ऐन फ्रैंक पर वीडियो गेम
२८ सितम्बर २०१३रसोई में बैठी ऐन पढ़ाई कर रही है. मां दोपहर का खाना बना रही है. अचानक वह उसे परछत्ती से आलू लाने को कहती है. ऐन आज थोड़ी चिड़चिड़ी है. क्या वह आलू का थैला लेने जाएगी? कहीं लौटते वक्त उसका पैर तो नहीं फिसल जाएगा और वह सीढ़ियों से गिर तो नहीं जाएगी? अगर ऐसा हुआ तो शोर हो जाएगा. कहीं पड़ोसियों ने उसकी आवाज सुन ली तो? लेकिन अगर वह नहीं गई, तो क्या मां उस से नाराज नहीं हो जाएगी? वैसे भी मां के साथ उसका पहले ही काफी झगड़ा हो चुका है.
कौन है ऐन फ्रैंक?
ऐन क्या करेगी और क्या नहीं ये फैसले वह खुद नहीं लेगी, बल्कि उसके लिए लेगा वीडियो गेम खेलने वाला शख्स. गेम डिजाइनर कीरा रेसारी ने ऐन फ्रैंक के जीवन पर उसी के नाम से एक गेम बनाई है. ऐन नाजी काल की दुनिया की सबसे चर्चित बच्ची है. जिस समय हिटलर यहूदियों पर जुल्म ढा रहा था, ऐन का परिवार उसे लेकर जर्मनी छोड़ नीदरलैंड्स चला गया. 1934 में जब वह एम्सटरडैम पहुंचे तब ऐन की उम्र पांच साल थी. लेकिन 1940 में नाजी वहां भी पहुंच गए और यहूदियों को यातना शिविर भेजने लगे. इससे बचने के लिए ऐन के पिता ऑटो फ्रांक ने अपनी फैक्ट्री की सबसे ऊपरी मंजिल में पूरे परिवार को छिपा लिया. 12 जून 1942 को ऐन के 13वें जन्मदिन के मौके पर उनके पिता ने उपहार में एक डायरी दी. बाद में जब परिवार को छिपना पड़ा तो आने ने इसी डायरी में अपने सारे अनुभव लिखे. उनके परिवार में बस उनके पिता ही यातना शिविर से जिंदा लौट सके. वापस आने के बाद उन्होंने ऐन की डायरी को प्रकाशित करवाया. आज यह डायरी 55 भाषाओं में उपलब्ध है.
कीरा रेसारी चाहते हैं कि गेम के जरिए लोग समझ सकें कि ऐन और उनका परिवार किन परिस्तिथियों में रहा. लेकिन यह गेम विवादों में भी घिरी है. कई लोगों को इस बात का डर है कि गेम के कारण आने की शख्सियत की अहमियत कम हो सकती है. लेकिन कीरा इसे गलत मानते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "गेम से आप भावनाएं भी जोड़ सकते हैं. किताबें और फिल्में भी मुश्किल मुद्दों को उठाती हैं, तो फिर कंप्यूटर गेम को इस से वंचित क्यों रखा जाए?" ऐन के जीवन पर पहले ही कई फिल्में बन चुकी हैं. इनमें से 1959 में बनी फिल्म 'द डायरी ऑफ ऐन फ्रैंक" को तीन ऑस्कर भी मिले हैं.
ऐन के साथ एक दिन
कीरा रेसारी अपनी बनाई इस गेम को 'इंटरैक्टिव एक्सपीरियंस' का नाम देते हैं. वह चाहते हैं कि लोग इस बात का अनुभव कर सकें कि आने के लिए एक आम दिन कैसा हुआ करता था. गेम में न ही कोई 3डी इफेक्ट डाले गए हैं और ना ही इसे सनसनीखेज बनाते हुए साउंड एफेक्ट हैं. ग्राफिक्स को बिलकुल सरल रखा गया है और पियानो का उदास कर देने वाला संगीत है.
गेम खेलने वाले को ऐन की जिंदगी का एक दिन दिया जाता है: 20 अक्टूबर 1942. परिवार को अभी यहां आए कुछ ही दिन हुए हैं और ऐन को अभी यहां रहने की आदत नहीं पड़ी है. ऐन के किरदार में खिलाड़ी पिता ऑटो, मां एडिथ और बहन मारगोट के साथ पूरा दिन बिताते हैं. खिलाड़ी खुद तय कर सकता है कि ऐन कब पढ़ाई करेगी, घर के काम में हाथ बंटाएगी या फिर डायरी लिखने बैठेगी. अपनी गेम के बारे में कीरा बताते हैं, "आप मजे के लिए इसे नहीं खेलते हैं. मैं ऐक्शन की जगह भावनाएं दिखाना चाहता हूं, ताकि आपको पता चल सके कि 50 वर्गमीटर में सात लोगों और एक बिल्ली के साथ रहना कैसा लगता है."
कीरा कहते हैं कि जब उन्होंने ऐन की किताब पढ़ी तो उनके जेहन में सबसे पहले यही बात आई कि उस घर में, जहां से लोग बाहर ही नहीं जा सकते, आखिर वे सारा दिन करते क्या होंगे. फिर बैचलर की पढ़ाई के दौरान एक प्रोफेसर ने बातों बातों में कहा कि क्या पता किसी दिन तुम में से कोई ऐन फ्रैंक पर गेम बनाने लायक बन जाए. बस फिर क्या था, अगले सेमेस्टर में कीरा ने गेम तैयार कर दी.
इसके लिए वह एम्सटरडैम में उस घर में भी गए जहां ऐन अपने परिवार के साथ छिप कर रहीं. इस बीच इस घर को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है, ताकि लोग यहां आ कर सब देख सकें. संग्रहालय की वेबसाइट पर एक ऑनलाइन टूर भी है. इसमें गेम की तरह आप ऐन की दिनचर्या निर्धारित तो नहीं कर सकते, लेकिन कमरों से गुजर जरूर सकते हैं. वैसे कीरा की गेम में भी आप कुछ ही चीजों को बदल सकते हैं. न ही आप ऐन को घर से बाहर ले जा सकते हैं और ना ही उनके परिवार को यातना शिविर में भेज दिए जाने से रोक सकते हैं.
फिलहाल यह गेम बाजार में नहीं आई है. कीरा इससे पैसा नहीं कमाना चाहते, बल्कि स्कूली बच्चों और युवाओं को ऐन के और करीब लाने की उम्मीद करते हैं.
रिपोर्ट: यान ब्रुक/आईबी
संपादन: ए जमाल