अपनी सत्ता के लिए खासी महिलाओं ने भरी हुंकार
१ अगस्त २०१८भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में मौजूद मेघालय को जो बात खास बनाती है, वह है मातृसत्ता. मातृसत्ता का मतलब यहां महिलाओं का वर्चस्व है. बाकी हिस्सों में जहां शादी के बाद बच्चे पिता के वंशज कहलाते हैं जबकि यहां शादी के बाद बच्चे पिता के बजाए मां का उपनाम लगाते हैं. यहां खासी नाम प्रमुख जनजाति की महिलाओं को दूसकी जनजाति के पुरुषों से शादी करने का हक है. लेकिन अब यही मुद्दा बनता जा रहा है.
पिछले महीने मेघालय डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ऑफ खासी हिल्स की ओर से खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट (खासी सोशल कस्टम ऑफ लाइनेज) एक्ट 1997 में संशोधन किया गया है. संशोधित नियमों के अनुसार, गैर खासी समुदाय के सदस्यों से शादी करने पर खासी जनजाति की महिलाओं को इस जनजाति के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित होना पड़ेगा. संशोधित नियमों के अनुसार, कोई भी खासी समुदाय की महिला जो गैर खासी समुदाय के सदस्य से शादी करती है या उसके गैर खासी समुदाय के सदस्य से बच्चे होते हैं तो उस महिला के साथ-साथ उन बच्चों को भी खासी समुदाय में शामिल नहीं माना जाएगा. ये सभी खासी समुदाय के तहत मिलने वाली सुविधाओं के लिए किसी भी प्रकार दावा पेश नहीं कर पाएंगे. इसमें जमीन का मालिकाना हक प्रमुख रूप से शामिल है.
बता दें, खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल पश्चिमी खासी हिल्स, पूर्वी खासी हिल्स और रि-भोई जिले को कवर करती है. अगर राज्य सरकार इस बिल को मान्यता दे देती है तो खासी समुदाय की परंपरा पर असर पड़ेगा.
'स्वतंत्रता पर हमला'
खासी महिलाओं का कहना है कि ये नियम गलत हैं और उनकी स्वतंत्रता पर हमला है. यह बिल सीधे-सीधे मातृसत्ता को खत्म करने की साजिश है क्योंकि इसके बाद उनके गैर खासी पति से पैदा हुए बच्चे खासी वंशज नहीं कहलाएंगे. जनजाति को मिलने वाली सुविधाएं और जमीन का स्थाननांतरण खत्म हो जाएगा.
वहीं, मेघालय डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ऑफ खासी हिल्स का कहना है कि ऐसा जनजाति की पहचान को बरकरार रखने के लिए किया जा रहा है. काउंसिल के प्रमुख एच. एस शैला का कहना है, ''जनजाति में तरह-तरह की शादियां हो रही हैं. जमीन पर मालिकाना हक बचाने के लिए यही उपाय है.''
'नए नियम के पीछे है पितृसत्तामक सोच'
हालांकि स्थानिय अखबार की संपादक और एक्टिविस्ट पैट्रिकिया मुखिम काउंसिल की बात से सहमत नहीं हैं. उनके मुताबिक, खासी समुदाय में अलग-अलग समुदायों या जनजातियों में शादियां होना कोई नई बात नहीं है. यह सदियों से होता आ रहा है. नए नियम पितृसत्तात्मक सोच रखने वालों ने बनाए है.
खासी जनजाति की महिलाएं सोशल मीडिया पर अपनी आवाज उठा रही हैं. उनके साथ देश के दूसरे हिस्सों की महिलाएं भी जुड़ चुकी हैं और बिल का विरोध कर रही है.
वीसी/एनआर (रॉयटर्स)
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