अस्तित्व में आया यूरेशिया आर्थिक संघ
२ जनवरी २०१५योजना के मुताबिक पहली जनवरी से यूरेशिया आर्थिक संघ (ईईयू) ने काम करना शुरू कर दिया है. पूर्वगामी कस्टम यूनियन के विपरीत इस संस्था में पांच देश शामिल हैं. मई में रूस, बेलारूस और कजाखस्तान ने इसके गठन का फैसला किया था, अब उनके अलावा अर्मेनिया और किर्गिस्तान भी इसके सदस्य बन रहे हैं. इसकी शुरुआत कठिन समय में हो रही है. पश्चिमी प्रतिबंधों और तेल की गिरती कीमतों के कारण रूस आर्थिक समस्याएं झेल रहा है. ईईयू के सदस्यों के बीच भी तनाव है.
कठिन सहयोग
हाल ही में बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जांडर लूकाशेंको और कजाख राष्ट्रपति नूर सुल्तान नजरबायेव कीव गए थे. रूसी राष्ट्रपति पुतिन की यूक्रेन के राष्ट्रपति पोरोशेंकों से बनती नहीं. विशेषज्ञ इस यात्रा में ईईयू के लिए अच्छा संकेत नहीं देख रहे. मॉस्को के आर्थिक विशेषज्ञ प्रो. अलेक्सेई पोर्तांस्की कहते हैं, "स्थिति उत्साहजनक नहीं है. इस दौर में सकारात्मक उपलब्धियां दिखनी चाहिए थीं, लेकिन पिछले समय में साथियों के साथ रूस के संबंध में जटिलताएं दिख रही हैं."
रूस और बेलारूस के बीच सामान के ट्रांजिट को लेकर विवाद है तो कजाखस्तान के साथ बिजली और कोयले की सप्लाई पर. किर्गिस्तान और अर्मेनिया के ईईयू में शामिल हो जाने के बाद भी संगठन के सकल घरेलू उत्पाद का 80 फीसदी रूस के हिस्से होगा और उसे समेकन का मुख्य बोझ उठाना होगा. इसे इस समय बेलारूस के लिए नियमित रियायतों और वित्तीय सहायता में देखा जा सकता है. प्रो. पोर्तांस्की कहते हैं, "ईईयू में हर नए सदस्य का मतलब मॉस्को के नया खर्च होगा."
सीआईएस जैसा सपना
रूसी राजनैतिशास्त्री आंद्रे पियोंतकोव्स्की का कहना है कि मॉस्को को बड़ा और ताकतवर महसूस करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों की जरूरत है. रूस के पड़ोसी पिछले सालों में इसका फायदा उठाते आए हैं. लुकाशेंको को क्रेमलिन के समेकन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए वित्तीय मदद मिली है तो नजरबायेव को यह गारंटी कि कजाख सीमाओं का उल्लंघन नहीं होगा. प्रो. पियोंतकोव्स्की कहते हैं, "नजरबायेव को कमजोर ढांचा मिला है जिसके उत्तरी हिस्से में बहुत से रूसी बसे हैं."
लेकिन अब लुकाशेंको और नजरबायेव ने पुतिन की कमजोरी पहचान ली है. यूक्रेन संकट के कारण रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों पर उनकी नजर है और वे देखेंगे कि रूसी अर्थव्यवस्था पर उसका क्या असर होता है. तनाव के बावजूद संस्था का काम औपचारिक रूप से शुरू हो रहा है. पियोंतकोव्स्की कहते हैं, "यह सीआईएस की ही तरह सपना साबित होगा. भागीदार नहीं चाहते कि मॉस्को उनके लिए संघर्ष करे या उन्हें पाठ पढ़ाए." लेकिन रूस को बदलना आसान नहीं होगा.
भूराजनीतिक हित
मॉस्को के सीआईएस संस्थान के व्लादिमीर शारिचिन इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि ईईयू की सफलता सिर्फ आर्थिक पैमाने पर नहीं मापी जानी चाहिए. वे कहते हैं, "यदि ईईयू से रूस को होने वाले लाभ या हानि को सिर्फ आर्थिक पहलू से मापा जाए तो सिर्फ हानि ही दिखेगी. लेकिन यदि इसे भूराजनैतिक और रणनैतिक नजरिए से देखा जाए तो निश्चित तौर पर फायदे हैं." इसकी एक मिसाल बेलारूस में रूसी वायु सैनिकों की तैनाती है. शारिचिन कहते हैं, "ईईयू में अर्थव्यवस्था और भूराजनीति को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता." उनका मानना है कि ईईयू ऊर्जा से वंचित पश्चिमी देशों के प्रतिद्विंद्वी बन जाएगा.
लेकिन अलेक्सेई पोर्तांस्की का कहना है कि ईईयू उतनी जल्दी प्रतिस्पर्धी अंतरराष्ट्रीय गुट नहीं बन पाएगा जितनी कि योजना है. मॉस्को के आर्थिक कॉलेज के प्रोफेसर का कहना है कि इस परियोजना की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती है कि रूस कितनी जल्दी मौजूदा संकट को निबटा पाता है. जब तक रूस के भूराजनैतिक हितों की अर्थव्यवस्था पर प्राथमिकता रहेगी, ईईयू के निर्माण में उतना ही ज्यादा वक्त लगेगा. पोर्तांस्की कहते हैं, "इस समय राजनीतिक तत्व हावी है, लेकिन समेकन मुख्य रूप से व्यापार और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में करना होगा."
इवलालिया सामेदोवा/एमजे