एफडीआई पर सुलह के संकेत
२८ नवम्बर २०१२भारत में संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने अपने डिप्टी राजीव शुक्ला के साथ लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के साथ बातचीत की. उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली से भी चर्चा की.
कमलनाथ ने इसके बाद बताया, "प्रेसाइडिंग ऑफिसर इस सत्र में जो चाहे, फैसला कर सकते हैं." उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार को नंबर के मामले में किसी तरह की चिंता नहीं है और यह अब सांसदों को फैसला करना है कि आगे वे क्या चाहते हैं.
उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि संसद के शीतकालीन सत्र का चार दिन सरकार ने खराब कर दिया क्योंकि उसके पास तब तक सही नंबर नहीं थे, "पहले दिन से हमने कहा है कि हमारे पास संख्या है." अभी हाल ही में डीएमके ने इस बात का एलान किया है कि वह खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मुद्दे पर सरकार का साथ देगी, जिसके बाद कांग्रेस खुल कर इस मुद्दे पर बात कर पा रही है.
कमलनाथ ने इससे पहले लोकसभा स्पीकर से भी इस मुद्दे पर बात की. बीजेपी संसद के अंदर एफडीआई पर उस नियम के तहत बहस चाहती है, जिसके अंत में वोटिंग का प्रावधान है. उसका कहना है कि मल्टीब्रांड में विदेशी निवेश पर सरकार ने फैसला लेने से पहले संबंधित पक्षों की राय नहीं ली. स्वराज का कहना है कि ऐसी स्थिति में वोटिंग ही एकमात्र रास्ता है.
बीजेपी का कहना है कि इस वोटिंग का मतलब यह नहीं कि सरकार गिर जाएगी. उन्होंने कहा, "सरकार नहीं गिरेगी, सिर्फ एफडीआई का खात्मा होगा. अगर ज्यादातर सांसद इसके खिलाफ होंगे तो सरकार को अपना फैसला बदलना होगा." हालांकि कमलनाथ का कहना है कि सोमवार को जो सर्वदलीय बैठक हुई, उसमें शामिल ज्यादातर लोग वोटिंग नहीं चाहते थे. जब संसदीय कार्य मंत्री से खुल कर पूछा गया कि क्या सरकार इस मुद्दे पर वोटिंग के लिए तैयार है, तो उन्होंने कहा, "हमें इससे एतराज नहीं है."
सरकार में शामिल ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने एफडीआई के मुद्दे पर सरकार का साथ छोड़ दिया, जिसके बाद से भारत में यूपीए की सरकार अल्पमत में आ गई. हालांकि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने इस बात का संकेत दिया है कि वे सरकार के खिलाफ नहीं जाएंगे. समजवादी पार्टी सोच रही है कि अगर इस मामले पर वोटिंग होती है, तो वह इससे अलग रहेगी. हालांकि बुनियादी तौर पर वह भी एफडीआई का विरोध करती आई है.
बीजेपी के अलावा वामपंथी पार्टियां, बीजेडी, एआईएडीएमके और टीडीपी भी वोटिंग की मांग कर रही हैं. लोकसभा में सरकार को संख्याबल में किसी तरह की दिक्कत नहीं है लेकिन राज्यसभा में नंबर उसके साथ नहीं हैं. लोकसभा के 545 सदस्यों में से उसके पास 265 सांसदों का साथ हासिल है, जबकि कुछ और पार्टियां पीछे से उसका समर्थन कर सकती हैं और ऐसे में बहुमत के 271 का आंकड़ा पार किया जा सकता है.
लेकिन राज्यसभा में 244 सांसद हैं और यूपीए के पास सिर्फ 94 हैं. 10 सांसद मनोनीत होते हैं, जो सरकार का साथ दे सकते हैं. बाकी सात निर्दलीय हैं, जिनमें कितने सरकार के साथ जाएंगे, बताना मुश्किल है.
एजेए/एनआर (पीटीआई)