अंटार्कटिक के 'सुपरकूल' पानी को मापना अब होगा आसान
१७ जनवरी २०२२अंटार्कटिक सागर का पानी बेहद ठंडा है. यह बेहद ठंडा असल में कितना ठंडा है, यह हम अब जान पाएंगे. इस पानी के तापमान को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने एक अत्याधुनिक उपकरण बनाया है. इसका नाम है- हाई प्रिसिजन सुपरकूलिंग मेजरमेंट इंस्ट्रूमेंट.
न्यूजीलैंड, नॉर्वे और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इसे बनाया है. यह उपकरण बताएगा कि अंटार्कटिक सागर के ऊपर जमी बर्फ के नीचे मौजूद पानी कितना ठंडा होता है. इस 'सुपरकूलिंग यंत्र' को एक छोटे, रिमोट कंट्रोल से संचालित रोबोट पर रखकर समंदर में जमी बर्फ के नीचे भेजा जा सकता है, ताकि यह वहां के पानी का ठीक-ठीक तापमान माप सके.
पहेली है अंटार्कटिक के नीचे की दुनिया
यूनिवर्सिटी ऑफ ओटागो की डॉक्टोरल छात्र मारेन रिक्टर ने बताया कि बर्फ की मोटी तहों के नीचे समंदर का पानी एक बड़ी पहेली की तरह है. रिसर्चर अभी इसके बारे में बहुत नहीं जानते हैं. रिक्टर ने कहा, "अंटार्कटिक के ऊपर जमी बर्फ की मोटी तह रॉस आइस सेल्फ के मुकाबले हम डार्क साइड कहे जाने वाले चांद के दूसरी तरफ के हिस्से के बारे में ज्यादा जानते हैं."
रिक्टर ने बताया कि अंटार्कटिक के पानी का तापमान मापने वाला नया यंत्र बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. इसकी मदद से वैज्ञानिक समझ सकेंगे कि समुद्र, उसपर जमी बर्फ और वातावरण, ये तीनों साथ मिलकर कैसे काम करते हैं. ये सभी तत्व किस तरह एक-दूसरे से जुड़े हैं, यह भी जाना जा सकेगा.
रिक्टर बोलीं, "इनकी गणना बड़े स्तर पर बनाए गए मॉडलों के माध्यम से की जाती है. मॉडल जितने अधिक सटीक होंगे, छोटे स्तर पर उनकी सटीकता जितनी ज्यादा होगी, उनसे मिलने वाली जानकारियों की सटीकता बड़े स्तर पर भी उतनी ही अधिक होगी. मसलन, भविष्य में न्यूजीलैंड का मौसम कैसा रहेगा, यह हम अधिक स्पष्टता से बता सकेंगे."
सुपरकूल: ठंडे से भी ठंडा
अंटार्कटिक में बर्फ की सतह के नीचे कई बार पानी का तापमान जमने के पॉइंट से नीचे होता है, लेकिन फिर भी यह जमता नहीं है. द्रव्य रूप में ही रहता है. इस प्रक्रिया को सुपरकूलिंग कहते हैं. ओटागो यूनिवर्सिटी की छात्रा इंगा स्मिथ ने बताया कि समुद्र का पानी आमतौर पर माइनस 1.9 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर जम जाता है. लेकिन जब बर्फ की मोटी परत के नीचे बहकर आया ताजा पानी जब खारे पानी से मिलता है, तो यह बेहद ठंडा हो जाता है. स्मिथ ने बताया, "तब यह होता तो द्रव है, लेकिन जमने वाले बिंदु यानी फ्रीजिंग पॉइंट से नीचे. "
अंटार्कटिक के ऊपर जमी बर्फ की सतह सैकड़ों मीटर मोटी है. इसके चलते समुद्र के बाकी हिस्सों की तरह इस हिस्से में पहुंचना और इससे जुड़ी जानकारियां हासिल करना बहुत मुश्किल है. जलवायु परिवर्तन के चलते हमारी धरती तेजी से गर्म हो रही है. पर्यावरण में गर्मी और उष्मा की जितनी मात्रा बढ़ी है, उसका 90 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा समुद्रों ने सोख लिया है. ऐसे में जलवायु से जुड़े शोधों के लिए समुद्र के तापमान की सटीक जानकारी बेहद जरूरी है.
शोध में चुनौती
इस दिशा में एक बड़ी चुनौती हैं, विशेष उपकरणों की कमी. हमारे पास ऐसे यंत्रों की कमी है, जो समुद्र के ऊपर तैर रहे हिमखंडों और बर्फ की तहों के नीचे गहराई में जाकर समुद्र का तापमान को माप सकें.
समुद्र पर शोध करने वाले ओशियनोग्राफर और पोलर इंजीनियर लंबे समय से इस चुनौती से जूझते रहे हैं. उम्मीद है कि अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से वैज्ञानिकों को अंटार्कटिक की सतह के नीचे की जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी.
एसएम/एनआर(डीपीए)