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अहम उद्योगों को चीन से बचाने के लिए जर्मनी ने बदले नियम

२९ नवम्बर २०१९

जर्मनी ने अपने देश की बड़ी कंपनियों को चीनी कंपनियों के हाथों में जाने से बचाने के लिए कुछ नए नियम बनाए हैं. चीन के कारोबारी जर्मनी की कई कंपनियों का अधिग्रहण करने की फिराक में हैं.

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Peter Altmaier Portrait
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kahnert

जर्मन वित्त मंत्री पेटर आल्टमायर ने समय रहते सरकारी हस्तक्षेप करने के लिए नई व्यवस्था के बारे में बताया. स्थायी समिति सरकारी बैंकों के साथ मिलकर करेगी काम.जर्मनी में वित्त मंत्री आल्टमायर ने एक सरकारी समिति बनाने की घोषणा की है जो जरूरत पड़ने पर जर्मन कंपनियों को अधिग्रहण से बचाने के लिए फौरन हरकत में आएगी. माना जा रहा है कि चीन और कुछ दूसरे देशों के जर्मन तकनीक को टेकओवर करने में भारी दिलचस्पी लेने के कारण ऐसे कदम उठाने की जरूरत महसूस की जा रही थी. इंडस्ट्री स्ट्रैटजी के अंतिम स्वरूप को लॉन्च करते हुए मंत्री ने बताया कि इसका लक्ष्य जर्मनी के मैन्यूफैक्चरिंग बेस को नुकसान से बचाना भी है.

नई स्थायी समिति तब हरकत में आएगी जब संवेदनशील और सुरक्षा संबंधी तकनीक बनाने वाली किसी जर्मन कंपनी को अधिग्रहण से बचाने का और कोई विकल्प ना बचा हो. ऐसी स्थिति में सरकार की ओर से कंपनी में अस्थायी हिस्सेदारी खरीदी जाएगी और यह काम सरकारी विकास बैंक, केएफडब्ल्यू करेगा.जर्मन कानून में पहले से ही कुछ स्थितियों में ऐसे कदम उठाने की व्यवस्था है लेकिन आल्टमायर का मानना है कि उस तरीके से प्रक्रिया इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पाती.

एक प्रेस कांफ्रेंस में अपने "इंडस्ट्री स्ट्रैटजी 2030" दस्तावेज को पेश करने के बाद आल्टमायर ने कहा, "यह व्यवस्था की गई है ताकि जरूरी फैसले जल्द से जल्द और प्रभावी तरीके से लिए जा सकें."

स्थायी समिति विकास बैंक के साथ काम जरूर करेगी लेकिन मंत्री ने साफ किया कि इसकी मदद से कंपनियों में हिस्सेदारी बनाए रखने की सरकार की योजना नहीं है. फरवरी में जब आल्टमायर ने इसका विचार पहली बार पेश किया तो उन्हें उद्योग धंधों की तरफ से काफी प्रतिरोध झेलना पड़ा था. उन्होंने साफ किया, "मैं सरकारी सेक्टर का विस्तार नहीं करना चाहता." फिलहाल जारी दस्तावेज में नहीं बताया गया कि कौन सी कंपनियों को बचाने के लिए सरकारी समिति कदम उठाएगी. हालांकि फरवरी में आल्टमायर ने थीसेनक्रुप, सीमेंस और डॉयचे बैंक जैसी कंपनियों को प्रमुख कंपनियों के रूप में छांटा था.

फिलहाल यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी एक तरह की मंदी की कगार पर है. अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने और आगे बढ़ाने में देश के उद्योग धंधों की सबसे अहम भूमिका है जिसमें करीब एक दशक के जोरदार विस्तार के बाद अब सुस्ती देखने को मिल रही है. दुनिया भर में भी माहौल बहुत सकारात्मक नहीं हैं जबकि अमेरिका और चीन जैसी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक दूसरे पर नए नए टैरिफ थोप कर ट्रेड वार जैसी स्थिति बनाए हुए हैं. ब्रिटेन और यूरोजोन के बीच भी ब्रेक्जिट को लेकर आर्थिक अनिश्चितताएं बरकरार हैं.

यूरोपीय संघ चीन के साथ अपने औद्योगिक नीति पर पुनर्विचार कर रहा है और इसी सोच के तहत जर्मन कंपनियों में चीनी निवेश को लेकर सावधानी बरतने की कोशिश हो रही है. 2016 में चीन की मीडिया नाम की कंपनी ने बवेरिया की इंडस्ट्रियल रोबोट बनाने वाली कंपनी कूका का अधिग्रहण किया था, जिसके बाद से जर्मन राजनेता ऐसे सौदों को लेकर काफी सजग हो गए है, खास तौर से जब खरीदार चीनी पृष्ठभूमि का हो.

आरपी/एनआर (रॉयटर्स)

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