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क्या जर्मनी में परमाणु बिजलीघरों की वापसी मुमकिन है?

येंस थुराऊ
२९ जनवरी २०२४

करीब एक साल पहले जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर दिया. लेकिन रेडियोधर्मी कचरे का निपटारा कैसे किया जाए, यह सवाल अब भी कायम है. साथ ही, कई नीति निर्माता नए परमाणु संयंत्र बनाने की भी मांग कर रहे हैं.

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परमाणु ऊर्जा, जीवाश्म ईंधनों के मुकाबले कहीं ज्यादा साफ विकल्प तो है, लेकिन इस तकनीक में काफी जोखिम है.
1970 के दशक से जर्मनी में परमाणु ऊर्जा के विरोध में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन शुरू हुए. तस्वीर: Tim Brakemeier/dpa/picture-alliance

लगभग एक साल पहले जर्मनी ने अपने आखिरी बचे तीन परमाणु बिजलीघरों को बंद कर दिया. परमाणु ऊर्जा उत्पादन की तकनीक अतीत का हिस्सा बना दी गई. एक वक्त था, जब परमाणु विखंडन में भविष्य देखा जाता था. 1960 के दशक की शुरुआत में जर्मनी के राजनेता और वैज्ञानिक सोचते थे कि यह तकनीक हवा को गंदा किए बिना, असीमित बिजली आपूर्ति का जरिया बनेगी. उस वक्त परमाणु दुर्घटनाओं के जोखिमों पर बहुत कम बात होती थी.

हाइंस श्मिटल, ग्रीनपीस में एटॉमिक एनर्जी विशेषज्ञ हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बताया कि उस दौर में राजनेता इस तकनीक को लेकर काफी उत्साहित थे, "न्यूक्लियर एनर्जी को शुरुआत से ही इस बात का फायदा मिला कि परमाणु हथियारों के कारण देशों को इस तकनीक में दिलचस्पी थी. एनर्जी कंपनियों की परमाणु ऊर्जा उत्पादन में दिलचस्पी नहीं थी. यह रुचि राष्ट्रीय स्तर से आई."

इस दौर में जर्मनी के अधिकतर हिस्से की हवा प्रदूषित थी. आसमान अक्सर स्मॉग से धुंधला रहता था, खासतौर पर बेहद औद्योगिक पश्चिमी रुहर इलाका. स्टील और कोयले से जुड़े ज्यादातर उद्योग-धंधे यहीं थे. कोयले से चलने वाले बिजलीघर बिजली का मुख्य स्रोत थे. परमाणु ऊर्जा इसका एक विकल्प थी, जो साफ ऊर्जा की उम्मीद दे रही थी.

तत्कालीन पूर्वी जर्मनी भी इसी राह पर था. यहां परमाणु ऊर्जा पर आधारित पहला व्यावसायिक बिजलीघर 1961 में खुला. बंटवारे से परे, जर्मनी के दोनों हिस्सों में उस वक्त इस तकनीक पर काफी भरोसा दिखाया जा रहा था. अगले कुछ वर्षों में जर्मनी के भीतर कुल 31 परमाणु रिएक्टर काम कर रहे थे.

थ्री माइल आइलैंड और चेर्नोबिल

1970 का दशक आते-आते रवैया बदलने लगा. पर्यावरण संरक्षण से जुड़े आंदोलनों ने रफ्तार पकड़ी और नए बिजलीघरों के निर्माण स्थलों पर प्रदर्शनकारी मुहिम चलाने लगे. यॉखेन फ्लासबाठ बताते हैं, "राजनीतिक तौर पर तटस्थ अपने अभिभावकों का विरोध कर रहे युवाओं के प्रदर्शनों के क्रम में ही यह परमाणु विरोधी मुहिम शुरू हुई. इसने एक बड़े परमाणु विरोधी प्रदर्शन का रूप ले लिया."   

1979 में अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड बिजलीघर में बड़ी दुर्घटना हुई. यह उस वक्त तक का सबसे बड़ा परमाणु हादसा था. ग्रीन पार्टी की श्टेफी लेम्के जर्मनी की वर्तमान पर्यावरण मंत्री हैं. वह बताती हैं, "परमाणु ऊर्जा को लेकर बना उत्साह तेजी से उस जगह पहुंचा, जहां लोगों को समझ आया कि न्यूक्लियर एनर्जी ऐसी चीज नहीं है जिसे हम नियंत्रित कर सकते हैं."

इसके बाद चेर्नोबिल में हादसा हुआ. यह परमाणु संयंत्र यूक्रेन में था, जो उस वक्त सोवियत संघ का हिस्सा था. 26 अप्रैल 1986 को रिएक्टर मेल्टडाउन ने एक बड़े परमाणु हादसे की शक्ल ली. चेर्नोबिल ने जर्मनी में भी परमाणु ऊर्जा पर पैदा हो रहे संशय को बढ़ाया. ग्रीनपीस के हाइंस श्मिटल कहते हैं, "उसके बाद परमाणु बिजलीघरों का निर्माण रुक गया. अकेले जर्मनी में ही 60 न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने की योजना थी."

1980 में परमाणु विरोधी आंदोलन से निकलकर ग्रीन पार्टी का गठन हुआ. न्यूक्लियर रिएक्टरों को बंद करवाना इसके मुख्य एजेंडे में शामिल था. 1983 में यह पार्टी जर्मन संसद के निचले सदन बुंडेसटाग पहुंची. 1998 में ग्रीन पार्टी पहली बार सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ गठबंधन बनाकर सरकार का हिस्सा बनी. दोनों पार्टियों ने परमाणु ऊर्जा को धीरे-धीरे इस्तेमाल से बाहर करने की कवायद शुरू की.

उस वक्त क्रिश्चियन डेमोक्रैट्स (सीडीयू) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) इस नीति के सख्त विरोधी थे. लेकिन फिर 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद सीडीयू और सीएसयू, दोनों ने ही अपना मत बदला. आखिरकार मार्च 2023 में जर्मनी का अंतिम न्यूक्लियर रिएक्टर भी बंद कर दिया गया.

ज्यादा परमाणु संयंत्र लगाने की मांग

अब फिर सीडीयू और सीएसयू परमाणु ऊर्जा पर अपनी नीति बदल चुके हैं. पार्टी के कई सदस्य नए रिएक्टर बनाए जाने की मांग कर रहे हैं. सीडीयू के नेता फ्रिडरिष मेर्त्स कह चुके हैं कि आखिरी परमाणु रिएक्टर बंद करना "जर्मनी के लिए एक स्याह दिन" था.

दोनों पार्टियों का यह भी कहना है कि पुराने रिएक्टरों को वापस बिजली ग्रिड से जोड़ देना चाहिए. मेर्त्स कहते हैं कि जर्मनी को वो तीन आखिरी बिजलीघर फिर शुरू करने चाहिए, जिन्हें सबसे अंत में बंद किया गया था. वो जलवायु संरक्षण और तेल-गैस की बढ़ती कीमतों को इसका आधार बताते हैं. हालांकि जर्मनी की हरित कंपनियों ने इन प्रस्तावों पर कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है.

पर्यावरण मंत्री श्टेफी लेम्के इस पर हैरान नहीं है. वह कहती हैं, "ऊर्जा कंपनियां बहुत पहले ही सामंजस्य बैठा चुकी हैं. वो अब भी जर्मनी में परमाणु संयंत्र लगाने के पक्ष में नहीं हैं. परमाणु ऊर्जा बहुत जोखिम से भरी तकनीक है, इससे निकला रेडियोधर्मा कचरा हजारों साल तक जहरीला बना रहेगा और कई पीढ़ियों के लिए मसला बना रहेगा."

फिनलैंड ने किया परमाणु कचरे का ठोस इंतजाम

किन देशों में इस्तेमाल होती है परमाणु ऊर्जा?

अभी दुनिया के 32 देशों में कुल मिलाकर 412 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं. कई नए संयंत्र बन रहे हैं, पुराने बंद हो रहे हैं, तो कुल मिलाकर कई साल से यह संख्या कमोबेश एक जैसी बनी हुई है. चीन, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों ने नए संयंत्र बनाने की घोषणा की है. बाकी देश छोटे और आधुनिक रिएक्टर बनाना चाहते हैं.

हाइंस श्मिटल के मुताबिक, छोटे रिएक्टर ऊर्जा उत्पादन की जगह सैन्य इस्तेमाल पर केंद्रित हैं. श्मिटल बताते हैं, "ऐसा एक रिएक्टर उत्तर कोरिया में है. यह समूचे देश के परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए ईंधन का उत्पादन करता है. इसका ध्यान आर्थिक कुशलता पर नहीं है. मुझे इस तरह के छोटे रिएक्टरों में ज्यादा खतरा दिखता है."

परमाणु कचरे का भंडारण

खतरनाक परमाणु कचरे को कहां रखा जाए, यह मसला जर्मनी में अब भी नहीं सुलझ पाया है. काफी लंबे समय से ऐसा कचरा परमाणु बिजलीघरों के पास अस्थायी जगहों पर रखा गया है. लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है.

संबंधित विभागों को उपयुक्त जगह की तलाश करनी होगी, उनका चुनाव करना होगा और टेस्ट ड्रिलिंग करवानी होगी. स्थानीय समुदाय अक्सर इसका विरोध करते हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि उनके नजदीक कहीं भी परमाणु कचरा दफनाया जाए. इसके अलावा इस अभियान की लागत और समयसीमा तय करना भी मुश्किल है.

परमाणु कचरे के सुरक्षित निपटारे की देखरेख करने वाली सरकारी एजेंसी में काम करने वाले डागमार डीमर कहते हैं, "मैं इस वक्त इनमें से किसी भी चीज का अनुमान नहीं लगा सकता. हमें कई इलाकों को देखना होगा. ड्रिलिंग में बहुत बड़ी लागत आएगी. केवल निर्धारण में ही लगभग 50 लाख यूरो खर्च होंगे." एजेंसी का अनुमान है कि परमाणु कचरे के भंडारण के लिए साल 2046 में एक संयंत्र तैयार हो सकता है. कुछ जानकारों का आकलन है कि इसमें करीब साढ़े पांच अरब यूरो की लागत आएगी.

तो क्या जर्मनी में परमाणु ऊर्जा की वापसी हो सकती है? पर्यावरण मंत्री श्टेफी लेम्के का मानना है कि इस बात का फैसला देश की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करेगा. वह कहती हैं, "कोई ऊर्जा कंपनी जर्मनी में परमाणु संयंत्र नहीं बनाएगी क्योंकि इसकी लागत बहुत ज्यादा है. बहुत बड़े स्तर पर सार्वजनिक और गोपनीय सब्सिडी से ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाए जा सकते हैं. इसमें बीमा से जुड़े प्रावधानों में आंशिक छूट भी शामिल होगी."

फिलहाल तो जर्मनी में परमाणु ऊर्जा इतिहास की ही चीज लगती है.