आईपीएल मैच में कुर्सी पोंछते भारतीय फुटबॉलर
९ मई २०११भारत में आजकल देर रात यूरोप से फुटबाल का सीधा प्रसारण देखना एक फैशन सा बन गया है. उसके बाद मैच को लेकर फेसबुक पर स्टेटस बदलना और अगर ज्यादा इम्प्रेशन मारना है तो सुबह उन्ही टीमों की जर्सी में शॉपिंग मॉल के चक्कर लगाना आपके फु़टबाल फेशन में चार चांद लगा सकते हैं. लेकिन अपने आप को फुटबाल का दीवाना कहने वाले यह खेल प्रेमी, अपने घर के पिछवाड़े देश की फुटबाल की बदहाली से बेखबर हैं. उन्हें नहीं मालूम की लाखों युवा फुटबाल खिलाडियों के सपने महज़ सपने ही रह जाते हैं हैं क्योंकि उन्हें फुटबाल खेलने के लिए मैदान तक नसीब नहीं होता. अगर किसी स्टेडियम पहुंच भी जाते हैं तो खेलने नहीं बल्कि वहां होने वाले क्रिकेट मेच के लिए आने वाले दर्शकों के लिए कुर्सियां साफ करने.
दुखी करने वाली कहानी
कुछ ऐसा ही हुआ इंदौर के संजय निदान के साथ भी. दस साल पहले फुटबाल में भारत का प्रतिनिधितव कर चुके संजय ने इंदौर के होल्कर स्टेडियम में शुक्रवार को होने वाले आईपीएल मैच के लिए कुर्सी साफ़ करने का काम लिया ताकि दो रुपया पचहत्तर पैसे प्रति कुर्सी के हिसाब से वह जो पैसे कमायें उसे फुटबाल में लगाया जा सके. संजय निदान बताते हैं "में और मेरे साथी खिलाडी इस काम में लगे हैं ताकि हम अपने आनंद फुटबाल क्लब को चला सके."
गनीमत है की संजय और बाकी खिलाड़ियों को कुर्सी साफ करने का काम मैच के लिए ही मिला भले ही वह क्रिकेट हो. अगर यही काम वो किसी राजनैतिक रैली की लिए करते तो इस से बड़ी शर्म की बात नहीं हो सकती थी. लेकिन फिर भी भारतीय खिलाडियों के साथ ऐसा होता ही क्यों है?
पैसा नहीं मिलता
इंदौर खेल विभाग में नियुक्त कोच शैलेंदर वर्मा के अनुसार क्रिकेट की तरह फुटबाल में राज्य के खिलाड़ियों को पैसा नहीं मिलता.दिल्ली के पूर्व गोलकीपर और जाने माने फुटबाल कमेंटेटर गौस मोहम्मद भारतीय फुटबाल संघ को इसका जिम्मेदार मानते हैं. " संघ का काम है राज्य ईकाइयों की मदद करना लेकिन मुश्किल यह है की संघ इन ईकाइयों को सिर्फ चुनाव के समय वोट लेने का जरिया ही समझते हैं,'' कहना है गौस का.
वैसे खेल मंत्री अजय माकन और उनके मंत्रालय के अधिकारी देश में फुटबाल का स्तर उठाने के लिए बड़ी बड़ी बातें करते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत देख कर साफ मालूम होता है की उनके दावों में कोई दम नहीं है.
गौस मोहम्मद के अनुसार लोगों में फुटबाल की चाहत तो है लेकिन संजय जैसे खिलाडियों की बदहाली देख कर वो भी क्रिकेट को अपनाने की ही बात करते हैं. गौस सवाल उठाते हैं, " एक ज़माना था जब नदी के किनारे धोबी कपडे धोते थे तो उनके बच्चे रेट पर फुटबाल खेलते थे. आजकल वे भी क्रिकेट ही खेलते हैं तो ऐसे में फुटबाल का स्तर कैसे ऊपर उठेगा,''
ऐसे में सवाल यह ही की क्या भारत में सिर्फ क्रिकेट की ही पूछ होगी और फुटबाल खिलाडी कुर्सियां साफ़ करते ही रह जायेंगे?
रिपोर्टः नोरिस प्रीतम, नई दिल्ली
संपादनः आभा एम