एंटीबॉडी टेस्ट से उम्मीद बढ़ रही है
२५ अप्रैल २०२०बर्लिन में सूरज बस अभी निकला ही है लेकिन 65 साल के लोथार कोप्प राइनिक्केनडोर्फ जिले में एक क्लिनिक के बाहर कतार में खड़े हो गए हैं. वहां मास्क पहने मुट्ठी भर लोग और हैं. ये लोग एक दूसरे से दो-दो मीटर की दूरी पर खड़े हैं. सब वहां अपने खून का सैंपल देने आये हैं. इसका मकसद एंटीबॉडी टेस्ट की मदद से यह जानने के लिए कि क्या उन्हें कभी कोरोनावायरस का संक्रमण हुआ था और क्या उसके बाद उनके शरीर में उसके खिलाफ लड़ने के लिए इम्युनिटी विकसित हो गई.
कोप्प कहते हैं, "अगर मुझे पहले से ही कोरोना है तो मैं संक्रामक नहीं हूं." वो उम्मीद कर रहे हैं कि उनके एंटीबॉडी टेस्ट का नतीजा पॉजिटिव आए जिस से कि वो अपनी बूढी मां से मिलने बिना बीमारी फैलाने के डर के जा सकें. जर्मनी में हजारों टेस्ट किए जा चुके हैं और बड़े अध्ययन चल रहे हैं. कई और देशों में आबादी में इम्युनिटी के स्तर का पता लगाने के लिए कोशिशें चल रही हैं.
न्यू यॉर्क के गवर्नर एंड्रू कुओमो ने पिछले सप्ताह कहा कि उनके राज्य में बाकी "सभी राज्यों से ज्यादा आक्रामक तरीके से" टेस्ट शुरू किये जाएंगे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कितने लोगों को यह बीमारी हो चुकी है. टेस्ट की गति बढ़ाने के लिए, अमेरिका के नियामक ने एक असाधारण निर्णय के तहत व्यावसायिक निर्माताओं को औपचारिक अनुमति के बिना ही अपने टेस्ट को बाजार में लाने की अनुमति दे दी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरी संस्थाओं के विशेषज्ञों ने इन टेस्टों की एक्यूरेसी को लेकर सावधान रहने को कहा है. इस वायरस के बारे में जो बातें अभी तक मालूम नहीं हुई हैं उनमें यह सवाल भी शामिल है कि इम्युनिटी आखिर कितने समय तक रह सकती है. यह संभव है कि पॉजिटिव आने वाले एंटीबॉडी टेस्ट भी ज्यादा समय तक कारगर नहीं रहेंगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक प्रवक्ता ने सावधानी बरतने की अपील करते हुए कहा कि एंटीबॉडी टेस्ट को लेकर "काफी चर्चा" है, लेकिन "हो सकता है कि वैलीडेटेड टेस्ट अपने पास होने के बावजूद हमें यह पता ना चल सके कि एक पॉजिटिव नतीजे और बीमारी से सुरक्षा में कितना परस्पर सम्बन्ध है या यह सुरक्षा कब तक रहेगी." प्रोफेशनल एसोसिएशन ऑफ जर्मन लेबोरेटरी डॉक्टर्स (बीडीएल) के बोर्ड के सदस्य मैथियस और्थ का कहना है कि गलत नतीजे एक बड़ी समस्या हैं.
उन्होंने कहा कि किसी को कोविड-19 होने के बावजूद भी उसके टेस्ट का नतीजा नेगेटिव आ सकता है. उन्होंने कहा, "ऐसी कई साधारण कोरोनावायरस भी होते हैं जिनसे कोई गंभीर बीमारी नहीं होती, लेकिन उनकी वजह से टेस्ट का नतीजा पॉजिटिव आ सकता है." तथाकथित रैपिड एंटीबॉडी टेस्टों के बारे में और्थ कहते हैं, "वो नॉनसेंस होते हैं." इस तरह के टेस्टों में एक किट की मदद से घर पर ही उंगली से खून निकाल कर जांच की जा सकती है और 15 मिनट में नतीजा मिल जाता है.
और्थ के अनुसार और ज्यादा सटीक टेस्ट आने में कुछ सप्ताह का समय लगेगा लेकिन "अभी मरीजों को स्पष्ट यह कहने का समय नहीं आया है कि वो निश्चित रूप से इम्यून हैं." विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जर्मनी में हो रहे सभी बड़े अध्ययनों से यह पता चल सकता है कि कितने लोगों को संक्रमण हो चुका है, उनसे यह पक्के तौर पर पता नहीं चल सकता कि कितने लोग इम्यून हैं. इसका कारण है मौजूदा एंटीबॉडी टेस्टों की सीमाएं.
फिर भी, इन अध्ययनों पर सबकी नजर है. इनमें से एक म्युनिख में भी हो रहा है जहां वीकेंड पर वैज्ञानिकों ने टेस्ट करने के लिए 3,000 परिवारों को रैंडम चुना. हाइंसबर्ग जिले के गांगेल्ट में भी एक स्टडी चल रही है, जहां जर्मनी के पहले बड़े संक्रमण के क्लस्टर का पता चला था. रिसर्चरों के मुताबिक यहां 14 प्रतिशत लोग पहले संक्रमित हो चुके थे. जर्मनी में कई दवा कंपनियों ने इन एंटीबॉडी टेस्टों को बाजार में उतारना शुरू कर दिया है.
आदर्श रूप से इनका पहले लेबोरेटरी में विश्लेषण कर लेना जरूरी है. ए एल एम एसोसिएशन ऑफ एक्रेडिटेड मेडिकल लैबोरेटरीज अनुसार 54 लैबोरेटरीज 70,000 टेस्ट कर चुकी हैं. राइनिक्केनडॉर्फ क्लिनिक के डॉक्टर उलरिष लाइमर-लीपके कहते हैं, "मुझे लगता है ये काफी ठीक तरीका है क्योंकि इस तरह हम यह पता लग सकते हैं कि लोगों में इम्युनिटी है या नहीं. ऐसे लोग जिन्हें उनके माता-पिता या दादा-दादी का ख्याल रखना है उनके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वे इम्यून हो चुके हैं या नहीं." उनका क्लिनिक मार्च के मध्य से एंटीबॉडी टेस्ट कर रहा है.
सीके/एनआर(एएफपी)
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