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शिक्षा

असम में मदरसों व संस्कृत आश्रमों को बंद करने पर विवाद

प्रभाकर मणि तिवारी
१४ फ़रवरी २०२०

असम के विभिन्न अल्पसंख्यक और हिंदू संगठनों ने सरकारी मदद से चलने वाले मदरसों और संस्कृत आश्रमों या संस्थानों को बंद करने के सरकार के फैसले की आलोचना की है.

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Indien Madrasa Religionsschule
तस्वीर: DW/F. Fareed

कई संगठनों ने असम सरकार के इस फैसले को संविधान के खिलाफ बताया है. असम राज्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस फैसले को कानूनी चुनौती देने की चेतावनी दी है. सरकार ने इन मदरसों और आश्रमों को हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल में बदलने का फैसला किया है. लेकिन यहां धार्मिक विषयों की पढ़ाई नहीं होगी. इन संस्थानों में धार्मिक विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को बिना काम के ही सेवानिवृत्ति तक वेतन दिया जाएगा.

क्या है मामला

असम सरकार ने बुधवार को कहा था कि राज्य सरकार की ओऱ से संचालित मदरसों और संस्कृत आश्रमों को अगले तीन से चार महीनों के भीतर बंद कर दिया जाएगा. राज्य के शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि इनको नियमित पाठ्यक्रमों वाले उच्च व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में बदल दिया जाएगा. उन्होंने दलील दी थी कि धार्मिक शिक्षा देना या अरबी या ऐसी दूसरी भाषाओं की पढ़ाई वाले संस्थानों को धन मुहैया कराना सरकार का काम नहीं है. सरमा ने कहा कि असम में लगभग 1,200 मदरसे और 200 संस्कृत आश्रम हैं. लेकिन इनमें से 614 मदरसों और 101 संस्कृत आश्रमों को सरकारी सहायता दी जाती रही है. सरमा कहते हैं,  "अगर पवित्र कुरान की शिक्षाएं देने के लिए सरकार की ओर से मुहैया कराए जाने वाले धन का इस्तेमाल किया जाता है, तो गीता और बाइबल की शिक्षा भी देनी पड़ेगी.”

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असम के मुख्यमंत्री सोनोवालतस्वीर: Imago/Hindustan Times

लेकिन विभिन्न संगठनों ने इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया है. ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फोरम (एआईयूडीएफ) के महासचिव अमीनुल इस्लाम कहते हैं, "बीजेपी सरकार मदरसों के साथ संस्कृत संस्थानों से अपना पल्ला झाड़ते हुए खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने का प्रयास कर रही है. मदरसों को छोड़ भी दें तो दुनिया की तमाम भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत के साथ ऐसा सलूक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.” अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (आम्सू) ने कहा है कि सरकार ने मुस्लिमों को परेशान करने के लिए यह फैसला किया है. संगठन ने एक बयान में कहा है कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक ग्रंथों और अरबी की ही पढ़ाई नहीं होती, नियमित स्कूलों की तरह दूसरे विषय भी पढ़ाए जाते हैं.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राज्य सचिव मौलाना फज्ल-उल-करीम कहते हैं, "यह सच नहीं है कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही दी जाती है. वहां इस्लामिक शिक्षाओं के साथ विदेशी भाषा के रूप में अरबी पढ़ाई जाती है. इससे कई छात्रों को डॉक्टर और इंजीनियर बनने में सहायता मिलती है. वह लोग मध्य पूर्व के देशों में रोजगार हासिल करते हैं.” करीम ने कहा है कि अगर राज्य सरकार मदरसों को बंद करती है तो जमीयत इस फैसले के खिलाफ लिए कानूनी प्रावधानों का सहारा ले सकती है.

संस्कृत समर्थकों का विरोध
दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली के वैष्णव पूजा स्थलों यानी सत्रों के कई प्रमुखों ने भी सरकार के उक्त फैसले की आलोचना की है. माजुली स्थित 32 सत्रों में 15वीं सदी के संत औऱ समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव के आदर्शों व उपदेशों का पालन किया जाता है. इनमें से 10 में संस्कृत संस्थान भी हैं. माजुली मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल का चुनाव क्षेत्र भी है. यहां दक्षिण पट सत्र के प्रमुख जनार्दन देव गोस्वामी कहते हैं, "संस्कृत हमारी संस्कृति का हिस्सा है. हम सरकार के इस फैसले को स्वीकार नहीं कर सकते.”

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नदी में दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप माजुलीतस्वीर: DW/B. Das

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस फैसले को मूर्खतापूर्ण करार दिया है. उन्होंने कहा कि प्रशासन को इन संस्थानों को बंद करने की बजाय आधुनिक बनाने पर काम करना चाहिए था. गोगोई खुद कई हिंदू छात्रों के साथ जोरहाट स्थित एक मदरसे में पढ़ चुके हैं. वह कहते हैं, "सरकार को मदरसों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, उनको किसी खास जाति या धर्म के साथ जोड़ कर भी नहीं देखा जाना चाहिए. इन संस्थानों को खत्म करने के बजाय सरकार को इन्हें मजबूत और आधुनिक बनाना चाहिए था. साथ ही इनमें सामान्य विषयों की पढ़ाई शुरू करने और तकनीक को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए.”

इसके विपरीत असम बीजेपी ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है. असम बीजेपी के प्रवक्ता रूपम गोस्वामी कहते हैं, "राज्य सरकार ने सही फैसला लिया है. धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए धन मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है.” राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ने एक साथ मदरसों और संस्कृत संस्थानों पर गाज गिरा कर अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को चमकाने की कवायद की है. लेकिन सरकार के इस फैसले का विरोध तय है.

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