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इस्राएल की भूलभुलैया में फंसे खाड़ी अरब देश

३० जून २०२०

सऊदी अरब से लेकर जॉर्डन तक आज कई खाड़ी देश आर्थिक और भूराजनैतिक हितों को देखते हुई इस्राएल के करीब जा रहे हैं. लेकिन पश्चिमी तट के एक बड़े हिस्से को इस्राएल में मिलाने की योजना कई समीकरणों को उलट पुलट कर सकती है.

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इस्राएली सैनिक
इस्राएल की योजना पर मध्य पूर्व में फिर राजनीति गर्मा रही हैतस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Xinhua/A. Nobani

माना जा रहा है कि 1 जुलाई को इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू अधिकृत पश्चिमी तट के 30 फीसदी तक हिस्से को इस्राएल में मिलाने की दिशा में अहम कदम उठा सकते हैं. इसमें इस्राइली बस्तियां और रणनीतिक रूप से अहम जॉर्डन घाटी का उपजाऊ इलाका भी शामिल है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की शांति योजना के बाद तैयार इस योजना की दुनिया भर में निंदा हुई है. फलस्तीनियों के अरब सहयोगियों ने भी इस पर नाराजगी जताई. पिछले हफ्ते अरब लीग ने चेतावनी दी थी कि इससे "हमारे क्षेत्र और उससे बाहर भी एक धार्मिक युद्ध शुरू हो सकता है."

मई में जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला द्वितीय ने जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल से बातचीत में कहा कि इस्राएल ने अधिकृत फलस्तीनी इलाकों को अपने इलाके में मिलाया तो इससे जॉर्डन और इस्राएल के बीच "बड़ा संघर्ष" शुरू हो सकता है. यही नहीं, उन्होंने शांति संधि को रोकने के साथ ही "सभी विकल्पों" पर विचार करने की बात भी कही.

जॉर्डन घाटी क्या इस्राएल के कब्जे में जाएगी?

अमेरिका में संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत यूसेफ अल-औतेबा ने इस्राइली अखबार 'येदिओथ अहरोनोथ' में प्रकाशित अपने एक लेख में कहा कि फलस्तीनी इलाके पर कब्जे करने से इस्राएल के साथ खाड़ी देशों के संबंध सामान्य करने की प्रक्रिया "खत्म" हो जाएगी.

अपने अपने हित

येरुशलम में अमेरिका के कौंसुल जनरल रह चुके जेक वालेस कहते हैं कि कुछ अरब देशों के साथ संबंधों को इस्राएल खास तौर से अहमियत देता है. उनके मुताबिक अरब देशों की प्रतिक्रिया को देखते हुए ही इस्राएल पूरे 30 प्रतिशत हिस्से को एकदम अपने इलाके में मिलाने की बजाय अभी सीमित इलाके को ही मिलाएगा.

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वालेस कहते हैं कि अगर इस्राएल जॉर्डन घाटी को अपने इलाके में मिलाने से पीछे हटता है और इस्राइली बस्तियों को तथाकथित 1967 की सीमा (अधिकृत फलस्तीनी क्षेत्र और इस्राएल के बीच अंतराष्ट्रीय स्तर पर मान्य सीमा) के करीब ले जाने की तरफ बढ़ता है, तो जॉर्डन उसके साथ सुरक्षा और राजनीतिक संपर्क रोक सकता है या फिर दोनों देशों के बीच हुई गैस डील भी खत्म की जा सकती है.   

लेकिन अमेरिका और इस्राएल की तरफ से उठाए गए इस तरह के पिछले कदमों की पहले भी निंदा हुई है. लेकिन इस पर फलस्तीनियों के अहम सहयोगियों की तरफ से कोई ठोस कदम देखने को नहीं मिला. इसका कारण यह है कि इस्राएल के साथ उनके आर्थिक संबंध बढ़ रहे हैं और वे अपने भूराजनैतिक हितों की अनदेखी नहीं कर सकते.

बदलती प्राथमिकताएं

कतर को हवाई, समुद्री और जमीनी संपर्कों के जरिए अलग थलग करने की सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की कोशिशों में उनकी बदली हुई प्राथमिकताएं नजर आती हैं. ये दोनों सहयोगी कतर पर आरोप लगाते हैं कि वह ईरान से संबंध रखकर आतंकवाद का समर्थन कर रहा है. ईरान को इस क्षेत्र में इस्राएल का भी कड़ा प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. सऊदी अरब ने 2018 में इस्राएल की कुछ उड़ानों को अपने वायुक्षेत्र में आने की इजाजत भी दे दी.

अमेरिकी विश्लेषक डेविड मिलर ने अपने एक हालिया लेख में कहा है कि इस्राएल और खाड़ी देशों के बीच अब एक साल में अनुमानित एक अरब डॉलर का कारोबार होता है. वह लिखते हैं, "पर्दे के पीछे खुफिया जानकारी और सुरक्षा मामलों पर काफी सहयोग हो रहा है."

दूसरी तरफ कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि खाड़ी देश जिस तरह से इस्राएल के साथ संबंध सामान्य बना रहे हैं, उससे इस्राएल की हिम्मत बढ़ी है और वह फलस्तीनी क्षेत्र को अपने इलाके में मिला रहा है.

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संबंधों को बढ़ाने का सिलसिला बीते दस साल से चल रहा है. इस्राएली-पेलेस्टीनियन फॉरम फॉर रिजनल थिंकिंग में फेलो एलिजाबेथ सुरकोरव कहती है कि इस बीच इस्राएल के दक्षिणपंथी लगातार मजबूत हो रहे हैं, जिससे साबित हो रहा है कि इस्राएल को पड़ोसी देशों की मान्यता और स्वीकार्यता हासिल करने के लिए फलस्तीनियों को रियायत देने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने पिछले महीने मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के लिए लिखा, "खाड़ी अरब देशों की सरकारें अब वही काट रही हैं जो उन्होंने बोया था. फलस्तीनी इलाके को इस्राएल में मिलाए जाने पर उनका विरोध खोखला है क्योंकि वे कई साल से इस्राएल के साथ रिश्ते सामान्य कर रहे हैं जबकि वह अपने सैन्य बल से फलस्तीनियों को कुचल रहा है."

रिपोर्ट: टॉम एलिसन, लेविस सैंडर्स फोर्थ/एके

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