराची की रहने वाली वहीदा नैयर कहती हैं, "मैं ऐसी तमाम महिलाओं के संपर्क में आई जो शर्म और संकोच के मारे स्तनों की जांच तक नहीं करातीं. छोटे शहरों से इलाज के लिए आने वाली ज्यादातर महिलाओं में कैंसर अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था. जब मैंने उनसे देर से जांच कराने के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि इसमें उन्हें शर्म आती थी.”

नैय्यर की बेटी, निमरा उस कैंसर अस्पताल में बार-बार आती थीं, जहां उनकी मां का इलाज होता था. निमरा कहती हैं, "ग्रामीण महिलाओं ने मुझे बताया कि वे अपने पुरुष रिश्तेदारों को इस बीमारी के बारे में बताने की कल्पना भी नहीं कर सकती हैं. हमारे मामले में तो हमारी मां ने मुझे और मेरे भाई को इस बारे में बता दिया था.”

Breast Cancer Awareness Month | Cricket
तस्वीर: Christiaan Kotze/Getty Images/AFP

निमरा कहती हैं कि कैंसर के तीसरे स्टेज में पहुंच चुकी कुछ महिलाओं का कहना था कि उनके परिवार में कोई महिला सदस्य ही नहीं थी जिससे वो अपनी बीमारी साझा कर पातीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "ये महिलाएं अपने बेटों से या परिवार के दूसरे पुरुष सदस्यों से इस बारे में बात करने में शर्माती थीं.”

ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास ने विज्ञान को पछाड़ा

महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तारन माई कहती हैं कि उन्होंने अपनी 46 वर्षीय भाभी को इस साल की शुरुआत में स्तन कैंसर से खो दिया. मुख्तारन बताती हैं कि उनकी भाभी स्तन कैंसर के बारे में बात करने के लिए एक पुरुष डॉक्टर को देखने से हिचक रही थी, और तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

वह कहती हैं, "कई मामलों में, ग्रामीण पाकिस्तान में महिलाएं धार्मिक मौलवियों से सलाह लेती हैं. ये मौलवी उन्हें सलाह देते हैं कि वे स्तन कैंसर की जांच के लिए पुरुष डॉक्टरों के पास न जाएं.” इससे रोग की जांच में देरी होती है और तब तक प्रभावी उपचार के लिए बहुत देर हो चुकी होती है. मुख्तारन के मुताबिक, "हमें यह भी सलाह दी गई थी कि हम डॉक्टर के पास न जाएं या सर्जरी न कराएं.”

मुख्तारन माई अपनी भाभी को इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गईं, लेकिन जांच इत्यादि में लापरवाही के चलते इतनी देर हो चुकी थी कि उनका जीवन नहीं बचाया जा सका. माई कहती हैं कि वह अपने क्षेत्र की कम से कम छह महिलाओं को जानती हैं जिन्हें डॉक्टरों ने स्तन कैंसर की बायोप्सी कराने की सलाह दी थी, लेकिन वे ऐसा करने से हिचक रही हैं. वह कहती हैं, "स्तन कैंसर पर बात करना हमारे समाज में आज भी वर्जित है.”

पंजाब के ग्रामीण इलाके की एक अन्य युवती ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि उसके शहर के एक मौलवी ने उसे कहा कि उसके स्तन में तेज दर्द होने के बाद वह डॉक्टर के पास न जाए. युवती का कहना था कि एक पुरुष डॉक्टर के पास जाने से वह ‘शर्मिंदा' महसूस करती है और महिला चिकित्सक के पास जाने में अधिक सहज महसूस करती है.

रिपोर्टः एस खान, इस्लामाबाद