200 हाथियों को क्यों मार रहा है जिम्बाब्वे
जिम्बाब्वे अपने 200 हाथियों को मार देगा. सरकार ने कहा है कि देश में "जरूरत से ज्यादा" हाथी हैं.
शिकारियों को दिया गया आदेश
जिम्बाब्वे ने 200 हाथियों को मारने का फैसला किया है. शिकार करके हाथियों की जान ली जाएगी. शिकार ऐसे इलाकों में होगा, जहां हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं हुई हैं. इनमें देश का सबसे बड़ा अभयारण्य ह्वांगे नेशनल पार्क भी शामिल है. खबरों के मुताबिक, पड़ोसी देश नामीबिया की ही तरह जिम्बाब्वे में भी हाथियों को मारकर उनका मांस स्थानीय समुदायों में बतौर खाना बंटवाया जाएगा.
नामीबिया में भी सैकड़ों वन्यजीव मारे जाएंगे
इससे पहले पड़ोसी देश नामीबिया ने हाथी, जेबरा और गैंडों समेत 700 से ज्यादा वन्यजीवों को मारकर लोगों में उनका मांस बंटवाने का फैसला किया था. इससे पहले भी वहां 150 से ज्यादा जंगली जानवर शिकार किए जा चुके हैं. सरकार ने कहा है कि देश में 20,000 हाथी हैं और कुछ को मारने से सूखा प्रभावित देश में चरागाहों और जल स्रोतों पर दबाव कम होगा. नामीबिया-जिम्बाब्वे समेत कई अफ्रीकी देशों में भीषण सूखा पड़ रहा है.
कितने हाथी हैं जिम्बाब्वे में?
हाथियों की आबादी में जिम्बाब्वे, अफ्रीका में दूसरे नंबर पर है. देश में करीब 1,00,000 हाथी हैं. इससे ज्यादा हाथी केवल बोत्स्वाना में हैं, जहां उनकी आबादी 1,30,000 से ज्यादा है. जिम्बाब्वे के पर्यावरण मंत्री मंगालिसो दलोवु ने बीते हफ्ते संसद में बताया कि अभयारण्य और वन्यजीव प्राधिकरण को निर्देश दिया गया है कि वे हाथियों को मारना शुरू करें. उन्होंने कहा, "देश में जरूरत से ज्यादा हाथी हैं."
एक सदी पहले तक अलग थी स्थिति
जिम्बाब्वे हाथियों के संरक्षण से जुड़ी कोशिशों की कामयाबी पर गर्व महसूस करता है. 2021 में जारी जिम्बाब्वे ऐलिफैंट मैनेजमेंट प्लान के मुताबिक, 19वीं सदी के आखिर तक आते-आते अफ्रीका के ज्यादातर हिस्से में हाथियों की आबादी बहुत कम रह गई थी. दांत के लिए हाथियों का बड़े स्तर पर शिकार होता था. साल 1897 में तकरीबन 1,00,000 टन हाथीदांत अफ्रीका से दूसरे देशों में बेचा गया.
हाथियों के पूरी तरह खत्म होने का जोखिम था
हालत इतनी गंभीर थी कि सन् 1900 आते-आते यह आशंका उठने लगी कि जैम्बीजी नदी के दक्षिण (जिम्बाब्वे, बोत्स्वाना, नामीबिया) में तो शायद हाथी विलुप्त हो जाएंगे. जैम्बीजी, अफ्रीका की चौथी सबसे बड़ी नदी है. जैम्बीजी नदी का इलाका अफ्रीका के सबसे अहम वन्य क्षेत्रों में है. मशहूर विक्टोरिया फॉल्स, इसी नदी पर एक विशाल झरना है. हालांकि, 20वीं सदी में संरक्षण की कोशिशों के कारण हाथियों की आबादी में इजाफा हुआ.
जिम्बाब्वे में पहले भी मारे जा चुके हैं हजारों हाथी
यह पहली बार नहीं है, जब जिम्बाब्वे अपने हाथियों को मार रहा हो. जिम्बाब्वे अभयारण्य एवं वन्यजीव प्रबंधन प्राधिकारण की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 से 1989 के बीच करीब 45,000 हाथी मार दिए गए. रिपोर्ट में इसका कारण "हाथियों की जनसंख्या में वृद्धि को सीमित करना" बताया गया है.
हाथियों को मारने का क्या तर्क दिया गया?
रिपोर्ट के मुताबिक, संरक्षित इलाकों में हाथियों की जनसंख्या वृद्धि को सीमित करने का आधारभूत तर्क "वन क्षेत्रों पर उनका दबाव घटाना" और "हाथियों के कारण कुदरती आवास में बदलाव के चलते वनस्पतियों और जीव प्रजातियों के नुकसान को कम करना" था. रिपोर्ट में लिखा है कि "जंगल और संबंधित जैव विविधता पर हाथियों का असर अब भी चिंता का विषय है."
1980 में तय हुआ, देश में कितने हाथ होंगे
जिम्बाब्वे ने 1980 में तय किया कि पूरे देश में हाथियों की कुल आबादी 41,000 तक सीमित रखी जाएगी. इसके बाद 1990 से 2006 के बीच हाथियों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी और अभी यहां हाथियों की अनुमानित जनसंख्या 1,00,000 के करीब है. अब भीषण सूखे के बीच सरकार हाथियों को मारना जरूरी ठहरा रही है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
जिम्बाब्वे के इस कदम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हो रही है. फराई मगुवु, नैचुरल रिसोर्स गवर्नेंस नाम की एक गैर-सरकारी संगठन के निदेशक हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "सूखे से निपटने के लिए सरकार के पास ज्यादा टिकाऊ और ईको-फ्रेंडली तरीके होने चाहिए, जो पर्यटन पर असर ना डालें."
पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं हाथी
जिम्बाब्वे आने वाले सैलानियों के बीच हाथी बड़ा आकर्षण हैं. कई विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि हाथियों को मारने के कारण जिम्बाब्वे आने वाले सैलानियों की संख्या घट सकती है. फराई मगुवु भी ऐसी ही राय जताते हुए एएफपी से कहते हैं, "जिंदा हाथी ज्यादा फायदेमंद हैं." मगुवु हाथियों को मारने का फैसला "अनैतिक" बताते हुए कहते हैं कि सरकार का यह रुख कुदरती संसाधनों के खराब रखरखाव को भी रेखांकित करता है.
सरकारी फैसले के समर्थक भी हैं
कुछ पर्यावरण कार्यकर्ता हाथियों को मारने का समर्थन भी कर रहे हैं. क्रिस ब्राउन, 'नामीबियन चैंबर ऑफ एनवॉयरमेंट' नाम के एक संगठन में सीईओ और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. उन्होंने एएफपी से कहा, "अगर हाथियों को अनियंत्रित रूप से लगातार बढ़ने दिया जाए, तो कुदरती परिवेश पर गंभीर असर पड़ता है. वे ईकोसिस्टम को सच में नुकसान पहुंचाते हैं और अन्य प्रजातियों पर गंभीर असर डालते हैं."
सूखे के कारण तबाही
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, जिम्बाब्वे की करीब 42 फीसदी आबादी गरीबी में जी रही है. यहां लंबे सूखे के कारण पानी और खाने का गंभीर संकट है. यूनिसेफ के मुताबिक, जलवायु से जुड़े 'अल-नीनो' पैटर्न के कारण जिम्बाब्वे समेत कई अफ्रीकी देशों में सूखे का संकट विकराल हो गया है. इसकी वजह से बड़े स्तर पर फसलें खराब हुईं, पानी के स्रोत खत्म हो गए, चरागाह तबाह हो गए.