ईयू की बुनियाद हिलाता प्रवासी संकट
२८ अगस्त २०१५अपने अपने देशों में युद्ध, अत्याचार और गरीबी जैसी परेशानियों से भागते हजारों लोग किसी तरह खतरनाक समुद्री रास्ता तय कर यूरोप पहुंचना चाह रहे हैं. इस कोशिश में हजारों लोग मारे भी जाते हैं लेकिन आप्रवासन का सिलसिला नहीं रूका है. यूरोप के देशों में उनका सामना कभी कंटीले तारों से तो कभी भूख और मेजबान देश के रूखे रवैए से होता है.
प्रवासियों की इन मुश्किलों पर ध्यान दिया जा रहा है और उसे बेहतर बनाने की कोशिशें भी हो रही हैं. बाल्कन देशों से इटली और ग्रीस पहुंच रहे लोगों के लिए नए सहायता केंद्र बनाए जा रहे हैं. पूर्वी यूरोप और अफ्रीका से भागकर आने वाले लोगों की मदद के लिए यूरोपीय संघ एकजुट दिख रहा है.
ईयू की प्रवासी नीतियों की आचोलक रही जेनेवा-स्थित संस्था इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन के प्रवक्ता लियोनार्ड डॉयल बताते हैं, "कई बार किसी उपाय तक पहुंचने के लिए पहले एक संकट का सामना करना पड़ता है. यूरोपीय प्रोजेक्ट के मामले में तो पहले दौरा पड़ा और तब शुरुआत हुई है." 28 देशों के इस संघ में अपने अपने राष्ट्रीय हितों के संघर्ष के कारण आप्रवासन के मुद्दे पर साझा दृष्टिकोण नहीं बन पाया. मगर डॉयल का मानना है कि "अब वे एक बेहतर प्रक्रिया की ओर बढ़ते दिख रहे हैं, वे कोशिश तो जरूर कर रहे हैं."
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के नेतृत्व में अब राजनीतिज्ञों में इस समस्या को सुलझाने का एक नया संकल्प दिख रहा है. मैर्केल ने वर्तमान प्रवासी संकट को यूरोप में दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयंकर संकट बताया है. उन्होंने इसे केवल एक वृहत मानवीय संकट ही नहीं बल्कि पूरे यूरोपीय संघ के अस्तित्व पर खतरा बताया है. यूरोप के विभिन्न देशों में कई राष्ट्रवादी ताकतें यूरोपीय लोगों को बांटने की कोशिशें कर रही हैं. गुरुवार को ऑस्ट्रियाई राजधानी वियना में बाल्कन देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद मैर्केल ने संदेश दिया, "पूरा विश्व हमें देख रहा है. मुझे दृढ़ विश्वास है कि एक समृद्ध महाद्वीप के तौर पर यूरोप इस समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है."
बीते कई महीनों से यूरोप आने की कोशिश में हजारों लोग भूमध्यसागर में नौका दुर्घटनाओं में मारे गए हैं. यूरोपीय आयोग में जून महीने में ही एक दीर्घकालिक "आप्रवासन अजेंडा" बना था, जिसका राष्ट्रीय नेताओं ने समर्थन तो किया लेकिन कौन कितना बोझ उठाएगा इस पर अब तक सहमति नहीं बन सकी है. 'डबलिन नियम' के अनुसार आप्रवासी जिस यूरोपीय देश में पहले कदम रखते हैं, उन्हें वहीं शरण मांगना होता है. 'शेंगेन नियमों' के अनुसार यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बीच आंतरिक सीमाओं पर कोई रोकटोक ना होने के कारण लोग एक से दूसरे ईयू देश में चले जाते हैं, और वहां जाकर शरण के लिए आवेदन करते हैं. शरणार्थियों की बाढ़ का सामना करने वाले इटली और ग्रीस डबलिन नियम में सुधार की मांग कर रहे हैं.
पिछले साल ईयू में शरणार्थी आवेदनों की संख्या में 2013 के मुकाबले 65 फीसदी बढ़त दर्ज हुई थी, जबकि इस साल इसके नए कीर्तिमान बन सकते हैं. केवल जर्मनी में ही पिछले साल के मुकाबले चार गुना शरणार्थियों के आने की उम्मीद जताई जा रही है. जर्मन सरकार 800,000 से ज्यादा शरणार्थियों के आने की उम्मीद कर रही है.
आरआर/एमजे (रॉयटर्स)