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ट्रंप बार-बार जर्मनी को अनदेखा क्यों कर रहे हैं

२३ अगस्त २०१९

ट्रंप जर्मनी के पड़ोसी देशों की यात्राएं तो कर रहे हैं लेकिन जर्मनी नहीं आ रहे. डी डे के आयोजन में मैर्केल से हाथ तक नहीं मिलाया था. जर्मनी और अमेरिका के कमजोर होते रिश्तों का दुनिया की राजनीति पर क्या असर हो सकता है.

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US-Präsident Donald Trump und Kanzlerin Merkel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld

अमेरिकी राष्ट्रपति यूरोप के दौरे पर आ रहे हैं. फिलहाल वे 23 अगस्त को जी7 देशों की बैठक में हिस्सा लेने फ्रांस आएंगे. और अगस्त के आखिर में दूसरे विश्वयुद्ध के शुरुआत की 80वीं सालगिरह के समारोह में शामिल होने पोलैंड जाएंगे. ट्रंप जर्मनी के पड़ोसी देशों में ही आ रहे हैं लेकिन उनकी अभी या निकट भविष्य में जर्मनी आने की कोई योजना नहीं है. पिछले दो सालों में ट्रंप और मैर्केल जर्मनी में सिर्फ एक बार मिले हैं. 2017 के जी20 सम्मेलन के दौरान हैम्बर्ग में हुई मुलाकात के अलावा ट्रंप और मैर्केल के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई. इन दो सालों में ट्रंप कभी बर्लिन भी नहीं आए.

दोनों के बीच परेशानी की वजह क्या है

वजह एक नहीं बहुत सारी हैं. जर्मनी का रक्षा खर्च, ईरान पर जर्मनी की राय, रूस की नोर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन का समर्थन और अमेरिका ने बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में हिस्सा लेने से चीन पर लगाए प्रतिबंध का मैर्केल का विरोध जैसे कुछ अहम मुद्दे हैं जिनकी वजह से मैर्केल और ट्रंप के रिश्तों में खटास आई है.

राजनीतिक तनाव के अलावा देखा गया है कि ट्रंप और मैर्केल के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. डी डे की सालगिरह पर हुए समारोह में भी ट्रंप और मैर्केल ने हाथ तक नहीं मिलाए थे. विदेशी संबंधों की जर्मन काउंसिल में अमेरिकी विशेषज्ञ योसेफ ब्रामल कहते हैं, "जर्मनी के साथ चल रहे उतार चढ़ाव के साथ ग्रीनलैंड को बेचने के इंकार के बाद ट्रंप ने सितंबर में प्रस्तावित डेनमार्क की यात्रा को रद्द कर दिया है. यह उनकी लेन-देन वाली नेतृत्व शैली को दिखाता है. ट्रंप अपने आप को एक बॉस की तरह देखते हैं. वो अपने स्पष्ट लक्ष्य और मांगें रखते हैं. उनके पूरा होने या ना होने पर वो दूसरों को फायदे या नुकसान के रूप में इनाम या सजा देते हैं. "

D-Day-Gedenkveranstaltung in Portsmouth | Bundeskanzlerin Angela Merkel (CDU) und Donald Trump
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld

ब्रामल के मुताबिक, "यही वजह है कि जर्मनी और डेनमार्क को 'सजा' दी जा रही है या उन्हें अनदेखा किया जा रहा है. पोलैंड फिलहाल कई मुद्दों पर अमेरिका का साथ देता दिख रहा है. इसलिए ट्रंप पोलैंड से खुश हैं. यही वजह है कि अमेरिका पर आजकल जर्मनी से ज्यादा पोलैंड का प्रभाव है.

पोलैंड का अमेरिका पर अधिक प्रभाव कैसे

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद जर्मनी और अमेरिका के रिश्तों की गर्मजोशी में कमी आई है. लेकिन ट्रंप के सत्ता में आने के बाद पोलैंड और अमेरिका की नजदीकियां बढ़ी हैं. वॉशिंगटन में एक हैरिटेज फाउंडेशन चलाने वाले नील गार्डिनर कहते हैं, "पोलैंड का जर्मनी से ज्यादा प्रभाव है. मैं कहूंगा कि पोलैंड ब्रिटेन के बाद अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी बन चुका है." हालांकि ब्रामल का कहना है कि पोलैंड को अमेरिका के साथ बने इन नए रिश्तों को लेकर थोड़ा सतर्क रहने की भी जरूरत है. वो कहते हैं, "पूर्वी यूरोप में ट्रंप के इन नए दोस्तों को बेवकूफ नहीं बनना चाहिए. जल्द ही या बाद में अमेरिका को चीन को काबू में करने के लिए रूस की जरूरत पड़ेगी. इसलिए उन्हें सतर्क रहना चाहिए. अमेरिका का यह कदम कहीं ना कहीं यूरोपीय संघ को बांटने की कोशिश जैसा है."

जर्मनी जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था कि जगह उन छोटे देशों को तरजीह देना जो यूरोपीय संघ के साथ फिलहाल टकराव की स्थिति में हैं. अमेरिका के पीटरसन इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक्स में सीनियर फेलो जैकब क्रिकगार्ड का कहना है, "यूरोप में ट्रंप के दौरे यूरोपीय संघ में फूट डालने की कोशिश ही है. उनकी सरकार ने यह तो एकदम साफ कर ही दिया है कि वो अब एकपक्षवाद के नहीं बहुपक्षवाद के समर्थन में हैं.

Frankreich 2018 Gedenken Ende Erster Weltkrieg | Trump, Merkel & Macron
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Tessier

जर्मन सरकार के अनुवाद सहयोगी पीटर बेयर कहते हैं कि अमेरिका के साथ जर्मनी के अच्छे रिश्ते होना प्राथमिकता में है लेकिन अमेरिका का ईयू के साथ बर्ताव ईयू की एकता के लिए ठीक नहीं है. ट्रंप लगातार ब्रेक्जिट पर ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन का साथ देते रहे हैं. इसके अलावा जर्मनी में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड ग्रेनेल ने कहा था कि अमेरिका अपनी सेना को जर्मनी से हटाकर पोलैंड में तैनात करने पर भी विचार कर सकता है. बेयर कहते हैं, "ट्रंप की सरकार शुरुआत से ही ईयू के सदस्य देशों के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश करती रही है. ईयू के सदस्य देशों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए."

रेबेका श्टाउडेनमायर/आरएस

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