एनआरसी को लेकर इतना हंगामा क्यों है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन यानी एनआरसी की वजह से असम में रहने वाले लाखों लोगों का भविष्य अधर में लटका है. चलिए जानते हैं कि क्या है एनआरसी.
क्या है एनआरसी
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सूची है. जिन लोगों के नाम इस सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाएगा.
बिखरेंगे परिवार
30 जुलाई को प्रकाशित एनआरसी के अंतिम मसौदे में 40 लाख बांग्ला भाषियों के नाम नहीं है. इस तरह दशकों से असम में रह रहे कई परिवारों के बिखरने की आशंका पैदा हो गई है.
एनआरसी की जरूरत
कुछ संगठन एनआरसी को बांग्ला भाषी मुसलमानों को निशाने बनाने की कोशिश के तौर पर देखते हैं जबकि सरकार इसे असम में बड़ी तादाद में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए जरूरी बताती है.
एनआरसी की कसौटी
24 मार्च 1971 तक जिन लोगों के नाम असम की मतदाता सूचियों में शामिल थे, उन्हें और उनके बच्चों को एनआरसी में शामिल किया गया है. इस तरह दशकों से असम में रहे कई लोग भी शर्त पूरा करने की स्थिति में नहीं होंगे.
सुरक्षा सख्त
एनआरसी में 40 लाख लोगों के नाम ना होने से तनाव बढ़ने की आशंका हैं जिन्हें देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंताजम किए गए हैं. केंद्र सरकार ने असम में अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजे हैं.
देश निकाला?
सरकार ने साफ किया है कि फिलहाल 40 लाख लोगों में किसी को न तो जेल में डाला जाएगा और न ही बांग्लादेश भेजा जाएगा. उन्हें नागरिकता साबित करने का पूरा मौका दिया जाएगा.
पहला एनआरसी
भारत के विभाजन के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) से आने वाले अवैध आप्रवासियों की पहचान के लिए राज्य में 1951 में पहली बार एनआरसी को अपडेट किया गया था.
घुसपैठ की समस्या
उसके बाद भी घुसपैठ लगातार जारी रही. खासकर वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद असम में इतनी भारी तादाद में शरणार्थी पहुंचे कि राज्य में आबादी का स्वरूप ही बदलने लगा.
आंदोलन
अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने अस्सी के दशक की शुरुआत में असम आंदोलन शुरू किया था. लगभग छह साल तक चले इस आंदोलन के बाद 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
लटकता रहा मामला
इस समझौते के मुताबिक 25 मार्च 1971 के बाद से असम में अवैध रूप से रहने वालों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं होंगे और एनआरसी को अपडेट किया जाएगा. लेकिन यह काम किसी न किसी वजह से लटका रहा.
पहला चरण
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और उसकी देख-रेख में 2015 में यह काम शुरू हुआ. असम में 3.29 आवेदकों में से 1.9 करोड़ के नाम इस साल जनवरी में ही भारतीय नागरिकों के तौर पर दर्ज हो गए.
अधर में भविष्य
ताजा मसौदा प्रकाशित होने के बाद में अब कुल 2.89 करोड़ लोगों के नाम भारतीय नागरिक के तौर पर दर्ज किए गए हैं. जिन 40 लाख लोगों के नाम इसमें शामिल नहीं है, उनका भविष्य फिलहाल डांवाडोल है.