फैक्ट्रियों में काम नहीं करना चाहते चीनी युवा
२१ नवम्बर २०२२चीन के एक गांव में पले-बढ़े जूलियन जू को अपने पिता से मिलने का मौका साल भर में कुछ ही बार मिलता था. उनके पिता दक्षिणी ग्वांगडोंग प्रांत में एक कपड़ा मिल में काम करते थे. उनके पिता की पीढ़ी के लिए गांव की गरीबी से उबरने का जरिया फैक्ट्री की नौकरी ही हुआ करता था. हालांकि जू, और उन जैसे करोड़ों युवाओं के लिए फैक्ट्री की कम वेतन पर ज्यादा काम वाली यह नौकरी उतनी अहमियत नहीं रखती कि इसके लिए वह अपना जीवन होम कर दें.
32 वर्षीय जूलियन कहते हैं, "कुछ समय बाद तो यह वो काम है जो आपके जहन को कुंद कर देता है. मैं तो रोज-रोज वही काम नहीं कर सकता.” जूलियन ने कुछ साल पहले ही फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी थी. अब वह पाउडर वाला दूध बेचकर और स्कूटर से डिलीवरी करके अपना परिवार चला रहे हैं.
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जूलियन जैसे 20 और 40 के बीच के लाखों चीनी युवा फैक्ट्रियों में काम करने से कतराने लगे हैं. इस कारण चीन के फैक्ट्री मालिकों के लिए हालात काफी परेशानी भरे बनते जा रहे हैं क्योंकि उनके पास काम करने वाले लोग कम होते जा रहे हैं. ये चीनी फैक्ट्री मालिक दुनिया के कुल उपभोग का लगभग एक तिहाई उत्पादन करते हैं.
फैक्ट्री मालिकों का कहना है कि अगर उन्हें युवा मजदूर मिलेंगे तो वे ज्यादा तेजी से और ज्यादा मात्रा में उत्पादन कर पाएंगे. लेकिन इसके लिए उन्हें युवाओं को ज्यादा तन्ख्वाहें देनी होंगी और काम के हालात भी बेहतर करने होंगे. तभी युवा चीनी इस काम की ओर आकर्षित होंगे.
एक और विकल्प ऑटोमेशन है लेकिन छोटे उद्योग कहते हैं कि ऑटोमेशन तकनीक में निवेश या तो वहनीय ही नहीं है या फिर व्यावहारिक नहीं है क्योंकि महंगाई के कारण चीन के बड़े निर्यात बाजारों में मांग कम हो रही है.
सबको चाहिए नौजवान कर्मचारी
चीन के 80 प्रतिशत से ज्यादा निर्माता कामगारों की कमी से जूझ रहे हैं. मजदूरों की यह कमी लाखों से लेकर करोड़ों तक में है. सीआईआईसी कंसल्टिंग का एक सर्वेक्षण कहता है कि जितने कामगारों की जरूरत है उसके 10 से 30 प्रतिशत की कमी है. चीन के शिक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि 2025 तक मैन्युफैक्चरिंग में 3 करोड़ मजदूरों की कमी होगी जो कि ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी के बराबर है.
कागजों पर देखा जाए तो मजदूरों की यह कमी कहीं नजर नहीं आती. चीन में 16 से 24 साल के लगभग 18 फीसदी युवा बेरोजगार हैं. इसी साल एक करोड़ से ज्यादा युवा ग्रैजुएट होकर रोजगार के काबिल हो गए हैं. लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में कहानी अलग है. और कोविड के कारण देश की अर्थव्यवस्था यूं भी अपनी जड़ों से हिली हुई है. प्रॉपर्टी मार्किट में गिरावट और तकनीकी व अन्य निजी क्षेत्रों पर सरकारी नियमों की सख्ती के कारण अर्थव्यवस्था दशकों में अपनी सबसे धीमी विकास दर से गुजर रही है.
दक्षिणी चीन में यूरोपियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष क्लाउस सेंकेल दो दशक पहले चीन चले गए थे. तब यूनिवर्सिटी से पास होने वाले ग्रैजुएट आज के मुकाबले दस फीसदी भी नहीं थे और देश की अर्थव्यवस्था का आकार अब से 15 गुना छोटा था. सेंकेल शेनजेन में एक फैक्ट्री चलाते हैं. 50 मजदूरों वाली इस फैक्ट्री में वह मैग्नेटिक शील्ड बनाते हैं जो अस्पतालों में काम आती हैं.
सेंकेल बताते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में हाल के सालों में आए उछाल ने युवाओं की महत्वाकांक्षाओं को पंख दिए हैं और अब फैक्ट्री में काम करने की इच्छा लगातार कम हो रही है. वह बताते हैं, "युवाओं के लिए यह काम करना बहुत आसान है. वे सीढ़ियों पर चढ़ सकते हैं, मशीनों को आसानी से संभाल सकते हैं, औजारों से काम कर सकते हैं. लेकिन हमारे ज्यादातर कर्मचारी 50 से 60 साल के बीच के हैं. जल्दी ही हमें युवाओं की जरूरत होगी लेकिन यह बहुत मुश्किल है. वे लोग आते हैं, एक नजर मारते हैं और नहीं, धन्यवाद कहकर चले जाते हैं.”
क्या है विकल्प?
विनिर्माण में काम करने वाले लोग कहते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए उनके पास तीन मुख्य विकल्प हैं. वे अपना मुनाफा कम करें और तन्ख्वाह बढ़ाएं ताकि युवाओं को आकर्षित किया जा सके, ऑटोमेशन में निवेश करें. या फिर भारत और वियतनाम जैसे सस्ते बाजारों में चले जाएं. लेकिन इन तीनों विकल्पों में से आसान कोई भी नहीं है.
चीन के नीति-निर्माता ऑटोमेशन पर जोर देते हैं और बूढ़े होते मजदूरों की समस्या को मशीनी आधुनिकीकरण से हल करने पर जोर देते हैं. इलेक्ट्रिक बैट्री के क्षेत्र में काम करने वाले फैक्ट्री मालिक लू बताते हैं कि उन्होंने आधुनिक मशीनों में निवेश किया. लेकिन इसके कारण उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. वह बताते हैं कि उम्रदराज मजदूर नई तकनीक को नहीं समझते हैं और वे तेजी से काम नहीं कर पाते हैं.
कई अन्य फैक्ट्री मालिकों की तरह लू ने भी अपना पूरा नाम नहीं बताया. वह कहते हैं कि उन्होंने युवाओं को पांच प्रतिशत ज्यादा तन्ख्वाह देकर आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन तब भी नाकाम रहे. अपनी स्टील फैक्ट्री में महंगी आधुनिक मशीनें लगाने वाले डोटी कहते हैं कि पैकेजिंग के लिए तो मशीन लगा ली है लेकिन बाकी कामों के लिए मशीनें लगाना बहुत महंगा पड़ेगा. वह कहते हैं कि युवा कर्मचारियों का कोई विकल्प नहीं है.
युवाओं की प्राथमिकताएं बदल गई हैं. कम आय वाली नौकरियां करने की बजाय वे अच्छी पढ़ाई करना चाहते हैं. इस साल 46 लाख चीनियों ने पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री के लिए आवेदन दिया है, जो कि एक रिकॉर्ड है. इसी महीने सरकारी मीडिया में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि हर सरकारी नौकरी के लिए औसतन छह हजार आवेदन आ रहे हैं.
वैसे, अर्थशास्त्री इस पूरी स्थिति का एक और पहलू देख रहे हैं. वह कहते हैं कि बाजार की ताकतें चीनी युवाओं और विनिर्माण उद्योग दोनों को अपनी महत्वाकांक्षाएं दबाने के लिए मजबूर कर सकती हैं. हांगकांग यूनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफेसर जीवू चेन कहते हैं, "मजदूरों की यह कमी दूर होने से पहले युवाओं के लिए बेरोजगारी की समस्या को और बुरा होना होगा. 2025 तक मांग निश्चित तौर पर नीचे चली जाएगी और तब कामगारों की इतनी कमी नहीं रहेगी.”
वीके/एनआर (रॉयटर्स)