ईरान पर कार्रवाई के लिए अमेरिका जुटा रहा है समर्थन
१९ सितम्बर २०१९अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पेयो ने इसे सऊदी अरब के खिलाफ जंग की कार्रवाई कहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को अपने बयान में थोड़ी सावधानी बरती. उन्होंने कहा कि ईरान को जवाब देने के लिए कई विकल्प हैं. उन्होंने ईरान पर कुछ नए प्रतिबंध लगाने का एलान किया.
सऊदी रिफाइनरी पर 14 सितंबर को हुए हमले में शामिल होने से ईरान इनकार कर रहा है. इस हमले की वजह से सऊदी अरब को तेल का उत्पादन घटा कर आधा करने पर विवश होना पड़ा. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत भी बढ़ गई.
माइक पॉम्पेयो सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बात करने बुधवार को जेद्दा पहुंचे. यहां आने से पहले उन्होंने पत्रकारों से कहा, "यह उस स्तर का हमला है जो हमने पहले नहीं देखा. सऊदी देश पर हमला हुआ है. यह उनकी मिट्टी पर हुआ है. यह उनके खिलाफ सीधे तौर पर जंग की कार्रवाई है."
इधर जर्मन राजधानी बर्लिन में सऊदी अरब के राजदूत ने डॉयचलैंडफुंक रेडियो से कहा है कि सब कुछ सामने है और विकल्पों पर सावधानी से विचार करने की जरूरत है. सऊदी अरब ने इसे हमले को "वैश्विक इच्छाशक्ति की परीक्षा" बताया है. बुधवार को सऊदी अरब ने 25 ईरानी ड्रोन और मिसाइलों के अवशेष दिखाए और कहा कि इन्हें हमले में इस्तेमाल किया गया है. सऊदी अरब ने इन अवशेषों को ईरानी हमले के सबूत के तौर पर पेश किया.
गुरुवार को संयुक्त अरब अमीरात ने अपने सहयोगी सऊदी अरब की राह पर चलते हुए ग्लोबल मैरीटाइम सिक्योरिटी कोएलिशन में शामिल होने का एलान किया. खाड़ी में हुए हाल के कुछ हमलों के बाद अमेरिका इस सहयोग संगठन को खड़ा करने की कोशिश कर रहा है. इन हमलों के आरोप भी ईरान पर हैं.
यमन में ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों का आंदोलन सऊदी नेतृत्व वाली फौज से जंग लड़ रहा है. सऊदी अरब के तेल संयंत्रों पर हुए दो हमलों की जिम्मेदारी भी इन्हीं विद्रोहियों ने ली है. इन संयंत्रों में दुनिया का सबसे बड़ा संयंत्र भी शामिल है. अमेरिका और सऊदी अरब के अधिकारी इन दावों को खारिज कर रहे हैं उनका कहना है कि हमला दक्षिण की तरफ से नहीं हुआ है.
बुधवार को हूथी विद्रोहियों ने कहा कि उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात और मध्यपूर्व के आर्थिक और पर्यटन के लिहाज से अहम दर्जनों ठिकानों की सूची बनाई है जिस पर वो हमला करेंगे. अगर ये हमले सचमुच हुए तो तनाव और बढ़ेगा. कतर समेत आस पास के देशों ने अपने तेल ठिकानों की सुरक्षा बढ़ा दी है.
माइक पॉम्पेयो सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से मिलने के बाद अबू धाबी के क्राउन प्रिंस से मिलने जा रहे हैं. इस बीच हमले के बाद तेल की कीमतों में आई तेजी अब स्थिर हो गई है, सऊदी अरब ने इस महीने के आखिर तक तेल का फिर से पूरा उत्पादन शुरू करने की बात कही है.
अगर यह साबित हो जाता है कि हमला ईरान ने किया है और यह ईरानी जमीन से किया गया तो सऊदी अरब और अमेरिका के लिए ईरान पर कार्रवाई के लिए दबाव बढ़ जाएगा. ये दोनों देश इलाके में ईरान के असर को कम करना चाहते हैं. हालांकि ट्रंप ने कहा है कि वह युद्ध नहीं चाहते और खाड़ी और यूरोपीय देशों के साथ सहयोग कर रहे हैं. पॉम्पेयो का कहना है कि अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में इन हमलों पर विशेष ध्यान रहेगा. उनका यह भी कहना है कि सऊदी अरब वहां इस मामले को उठा सकता है.
इस बीच फ्रांस के विदेश मंत्री जां इव लुद्रियां ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा है, "अंतरराष्ट्रीय जांच हो रही है, आइए उसके नतीजों का इंतजार करें." इसके साथ ही फ्रांसीसी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र की बैठक ने एक मौका दिया है कि तनाव को कम किया जाए. फ्रांस की सेना के प्रवक्ता का कहना है कि उसने सात विशेषज्ञों को सऊदी अरब भेजा है जो जांच में शामिल होंगे.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी ईरान और यमन पर प्रतिबंधों पर नजर रख रहे हैं और साथ ही हमले की जांच में भी मदद कर रहे हैं. इन हमलों ने सऊदी अरब के एयर डिफेंस सिस्टम की कमियों की ओर भी ध्यान दिलाया है. सऊदी अरब अरबों डॉलर की रकम एयर डिफेंस सिस्टम के लिए पश्चिमी हथियारों की खरीदारी पर कर रहा है.
अमेरिका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से भी इस हमले पर कार्रवाई चाहता है लेकिन उम्मीद कम ही है कि ऐसा हो पाएगा. चीन और रूस के पास वीटो पावर है और उम्मीद की जा रही है कि वो ईरान को बचा लेंगे.
ईरान का कहना है कि अमेरिका के आरोप ईरान पर उसकी "अत्यधिक दबाव" बनाने की नीति का हिस्सा हैं, ताकि ईरान को 2015 में हुई परमाणु डील पर फिर से बातचीत के लिए रजामंद किया जा सके. बीते साल डॉनल्ड ट्रंप ने इस डील से बाहर आने का एकतरफा एलान कर दिया और ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए.
अमेरिका और उसके खाड़ी देशों के सहयोगी चाहते हैं कि ईरान इलाके के विद्रोही गुटों को समर्थन देना बंद करे. इसमें यमन, इराक और लेबनान के विद्रोही गुट शामिल हैं. इसके साथ ही ये देश ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को और ज्यादा सीमित करना चाहते हैं. यमन में पश्चिम समर्थित सुन्नी मुसलमानों के गठबंधन में सऊदी अरब और यूएई प्रमुख देश हैं. इन देशों ने यमन में अपनी सैन्य मौजूदगी घटाई है क्योंकि ईरान के साथ बढ़ते तनाव के कारण खाड़ी में युद्ध की आशंका बन रही है. पश्चिमी सहयोगी देश भी चाहते हैं कि यमन की लड़ाई जल्दी से खत्म हो.
यमन की लड़ाई एक तरह से सऊदी अरब और ईरान के बीच छद्म युद्ध की तरह चल रही है. इसमें दसियों हजार लोग मारे गए हैं जबकि लाखों लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. जर्मनी जैसे कुछ पश्चिमी देशों ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री रोक दी है.
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
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