अब आसान जले का इलाज
११ दिसम्बर २०१२बर्लिन के डाक्टरों ने जलने का शिकार हुए मरीजों के लिए स्प्रे तकनीक को ऐसा ढाला है कि वे तेजी से सामान्य जीवन में वापस लौट सकते हैं. त्वचा पर स्प्रे तकनीक के इस्तेमाल वाले इलाज को क्रांतिकारी खोज के रूप में देखा जा रहा है.
स्प्रे तकनीक की शुरुआती खोज का श्रेय ऑस्ट्रेलियाई मूल के सर्जन फिओना वुड को जाता है जिन्होंने इस विधि का इस्तेमाल 2002 में बाली में हुई बमबारी के पीड़ितों के लिए किया था. लेकिन बर्लिन के डॉक्टरों ने इस तकनीक को और विकसित कर इस काम को अंजाम देने का ऐसा रास्ता निकाला है जिसमें सिर्फ कुछ घंटे ही लगते हैं.
दिलचस्प बात यह है कि इस तकनीक में इलाज के लिए शरीर की ही स्वस्थ त्वचा का इस्तेमाल होता है. मरीज की त्वचा का कुछ हिस्सा चार से पांच दिनों के लिए एक जैविक कल्चर में रखा जाता है. और फिर उससे यह स्प्रे तैयार करके दोबारा उसी शरीर के जले हुए हिस्से पर छोड़ा जाता है. बर्लिन के ट्रॉमा अस्पताल में डाक्टर अब इस स्प्रे को सिर्फ डेढ़ घंटों में ही तैयार कर रहे हैं. जिससे कि मरीज को जल्द से जल्द राहत पहुंचाई जा सके.
कैसे है स्प्रे तकनीक अलग
पेगी और रेगिनाल्ड रोठबार्थ को देख कर ऐसा नहीं लगता कि यह दम्पत्ति कभी किसी ऐसे हादसे का शिकार हुआ था, जिसमें इनके चेहरे, गर्दन और हाथ पांव समेत शरीर का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जल गया था. यह हादसा तब हुआ जब पेगी और रेगिनाल्ड जून 2009 में सार्डीनिया में छुट्टी मना रहे थे और गैस लीक होने से उनके अपार्टमेंट में आग लग गई. इटली में शुरुआती इलाज के बाद वे वापस जर्मनी लाए गए जहां बर्लिन के ट्रॉमा अस्पताल में उनका इसी तकनीक से इलाज हुआ. रेगिनाल्ड बताते हैं कि जब उन्होंने रिहैब सेंटर में दूसरे मरीजों की हालत देखी तब उन्होंने अपने आप को खुशकिस्मत महसूस किया कि उन्हें स्प्रे इलाज मिल पाया. उनका कहना है कि बाकी मरीजों की तरह उनके शरीर पर किसी तरह के भद्दे निशान नहीं हैं जो कि मानसिक रूप से कहीं दुखदाई हो सकता था.
रेगिनाल्ड और उनकी पत्नी का इलाज करने वाले डॉक्टर हार्टमन कहते हैं कि स्प्रे तकनीक का इलाज सिर्फ दूसरी डिग्री के जलने के घावों के इलाज के लिए ही हो सकता है. तीसरे या चौथे डिग्री के जख्मों को इस तकनीक से दूर करना फिलहाल मुमकिन नहीं है. इस दम्पत्ति का इलाज करते समय उन्हें स्प्रे के अलावा त्वचा की ग्राफ्टिंग भी करनी पड़ी थी.
क्यों है स्प्रे तकनीक फायदेमंद
हैम्बर्ग के त्वचा शोध संस्थान के डायरेक्टर प्रोफेसर मथिआस ऑगुस्टिन कहते हैं कि इस तकनीक की सबसे अच्छी बात यह है कि इससे फायदा बहुत जल्द मिलता है. जहां ग्राफ्टिंग जैसे इलाज में जख्म के भरने में कई हफ्ते लग जाते हैं वहीं स्प्रे के जरिए इलाज कुछ दिनों में ही राहत पहुंचाता है. दूसरी अच्छी बात यह है कि चूंकि इलाज में मरीज के अपने ही शरीर की कोशिकाएं इस्तेमाल होती हैं, इसलिए शरीर इसे बड़ी सहजता से स्वीकार लेता है. इस प्रकार के इलाज से मरीजों के चेहरे जैसे अहम हिस्सों पर दाग नहीं रहते, जिससे कि उनकी मानसिक हालत भी काफी अच्छी रहती है. जो कि जलने जैसे हादसे के बाद मरीज के लिए आम तौर पर बेहद मुश्किल होता है.
हार्टमन ने बताया कि वह स्प्रे तकनीक को और विकसित करने के लिए और आगे भी रिसर्च कर रहे हैं. इस रिसर्च में उनके साथ जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर सेल एंड टिशू रिप्लेसमेंट भी शामिल है. हार्टमन को उम्मीद है कि इस रिसर्च की कामयाबी पर अगले पांच सालों में वे स्प्रे तकनीक के जरिए और गहरे जख्मों का भी इलाज कर पाएंगे.
रिपोर्ट: चिनामन निपर्ड/समरा फातिमा
संपादन: महेश झा