असम के चाय बागानों में अब ड्रोन और रोबोट काम करेंगे
१७ दिसम्बर २०१९असम में विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे जर्जर चाय बागानों में मजदूरों की कमी से निपटने और उत्पादन बढ़ाने के लिए अब आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाएगा. इनमें आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के अलावा ड्रोन का इस्तेमाल शामिल है. एआई तकनीक से बहाने रोबोटों के जरिए चाय की पत्तियां चुनी जाएंगी जिससे उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसी तरह ड्रोन के जरिए खतरनाक कीटनाशकों का छिड़काव किया जाएगा. इससे काम जल्दी तो होगा ही, चाय मजदूरों को इन कीटनाशकों के खतरों से बचाने में भी सहायता मिलेगी. एशिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक असम कंपनी इंडिया लिमिटेड ने इस दिशा में पहल की है.
तकनीक का इस्तेमाल
अपनी गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर असम चाय के स्वाद में सुधार औऱ बेहतरी के लिए तकनीक का सहारा लेने पर विचार हो रहा है. फिलहाल एक कंपनी ने इस दिशा में ठोस पहल कर दी है. अब जल्दी ही दूसरे चाय बागानों में भी आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) आधारित इस तकनीक को अपनाने पर विचार चल रहा है. इसके तहत अब चाय की हरी पत्तियां चुनने में रोबोट की मदद ली जाएगी. इसके साथ ही बागानों में कीटनाशकों का छिड़काव ड्रोनों के जरिए किया जाएगा. इससे मजदूरों को इन कीटनाशकों के घातक असर से बचाया जा सकेगा.
इस तकनीक की शुरुआत करने वाली असम कंपनी इंडिया लिमिटेड का कहना है कि बीते 180 वर्षों से चाय बागानों में पौधे लगाने से लेकर पत्तियां चुनने और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए मजदूरों पर ही निर्भर रहना होता था. लेकिन अब रोबोटिक ड्रोनों की सहायता से बीमार पौधों के इलाज के साथ ही बाकी तमाम काम भी किए जा सकेंगे. कंपनी का दावा है कि तकनीक के इस्तेमाल से बागान मजदूरों पर छंटनी का कोई खतरा नहीं है. उनको दूसरे कामों में लगाया जाएगा. कंपनी के एक प्रवक्ता बताते हैं, "फिलहाल तमाम बागानों में मजदूरों की भारी कमी है. प्रतिकूल हालातों और स्वास्थ्यजनित समस्याओं की वजह से मजदूरों के बच्चे अब बागानों में काम नहीं करना चाहते. तकनीक उनको बागान में काम करने के लिए आकर्षित करेगी.”
कंपनी का लक्ष्य आधुनिक तकनीक के जरिए अगले पांच वर्षों के भीतर अपना चाय उत्पादन पांच गुना बढ़ाकर पांच करोड़ किलो करने का है. अबू धाबी स्थित बीआरएस वेंचर्स ने हाल में कंपनी का अधिग्रहण किया था. कंपनी के पास फिलहाल 15 चाय बागान हैं. बीआरएस वेंचर्स के अध्यक्ष बीआर शेट्टी बताते हैं, "हमारा मकसद चाय उद्योग में आधुनिकतम तकनीक के इस्तेमाल से चाय की पत्तियों और मजदूरों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है. इसका असर हमारे बागानों के 26 हजार मजदूरों के साथ ही पूरे देश में चाय उद्योग में कार्यरत तमाम कर्मचारियों पर भी पड़ेगा.” शेट्टी का कहना है कि यह परियोजना ‘फिलहाल एक बागान में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की जा रही है. इसके कामयाब रहने के बाद देश के दूसरे चाय बागानों में बिना किसी पूंजी निवेश के मुफ्त तकनीकी सहायता की पेशकश की जाएगी. उन्होंने साफ किया कि तकनीक के इस्तेमाल से नौकरियों में कटौती नहीं होगी और मौजूदा 26 हजार कर्मचारी सरकार की ओर से तय 350 रुपए रोजाना की न्यूनतम मजदूरी पर काम करते रहेंगे. उनका इस्तेमाल दूसरे क्षेत्रों में किया जाएगा.
बदलाव की उम्मीद
देश के अग्रणी चाय बागानों में से एक में तकनीक के इस इस्तेमाल से चाय मजूदरों की जिंदगी बदलने की उम्मीद की जा रही है. इस परियोजना में कंपनी के साथ मिल कर काम करने वाले अमेरिका स्थित स्मार्ट फार्म्स के नटराज बालासुब्रमण्यम बताते हैं, "हमने एशिया में ऐसी कई परियोजनाओं पर काम किया है. ऐसी परियोजनाएं मजदूरों का जीवन बेहतर बनाने के साथ उत्पादन क्षमता बढ़ाने में भी काफी सहायक हैं.” वह बताते हैं कि चाय बागानों में दो तरह के ड्रोनों का इस्तेमाल किया जाएगा. इनमें से एक ड्रोन पौधों की हालत पर निगाह रखेगा और उनको स्वस्थ बनाने में सहायता करेगा. दूसरे किस्म के ड्रोन पौधों पर बेहद सटीक तरीके से कीटनाशकों का छिडकाव करेंगे.
टी बोर्ड के अध्यक्ष प्रभात बेजबरुआ को उम्मीद है कि यह तकनीक लगातार गिरती कीमतों, बढ़ते उत्पादन लागत और बूढ़े होते चाय के पौधों की वजह से खराब दौर से गुजर रहे चाय उद्योग में एक नई जान फूंकने में सहायता करेगी. बी.आर.शेट्टी कहते हैं, "हम ऐसी तकनीक ला रहे हैं जो कीटनाशकों के छिड़काव की वजह से कैंसर और टीबी जैसी बीमारियों पर अंकुश लगाने में सहायता करेगा. यह तकनीक मजदूरों के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल नहीं की जाएगी.” फिलहाल चाय बागानों में कीटनाशकों के छिड़काव की वजह से मजदूरों में टीबी और कैंसर जैसी बीमारियां आम हैं. शेट्टी बताते हैं कि कीटनाशकों के छिड़काव की वजह से ज्यादातर चाय मजदूर इन दोनों बीमारियों की चपेट में हैं. ड्रोन के इस्तेमाल से मजदूरों को इन जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकेगा. इसके अलावा कीटनाशकों की बर्बादी भी रोकी जा सकेगी.
प्लाटेंशन लेबर एक्ट के मुताबिक, जहरीली खाद और कीटनाशकों के छिड़काव का काम करने वाले मजदूरों को दस्ताने, मास्क और चश्मा जैसे सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाने चाहिए. लेकिन गिने-चुने चाय बागानों में ही इस दिशानिर्देश पर अमल होता है. चाय मजदूर यूनियनों का आरोप है कि सुरक्षा उपकरणों के अभाव में हर साल इन जानलेवा बीमारियों की चपेट में आकर सैकड़ों मजदूरों की मौत हो जाती है. ऐसे में तकनीक के जरिए होने वाली इस नई पहल ने तमाम समस्याओं से जूझ रहे चाय उद्योग में उम्मीद की एक नई किरण तो पैदा कर ही दी है.
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