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इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर अरबों खर्च करने की तैयारी में जर्मनी

५ नवम्बर २०१९

एक ऐसे दिन जब अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से बाहर हो रहा था, जर्मनी में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए ऑटो सम्मेलन हो रहा था.

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Volkswagen startet die Produktion des Elektroautos ID.3
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Hartmann

इस ऑटो सम्मेलन में सरकार के प्रमुख प्रतिनिधियों के अलावा ऑटोमोबिल उद्योग से जुड़ी महत्वपूर्ण शख्सियतें भी शामिल थीं. सम्मेलन के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका आयोजन चांसलर दफ्तर में किया गया और उसमें चांसलर अंगेला मैर्केल भी मौजूद थीं. शिखर सम्मेलनों की बात होती है तो आम तौर पर राज्याध्यक्षों की बैठकों की बात होती है, लेकिन गहन आर्थिक विकास के दौर में औद्योगिक शिखर सम्मेलनों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है. राजनीतिक शिखर सम्मेलनों की तरह इनका मकसद भी बाधाओं को तोड़ना और सहमति के नए रास्ते खोलना होता है. कई बार जो फैसले अकेले नहीं किए जा सकते उन्हें दूसरों के साथ मिलकर करना आसान हो जाता है.

Symbol Ladesäule für E Autos
तस्वीर: imago/teutopress

बर्लिन में हुए ऑटो शिखर सम्मेलन से भी कुछ सकारात्मक संदेश मिले हैं. सम्मेलन का लक्ष्य इलेक्ट्रिको मोबिलिटी को बढ़ावा देना है, जो पिछले सालों की कोशिशों के बावजूद थोड़ा अटका हुआ है. सम्मेलन में जो दो महत्वपूर्ण फैसले लिए गए वे ग्राहकों को इलेक्ट्रिक कार खरीदने के लिए सब्सिडी देने और पेट्रोल पंपों की तरह बड़े पैमाने पर बैटरी चार्ज करने वाले स्टेशन खोलने से जुड़े हैं. यह सही है कि जर्मन बाजार में इलेक्ट्रिक कारों की कीमत अभी भी बहुत ज्यादा है और वह पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों को टक्कर देने की हालत में नहीं है. दूसरे अगर ज्यादा खर्च कर इलेक्ट्रिक कार खरीद भी ली जाए तो बैटरियों की क्षमता इतनी कम है कि उनसे लंबी दूरी का सफर करना मुश्किल है. चार्जिंग स्टेशन इस मुश्किल को दूर करेंगे और कार खरीदने पर मिलने वाली सब्सिडी लोगों को इलेक्ट्रिक कार खरीदने को प्रोत्साहित करेगी. इससे इलेक्ट्रिक कारों का बाजार बड़ा होगा और बाजार बड़ा होने से कारें सस्ती होंगी.

जर्मन कार उद्योग कभी दुनिया में ऑटोमोबिल उद्योग में अगुआ रहा है, लेकिन पिछले सालों में नए आविष्कारों या विकासों के मामले में वह पिछड़ता जा रहा है. देश मे हर सातवां रोजगार ऑटोमोबिल उद्योग से जुड़ा है. ऐसे में इस उद्योग में अंतरराष्ट्रीय तौर पर उसका पिछड़ना रोजगार के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता है. स्वाभाविक है कि सम्मेलन का संदेश था, जर्मनी को भविष्य के ऑटो उद्योग का प्रमुख केंद्र बने रहना चाहिए.

München | elektrischer BMW bei Ladestation
तस्वीर: picture-alliance/L.-E. Balogh

तीन साल पहले ऐसे ही एक ऑटो सम्मेलन के बाद ग्राहकों को सब्सिडी देने का फैसला किया गया था. केंद्र सरकार और उद्योग सबसिडी के लिए आधा आधा हिस्सा देती है. उस समय इसके लिए 60 करोड़ यूरो की राशि तय की गई थी. लेकिन पिछले तीन सालों में बिक्री में कोई बड़ी तेजी नहीं आी है. अब सब्सिडी को 2025 तक बढ़ाने का फैसला किया गया है. 40,000 यूरो तक की कीमत वाली गाड़ियों के लिए सब्सिडी 4000 यूरो से बढ़ाकर 6,000 यूरो और उससे महंगी 65,000 यूरो तक की गाड़ियों के लिए 5,000 यूरो की जा रही है. प्लग इन हाइब्रिड गाड़ियों के लिए भी सब्सिडी बढ़ाई जा रही है. सरकार को उम्मीद है कि इस तरह करीब 7 लाख नई इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री के लिए सब्सिडी दी जा सकेगी.

जर्मन कार उद्योग आने वाले महीनों में इलेक्ट्रिक ऑटो के कई मॉडल बाजार में उतार रहा है. 2030 तक पर्यावरण सुरक्षा के लक्ष्यों को पाने के लिए 70 लाख से 1 करोड़ गाड़ियों की जरूरत होगी. इनके लिए देश में बैटरी चार्ज करने की सुविधा भी देनी होगी. जर्मन सरकार ने पहले भी इस तरह के लक्ष्य निर्धारित किए थे. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने 2020 तक 10 लाख इलेक्ट्रिक कारें सड़क पर उतारने की बात कही थी, लेकिन अब तक यह लक्ष्य काफी दूर है. इस साल अगस्त तक जर्मनी में सिर्फ 220,000 इलेक्ट्रिक गाड़ियां रजिस्टर हुई हैं.

कल्पना कीजिए कि पेट्रोल न मिले तो गाड़ियां कौन खरीदेगा. वही हाल इलेक्ट्रिक कारों के साथ बैटरी का है. यदि बैटरियों की क्षमता कम हो और उसे चार्ज करने की सुविधा ना के बराबर तो फिर कौन हजारों यूरो लगाकर नई गाड़ी खरीदेगा. इलेक्ट्रिक कारों की कामयाबी बैटरी चार्जिंग नेटवर्क पर निर्भर है. बैटरी चार्ज करने के लिए पेट्रोल पंपों की तरह चार्जिंग स्टेशनों के व्यापक नेटवर्क की जरूर होगी. इस समय देश भर में सिर्फ 21,000 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं. वहां पर लगने वाली फीस भी अलग अलग है. गाड़ी मालिकों का सबसे बड़ा डर यह है कि वे अगले चार्जिंग स्टेशन तक पहुंच पाएंगे या नहीं. सम्मेलन में यह तय किया गया है कि अगले दो सालों में देश में 50,000 नए चार्जिंग स्टेशन बनाए जाएंगे. लेकिन क्या यह पर्याप्त होगा? कम से कम शुरुआत तो हो रही है.

Volkswagen E-Golf
तस्वीर: Getty Images/J. Schlueter

जर्मन सरकार 2030 तक देश में 10 लाख चार्जिंग स्टेशन देखना चाहती है. चार्जिंग स्टेशन के साथ उनके सर्टिफिकेशन, भुगतान और बिल का भी मसला है. इन सबको आसान बनाने पर काम चल रहा है ताकि ग्राहकों की परेशानी को कम किया जा सके. लंबी यात्रा के बाद यदि बैटरी चार्ज के लिए लंबा इंतजार करना पड़े और फिर बैटरी चार्ज करने में घंटों लगें तो फिर कौन ऐसी कार रखना चाहेगा. पर्यटन मंत्री आंद्रेयास शॉयर चाहते हैं कि भविष्य का परिवहन बड़ी संख्या में ग्राहकों के लिए उपलब्ध हो. लोगों में इसके लिए जोश लाने की जरूरत होगी. यह काम गाड़ियों को सस्ता और सुविधाजनक बनाकर ही किया जा सकता है.

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को सुविधाजनक बनाने पर जर्मन सरकार 3 अरब यूरो का निवेश करेगी. साथ ही कई तरह के कानूनी सुधार भी किए जाएंगे ताकि कई फ्लैटों वाले घरों में मालिकों और किरायेदारों को गैरेज में आसानी से चार्जिंग स्टेशन बनाने की अनुमति मिल सके. ये सारे परिवर्तन ऐसे समय में हो रहे हैं जब जर्मन कार उद्योग धीमे विकास के दौर से गुजर रहा है और उसके पास निवेश के लिए बहुत ज्यादा रकम नहीं है. लेकिन इलेक्ट्रिक मोबिलिटी पर अरबों के निवेश की जरूरत होगी, खासकर छंटनी के खतरे को देखते हुए कर्मचारियों के प्रशिक्षण को भी प्राथमिकता देनी होगी.

रिपोर्ट: महेश झा (डीपीए)

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