ऑक्सीजन कांड में उड़ ना जाए गोरखपुर की असली समस्या
१८ अगस्त २०१७पूर्वोत्तर यूपी के गोरखपुर शहर में कई दशकों से साल दर साल इन्सेफेलाइटिस या मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित बच्चों का इलाज करने वाले डॉक्टर इस कांड में किसी को ऑक्सीजन से भी बड़ा खलनायक मानते हैं. उनका कहना है कि अब वक्त आ गया कि इतने लंबे समय से अस्पताल में चले आ रहे गंभीर कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और उपेक्षा के कारण बिगड़ती ही गयी इन्सेफेलाइटिस की समस्या पर ध्यान दिया जाये. हर साल हजारों बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते हैं.
हाल ही में इस कांड की जांच के लिए नई दिल्ली से गोरखपुर पहुंचा विशेषज्ञ दल इस नतीजे पर पहुंचा कि इन बच्चों की मौत का जिम्मेदार ऑक्सीजन का अवरुद्ध होना नहीं था. फिर भी अब तक लोग इसी बारे में बात कर रहे हैं कि एक अस्पताल में कोई ऑक्सीजन की आपूर्ति कैसे रोक सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिये अपने भाषण में मरने वाले बच्चों के परिवारजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की.
इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर गोरखपुर की इस समस्या के प्रकाश में आने के कारण डॉक्टर उम्मीद जता रहे हैं कि प्रशासन का ध्यान मूल समस्या यानि इन्सेफेलाइटिस की बीमारी की तरफ जाएगा. साल 2010 से केवल यूपी में ही इन्सेफेलाइटिस करीब 25,000 बच्चों को बीमार कर चुका है और 4,000 से अधिक बच्चों की जान ले चुका है.
गंभीर इन्सेफेलाइटिस में सिर दर्द के साथ तेज बुखार, गर्दन में अकड़न, घबराहट, कोमा में चले जाना, कंपकंपी, ऐंठन, मस्तिष्क में सूजन या फिर पक्षाघात भी हो सकता है. हर साल मानसून की बारिश के दौरान मच्छरों के माध्यम से इसके फैलने की संभावना काफी बढ़ जाती है.
तीन दशक तक बच्चों का इलाज करने के बाद गोरखपुर के इसी मेडिकल कॉलेज से सेवानिवृत्त हुए डॉक्टर केपी कुशवाहा का कहना है कि इसके फैलने का कारण इलाके में गंदे पानी में घुले मल जैसे अपशिष्ट पदार्थ भी होते हैं. हालांकि साफ सफाई की कमी, खुले में शौच और अपशिष्ट पदार्थ की सुरक्षित और समुचित निकासी की समस्या गोरखपुर या यूपी ही नहीं भारत भर में आज भी एक समस्या है. कुशवाहा कहते हैं, "हम केवल आग बुझा रहे हैं, अब भी आग लगने के कारणों को मिटाने पर ध्यान नहीं दे रहे."
जापानी इन्सेफेलाइटिस अब तक कई एशियाई देशों से मिट चुकी है. लेकिन नेपाल और उसके साथ लगी भारतीय सीमा के कई इलाकों में आज भी इसका प्रकोप है.
2005 में जापानी इंसेफेलाइटिस के शिकार हजारों बच्चे गोरखपुर के इसी मेडिकल कॉलेज में पहुंचे थे. हाल के दशकों में इससे बड़ा कांड और कहीं देखने को नहीं मिला है. गोरखपुर और आसपास के संक्रमित बच्चों में से एक हजार से भी अधिक की मौत हो गयी थी. इन सब मौतों को टाला जा सकता था, अगर समय रहते एक सस्ता टीका लग जाता.
बीते कुछ सालों से दिये जा रहे इस टीके के कारण हर साल मरने वालों की संख्या अब गिरकर दहाई अंकों में आ गयी है. फिर भी 20 करोड़ की आबादी के साथ भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में हर साल 3,000 से अधिक ऐसे मामले सामने आते हैं.
आरपी/एनआर (एपी)