अभिनव बिंद्रा से सुनहरी उम्मीदें
७ सितम्बर २०१०1998 के कॉमनवेल्थ खेलों में जब बिंद्रा हिस्सा लेने पहुंचे तो वह सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे. वह बस 15 साल के थे. इसके तीन साल बाद म्यूनिख में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में बिंद्रा ने कांस्य पदक जीत कर निशानचियों की दुनिया में अपनी मौजूदगी का अहसास कराया. वहां उन्होंने 597/600 के स्कोर के साथ नया जूनियर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. लेकिन असली स्टार वह दो साल पहले बने, जब बीजिंग ओलंपिक में उन्होंने भारत को व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक दिलाया.
बिंद्रा ने 2001 में अलग अलग अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में छह स्वर्ण पदक जीते. इसी शानदार कामयाबी के लिए उन्हें 2001 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया जो खेल के क्षेत्र में भारत सरकार की तरफ से दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार है. इससे पहले 2000 में बिंद्रा को अर्जुन पुरस्कार दिया गया. लेकिन ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाने के बाद 2009 में उन्हें प्रतिष्ठित पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
2002 के मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ खेलों में बिंद्रा ने एयर राइफल मुकाबलों के पेयर इवेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया जबकि व्यक्तिगत स्पर्धा में उन्होंने रजत पदक पर कब्जा किया. ओलंपिक का रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद वह एथेंस में भारत के लिए पदक नहीं जीत पाए. लेकिन 24 जुलाई 2006 को जगारेब में बिंद्रा वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय निशानेबाज बने.
2006 कॉमनवेल्थ खेलो में उन्होंने पेयर्स इवेंट में सोने पर निशाना साधा जबकि सिंगल्स स्पर्धा में उन्हें तीसरे स्थान पर कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा. 2006 के दोहा एशियाई खेलों में अभिनव बिंद्रा कमर की चोट की वजह से हिस्सा नहीं ले पाए.
अमेरिका की कोलारोडो यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट अभिनव बिंद्रा के घर के पीछे एक शानदार इंडोर रेंज है जिसे वह अपनी प्रैक्टिस के लिए इस्तेमाल करते हैं. पेशेवर निशानेबाज तो वह हैं ही, साथ ही अभिनव फ्यूचरोस्टिक्स कंपनी के सीईओ भी हैं. उनकी यह कंपनी भारत में जर्मन कंपनी वाल्थनर के हथियारों की इकलौती डिस्ट्रीब्यूटर है जो खास कर अपनी पिस्टल्स के लिए मशहूर है.
बीजिंग ओलंपिक में भारत को सुनहरी सफलता दिलाने के बाद अभिनव सैमसंग और सहारा ग्रुप जैसी नामी कंपनियों के ब्रैंड एम्बैसडर बन गए हैं. लोगों को दिल्ली में अभिनव से बीजिंग जैसी कामयाबी दोहराने की उम्मीद है.