अर्थशास्त्र को ऐसे समझिये
अर्थव्यवस्था से जुड़ी खबरों में कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिन्हें समझे बिना कुछ पता नहीं चलता. चलिये समझते हैं इन शब्दों को.
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी देश में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है.
राजस्व घाटा
जब सरकार का खर्च, उसके राजस्व से ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति को राजस्व घाटा कहते हैं. अच्छा अर्थशास्त्री इस घाटे को कम से कम करने की कोशिश करता है.
राजकोषीय घाटा
जब सरकार का कुल खर्च, आय और गैर ऋण पूंजियों से हुई आदमनी से ज्यादा हो जाए तो उसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इसमें सरकार द्वारा लिये गये कर्जे भी शामिल होते हैं.
सब्सिडी या रियायत
अक्सर सरकारें जरूरी महंगी चीजों को लोगों के लिए सस्ता रखती हैं. महंगी खरीद के बावजूद सरकारें अपनी जेब से कुछ पैसा देकर सेवाओं के मूल्य में कमी बनाए रखती हैं. इस रियायत को ही सब्सिडी कहा जाता है.
व्यापार घाटा
जब आयात, निर्यात से ज्यादा होता है तो विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है. अंतरराष्ट्रीय कारोबार में आमदमी से ज्यादा खर्चे को व्यापार घाटा या ट्रेड डेफिसिट कहा जाता है. यह रकम करंट अकाउंट डेफिसिट में जाती है.
डायरेक्ट टैक्स
आय के स्रोत पर वसूले जाने वाले प्रत्यक्ष कर को डायरेक्ट टैक्स कहा जाता है. कॉरपोरेट, इनकम और कैपिटल गेन टैक्स इसी के तहत आते हैं.
इनडायरेक्ट टैक्स
दूसरे शब्दों में, अप्रत्यक्ष कर. यह एक छुपा हुआ टैक्स है जो सेवाओं और सामान पर लगाया जाता है, जैसे सर्विस चार्ज, एक्साइज, वैट, सेल्स टैक्स आदि. विदेश से लाने वाले सामान पर यह कस्टम शुल्क के तौर पर लगाया जाता है.
मुद्रास्फीति
नई मुद्रा जारी करने से बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती हैं. ऐसे में सेवाओं और उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है. इसे मुद्रास्फीति कहते हैं. एक अच्छी अर्थव्यस्था में 5-8 फीसदी की मुद्रास्फीति अच्छी मानी जाती है.
महंगाई
मुद्रास्फीति और महंगाई में फर्क है. कई बार नई मुद्रा जारी किये बिना भी बाजार में वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ जाता है. इसे महंगाई कहा जाता है. महंगाई को आम तौर पर मांग और आपूर्ति व भंडारण प्रभावित करते हैं.