इस गांव में केवल औरतें रहती हैं
२४ मार्च २०२१तीस साल पहले उत्तरी केन्या में रहने वाली जेन नोलमोंगन का जब एक ब्रिटिश सैनिक ने बलात्कार किया तो इसका पता चलने पर उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया. इसके बाद वह सुरक्षित ठिकाने की तलाश करती हुई अपने बच्चों समेत एक ऐसे गांव में पहुंची, जिसे पूरी तरह महिलाएं चलाती हैं और जहां कोई आदमी नहीं आ सकता.
बीते तीन दशकों से सांबूरू काउंटी के उमोजा गांव में रह कर अपने आठ बच्चों को पालते हुए जेन ने खेत में काम किया. अब वह खेत आधिकारिक रूप से उनके नाम पर दर्ज होने जा रहा है, जो उनके पुराने जीवन में नहीं हो पाता.
केन्या में 98 फीसदी जमीनें केवल आदमियों के नाम पर हैं. ज्यादातर कबीलों में खेत और जमीन ही नहीं महिलाएं भी पहले पिता और फिर पति की संपत्ति समझी जाती हैं. अब 52 साल की हो चुकी जेन बताती हैं, "यह गांव ही हमारा सहारा रहा है. हमने अपनी जिंदगी सुधारने के लिए यहां मिल कर काम किया है और एक दूसरे को महिलाओं के अधिकार की महत्ता समझाई है."
1990 में सांबूरू महिलाओं के आश्रय के रूप में बसे उमोजा गांव में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं से लेकर, घर से निकाली गई, संपत्ति या बच्चों से भी बेदखल की गई, बाल विवाह या खतने से खुद को बचा कर भागने वाली महिलाएं ठिकाना पाती हैं. अब इस काउंटी के प्रशासन ने इन महिलाओं को यहां की चरने वाली जमीन उनके नाम पर रजिस्टर कराने यानि टाइटल डीड की व्यवस्था की है. पहले से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को यह हक शायद कभी नहीं मिलता. अब यहां की महिलाएं आसपास के गांवों और समुदायों में जमीन को महिलाओं के नाम पर किए जाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
हेनरी लेनायासा उस प्रशासनिक ईकाई के प्रमुख हैं जिसमें इमोजा गांव आता है. यहां महिलाओं में जमीन की मिल्कियत हासिल करने की पहल को वह "पूरे इलाके में बढ़ती जागरुकता का उदाहरण” बताते हैं. केन्या का कानून पहले से ही देश के हर नागरिक को संपत्ति का बराबर अधिकार देता है लेकिन परंपरागत रूप से वह पिता से केवल बेटों के नाम कर दिया जाता है, और महिलाओं के नाम पर कुछ नहीं आता. लेकिन जल्दी ही उमोजा की महिलाएं उस जमीन पर कानूनी रूप से हक पा सकेंगी, जिसे उन्होंने अपनी कई सालों की अपनी बचत और लोगों से मिली दान की रकम से खरीदा है.
स्वाहिली भाषा में 'उमोजा' का अर्थ है एकता. इसे रेबेका लोलोसोली नामकी महिला ने शुरु किया था, जब उन पर महिलाओं के खतने का विरोध करने पर आदमियों ने एक समूह ने हमला कर घायल कर दिया था. अपनी चोट का इलाज कराते हुए अस्पताल में ही उन्हें ऐसा गांव बनाने का ख्याल आया जहां आदमियों का आना ही मना हो. तब 15 महिलाओं से शुरु हुए गांव में एक समय पर 50 से भी अधिक परिवार रह रहे थे. यहां घर से लेकर स्कूलों का तक का निर्माण भी महिलाओं ने खुद ही मिल कर किया है. महिलाएं शहद और हाथ से बनी चीजें बेचकर अपना और परिवार का गुजारा करती आई हैं.
जेन ने तो बच्चों को पढ़ा लिखा कर इतना काबिल बना दिया है कि उनका एक बेटा अब पुलिस में नौकरी करता है और एक बेटी पत्रकार बन कर दूसरों को भी उनके हक के बारे में जागरुक कर रही है.
आरपी/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)