अफ्रीका में दखल बढ़ाने की फिराक में रूस
२५ अक्टूबर २०१९पिछले महीने सैकड़ों रूसी सैनिक बड़ी संख्या में युद्धक हैलीकॉप्टरों, अत्याधुनिक सैन्य साजो सामान और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ मोजाम्बिक पहुंचे. दक्षिण अफ्रीका के आतंकवाद विशेषज्ञ जासमिन ओपरमन ने ये जानकारी दी. ऐसी खबरें हैं कि इन सैनिकों को दक्षिण पूर्वी अफ्रीका के अशांत लेकिन गैस के धनी प्रांत काबो डेलगाडो में तैनात किया जाएगा. आधिकारिक रूप से रूसी सैनिकों की मौजूदगी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी जाती लेकिन रूसी झंडे एक बार फिर अफ्रीका में नजर आ रहे हैं.
इसका एक बढ़िया सबूत पहले रूस अफ्रीका सम्मेलन के रूप में भी मिला जो इस हफ्ते सोची में हुआ. इसमें करीब 40 अफ्रीकी देशों के 10 हजार से ज्यादा लोग पहुंचे. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 54 अफ्रीकी देशों के राष्ट्प्रमुखों को इसके लिए न्यौता भेजा था. रूसी राष्ट्रपति अफ्रीका को "बढ़ती संभावनाओं का महादेश" बता रहे हैं और अरबों डॉलर के निवेश की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
रूस अफ्रीका के साथ अपने संपर्कों को सोवियत संघ के विघटन के करीब तीन दशक बाद फिर से मजबूत कर रहा है. रूस के प्रभाव में पश्चिम के कई उपनिवेशों ने आजादी हासिल की थी. सोवियत संघ ने कई अफ्रीकी देशों को अपनी अर्थव्यवस्था विकसित करने में मदद की. लाखों अफ्रीकी लोगों ने रूस में जाकर पढ़ाई की है. रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज के उप निदेशक लियोनिड फितुनी का कहना है कि रूस को अफ्रीका के मौजूदा "अप्रत्याशित लाभ" वाले माहौल से फायदा मिल सकता है. फितुनी चीन का उदाहरण देते हैं कि वह कैसे बीते सालों में इस महादेश में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के दबाव से मुक्त रह कर रूस बढ़ते अफ्रीकी बाजारों का भरपूर फायदा उठा सकता है. फितुनी का कहना है, "हमारे हथियारों में उनकी बहुत दिलचस्पी है, खासतौर से जब हमने क्षेत्रीय विवाद के इलाकों में उनकी सफलता से तैनाती की है."
पुतिन ने हाल ही में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसी से मुलाकात की थी. सिसी इस वक्त अफ्रीकी संघ के चेयरमैन है और माना जा रहा है कि इस मुलाकात में हथियारों के बारे में ही ज्यादा बात हुई. रूस इन देशों को अनाज और कृषि के उपकरण, विमान और अंतरिक्ष तकनीक, ट्रक, रसायन और दवाइयां निर्यात करना चाहता है. कहा जा रहा है कि अगले कुछ सालों में रूस का अफ्रीकी देशों से व्यापार तीन गुना बढ़ सकता है. फिलहाल यह 20 अरब अमेरिकी डॉलर का है. इसकी तुलना में चीन का अफ्रीका से व्यापार पहले ही 10 गुना से ज्यादा है. आर्थिक हितों के अलावा रूस की नजर भूराजनैतिक समीकरणों पर भी है और वह अफ्रीका को चीन या पश्चिमी देशों के हाथ में नहीं छोड़ना चाहता, खासतौर से अमेरिका के तो बिल्कुल नहीं. अफ्रीका के लिए जर्मनी के विशेष दूत गुंटर नूके के मुताबिक, "रूस सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में भारी हथियारों के साथ सबसे पहले आया है." कांगो से लेकर मिस्र तक और सूडान से लेकर सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक तक अफ्रीका में बढ़ते रूसी दखल के संकेत मिल रहे हैं. मोजाम्बिक में तो रूसी तथाकथित निजी अर्धसैनिक सुरक्षा सेवा और सैन्य सलाहकार भी मौजूद हैं.
दक्षिण अफ्रीका में रूस के राजदूत इल्या रोगाच्योव ने प्रीटोरिया यूनिवर्सिटी के एक सेमिनार में कहा, "निजी सैन्य कंपनियां उतनी बुरी भी नहीं हैं." जब उन पर जवाब देने के लिए दवाब बनाया गया तो उन्होंने डेली मावेरिक ऑनलाइन न्यूज से इस बात की पुष्टि की कि रूस का इस तरह की कंपनियों पर राजनीतिक नियंत्रण है.
इस तरह के अर्धसैनिक गुटों के बारे में रिपोर्टिंग जानलेवा भी हो सकती है. पिछले साल सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में तीन रूसी पत्रकारों की हत्या का आरोप एक अर्धसैनिक गुट पर लगा. हालांकि कथित अर्धसैनिक गुट वागनर की इसमें संभावित भूमिका का साफ साफ पता नहीं चल सका. रूस की दिलचस्पी केवल अफ्रीका के कच्चे माल पर ही नहीं है. अफ्रीकी देशों में विदेशी कंपनियां गैस के भंडारों तक अपनी पहुंच बना रही हैं और अकसर उन्हें इस्लामी आतंकवादियों की मुसीबत का सामना करना पड़ता है. अफ्रीका में रूस की दिलचस्पी में रणनीतिक और कारोबारी हित अकसर आपस में गहरे जुड़े होते हैं.
जंग से लहुलुहान मोजम्बिक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जहां रूस अकसर अपने पुराने संपर्कों पर भरोसा करता है. शीतयुद्ध के जमाने में अफ्रीका में छद्मयुद्ध चल रहे थे जिनमें रूसी सेना की भी भूमिका होती थी. कई अफ्रीकी राजनेताओं ने रूस में जाकर पढ़ाई भी की है.
रूस दक्षिण अफ्रीका के साथ भी अपने संपर्कों को मजबूत कर रहा है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स के साथ भी रूस अपनी करीबियां बढ़ा रहा है.
रंगभेद खत्म होने के बाद दक्षिण अफ्रीका को परमाणु ऊर्जा तकनीक बेचने की रूस की योजना नाकाम हो गई लेकिन अब वह सैन्य सहयोग बढ़ाना चाहता है. अगले महीने रूसी जहाजों के अफ्रीकी तटों पर पहुंचने की उम्मीद है जहां रूसी सेना अफ्रीका और चीन के साथ तीन देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेगी.
एनआर/एके(डीपीए)
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