इंटरनेट पर अपनी पहचान कैसे रखें सुरक्षित
१९ फ़रवरी २०२१आपको इंटरनेट पर कोई कैसे देख पाता है?
मूल रूप से इंटरनेट पर हो रही हर गतिविधि को हर वो व्यक्ति देख सकता है जिसकी उन सर्वरों तक पहुंच है जिनसे ये गतिविधियां हो कर गुजरती हैं. ठीक वैसे ही जैसे कोई डाकिया किसी भी पोस्टकार्ड को पढ़ सकता है.
काफी तरह का डाटा आपकी पहचान जाहिर कर सकता है. सबसे पहले तो आपके कंप्यूटर का आईपी एड्रेस है, लेकिन आजकल उपभोक्ताओं को उनके कंप्यूटर के दूसरे डाटा से भी पहचाना जाता है, जैसे ब्राउजर प्लगइन की यूनिक प्रॉपर्टी, स्क्रीन का रिजॉल्यूशन, विंडो का आकार, भाषा, समय इत्यादि. उपभोक्ताओं के इस्तेमाल के बहुत ही सूक्ष्म निशान बनाए जा सकते हैं जिनकी मदद से एक सर्वर किसी को 98 प्रतिशत तक सही पहचान सकता है, बिना आईपी एड्रेस के.
अगर कोई सरकार कुछ वेबसाइटों को ब्लॉक कर दे तो क्या फिर भी उन्हें देखा जा सकता है?
कुछ समय पहले तक सिर्फ स्टैटिक प्रॉक्सी सर्वेरों का इस्तेमाल किया जाता था. अक्सर यह सरल से आईपी एड्रेस होते थे जो अधिकांश इंटरनेट ट्रैफिक को फॉरवर्ड कर देते थे. यह तब तक काम करता था जब तक सेंसरों को प्रॉक्सियों का पता नहीं चल जाता था. लेकिन आजकल कई सरकारें उन प्रॉक्सियों को ब्लॉक करना शुरू कर चुकी हैं जो उन्हें पसंद नहीं हैं.
प्रॉक्सियों का इस्तेमाल वेबसाइटों को चलाने वालों से यह छुपाने के लिए भी किया जा सकता है कि वेबसाइट कहां से देखी जा रही है. इसके लिए आप 'अनोनिमाउस' या उसकी तरह की दूसरी सेवाओं का इस्तेमाल भी कर सकते हैं जो पहचान छुपाने के काम आती हैं.
इंटरनेट पर सुरंग कैसे बनाई जा सकती है?
वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) इंटरनेट पर एक तरह की सुरंग के जैसा होता है. अमूमन इसका इस्तेमाल कंपनियां दुनिया भर में फैले अपने स्टाफ और कंपनी के आतंरिक नेटवर्क के बीच एक सुरक्षित कनेक्शन बनाने के लिए करती हैं, जिसमें कोई और झांक ना सके.
इस सुरंग का इस्तेमाल ऐसे इलाकों से इंटरनेट पर आजादी से पहुंचने के लिए भी किया जा सकता है जहां प्रतिबंध लगे हुए हैं. लेकिन प्रतिबंध लगाने वाली एजेंसियां देख सकती हैं कि यह एक वीपीएन कनेक्शन है और इसे कौन चला रहा है. आजकल प्रतिबंध लगाने वाले तंत्र पहले से ज्यादा सतर्क हो गए हैं और स्टैटिक प्रॉक्सियों को जल्दी ब्लॉक कर देते हैं. इसके अलावा प्रॉक्सी आपकी पहचान गुप्त नहीं रख पाते हैं. अक्सर वीपीएन नेटवर्क भी वर्जित होते हैं. ऐसे में आपको कोई नया तरीका ढूंढना पड़ेगा, जैसे टोर नेटवर्क.
टोर क्या है?
टोर का मतलब है 'अनियन राऊटर'. यह एक प्याज की तरह बना आता है, यानी परतों में. तोर आपको आपकी पहचान गुप्त रखने में मदद करता है. आप जिस सर्वर से जानकारी हासिल करना चाह रहे हैं आप सीधे उससे नहीं जुड़ते हैं, बल्कि टोर आपको दूसरे रास्तों से सर्वर से जोड़ता है, जिन्हें टोर नोड कहा जाता है.
हर टोर नोड ब्राउजर पर जो काम हो रहा है उस पर एन्क्रिप्शन की अपनी एक परत चढ़ाता है, ताकि दूसरे नोड तक उसे देख ना सकें. इससे इंटरनेट पर काम करना बहुत सुरक्षित हो जाता है.
क्या टोर ब्राउजर से हर तरह के वेब पेज को देखा जा सकता है?
कुछ विशेष टोर वेबसाइटें इस तरह की परतों वाली सेवाएं देती हैं. डॉयचे वेले भी ऐसी एक सेवा देता है. ये सेवाएं बहुत सुरक्षित होती हैं. आप एक टोर ब्राउजर से सभी आम वेबसाइटें भी देख सकते हैं. उस समय आप टोर नेटवर्क से बाहर निकल जाते हैं और गोपनीयता कुछ हद तक सीमित हो जाती है, लेकिन जिस वेबसाइट पर आप जा रहे हैं उसे चलाने वाला ना आपका आईपी एड्रेस देख पाएगा ना आपके ब्राउजर की जानकारी. टोर इन सब चीजों को छिपा देता है.
आपकी पहचान तो गोपनीय हो गई. पर क्या आपकी गतिविधि देखी जा सकती है?
एक सेंसर इंटरनेट ट्रैफिक को मोटे तौर पर देख जरूर सकता है लेकिन उससे जानकारी निकाल नहीं सकता है. इसलिए टोर विकसित हुआ है. सेंसरशिप से बचने के लिए टोर ने 'प्लगेबल ट्रांसपोर्ट' नाम के उपकरण बनाए हैं. यह इंटरनेट ट्रैफिक को पूरी तरह से छिपा कर ऐसा दिखाता है जैसा वो असलियत में है नहीं. उदाहरण के लिए, अगर कोई किसी वेबसाइट को देख रहा है तो ये 'प्लगेबल ट्रांसपोर्ट' उसे एक वीडियो कॉनफेरेन्स, ईमेल ट्रैफिक या कुछ और बना कर दिखा देगा. यह लगातार बदलता भी रहता है, जिसकी वजह से सेंसरों के लिए सर्फिंग को देखते रहना और मुश्किल हो जाता है.
क्या सेंसरशिप लगाने वाली एजेंसियां 'प्लगेबल ट्रांसपोर्ट' का भी तोड़ निकाल सकती हैं?
अगर एजेंसियों को शक हो जाए कि वो 'प्लगेबल ट्रांसपोर्ट' द्वारा छिपाए हुए टोर ट्रैफिक को देख रहे हैं तो वो अपना ट्रैफिक भी भेज सकते हैं यह देखने के लिए सर्वर क्या प्रतिक्रिया देता है. ऐसे में एजेंसियां शक होने पर आपका कनेक्शन काट सकती हैं.
जिस देश में सेंसरशिप वो वहां से टोर नेटवर्क में कैसे घुसा जा सकता है?
ऐसे देशों में रहने वालों को एक तरह के पुलों की जरूरत होती है. इन पुलों के जरिए टोर नेटवर्क के उन जाने हुए प्रवेश द्वारों तक पहुंचा जा सकता है जिन्हें अमूमन सरकारों ने ब्लॉक किया होता है. टोर का इस्तेमाल करने वाला हर व्यक्ति एक पल उपलब्ध करा सकता है और उसकी मदद से अपनी मशीन को ही एक वर्चुअल प्रवेश द्वार बना सकता है. इसलिए आजाद इंटरनेट वाले देशों में रहने वाले लोगों को बड़ी संख्या में यह करना चाहिए क्योंकि इससे सेंसरशिप वाले देशों के लोगों के लिए प्रवेश द्वारों के विकल्प बढ़ जाते हैं.
टोर का इस्तेमाल करने के लिए क्या करना पड़ता है?
यह बहुत सरल है: टोर प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर हर ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए मौजूदा फायरफॉक्स-आधारित टोर ब्राउजर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है. उसे डाउनलोड करने के बाद ब्राउजर का इस्तेमाल आम ब्राउजर की तरह किया जा सकता है. फर्क बस इतना है कि इस्तेमाल करने वाले की पहचान गोपनीय हो जाती है. हां, टोर ब्राउजर में सही सेटिंग्स लगाना बेहद जरूरी है.
क्या टोर का इस्तेमाल करने में दिक्कतें भी आती हैं?
आपकी इंटरनेट स्पीड थोड़ी कम हो सकती है लेकिन तेज कनेक्शनों के इस जमाने में इससे कोई विशेष असुविधा होनी नहीं चाहिए. डिफॉल्ट सेटिंग में जावास्क्रिप्ट को दबा दिया जाता है और कुकी सेव नहीं होती हैं. इसका मतलब ब्राउजर कोई भी पासवर्ड सेव नहीं करता है और किसी भी फॉर्म को अपने आप नहीं भरता है.
यह याद रखना चाहिए कि सेंसरशिप वाली जगहों पर एजेंसियों के आपके छिपे हुए कनेक्शन का पता लगा लेने की संभावना फिर भी रहेगी. सेंसरशिप से बचने के और भी तरीके हैं.
साइफन क्या है?
साइफन कनाडा की एक कंपनी है जो डॉयचे वेले जैसी मीडिया कंपनियों के साथ काफी समय से काम कर रही है और उसने मीडिया की आजादी को समर्थन देने के लिए एक उत्पाद बनाया है. साइफन ऐसे ऐप और कंप्यूटर प्रोग्राम बनाता है जिनमें सेंसरशिप से बचने के कई तरीके एक के बाद एक इस्तेमाल किए जाते हैं. अलग अलग सर्वर, प्रॉक्सी सर्वर, वीपीएन इत्यादि हर चीज का उपयोग किया जाता है.
क्या सुरक्षित मेसेजिंग सेवाएं भी हैं?
कई लोग व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इसका डाटा कहां जाता है. सिग्नल ऐप इससे ज्यादा सुरक्षित है. इसे आप कंप्यूटर पर भी डाउनलोड कर इस्तेमाल कर सकते हैं. इसका सोर्स कोड खुला है जिससे तकनीकी जानकार यह जांच सकते हैं कि यह वाकई सुरक्षित है या नहीं.
क्या निजता का आदर करने वाले सर्च इंजन भी हैं?
बिलकुल हैं. यह ऐसे इंजन होते हैं जो गूगल या बिंग की तरह इस्तेमाल करने वालों के आईपी अड्रेस ना इकठ्ठा करते हैं, ना जमा करते हैं और ना प्रोसेस करते हैं. इन पर परेशान करने वाले विज्ञापन भी यहीं आते. डकडकगो और स्टार्टपेज इस तरह के सर्च इंजन हैं.
ब्राउजर के लिए ऐड ऑन क्या होते हैं?
इन्हें ब्राउजरों में लगा कर कुकी, ट्रैकर या जावा जैसी स्क्रिप्ट को ब्लॉक किया जा सकता है. यूब्लॉक ओरिजिन और प्राइवेसी बैजर इस तरह के ऐड ऑन होते हैं.
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