भूखे मरने की स्थिति में हैं हजारों भारतीय स्टूडेंट्स
९ अप्रैल २०२०मनबीर सिंह के पास दो बच्चे हैं. और इस वक्त नौकरी नहीं है. ऑस्ट्रेलिया के गोलबर्न में रहने वाले मनबीर को घर का किराया देना है. खाना-पीना और रोजाना का बाकी सामान चाहिए. डॉक्टरों को देने के लिए पैसे चाहिए. यूनिवर्सिटी की फीस देनी है. और सरकार से कोई मदद नहीं मिलेगी.
कोरोना वायरस महामारी ने मनबीर की जिंदगी में ऐसी उथल-पुथल मचाई है कि अब कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. नाम बदलकर यह कहानी आप ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हजारों भारतीयों के बारे में कह सकते हैं. कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन का असर लाखों लोगों पर पड़ा है. काम-धंधे बंद हैं और हजारों लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है.
भूख और बेरोजगारी
मनबीर उन्हीं में से एक हैं जिनकी नौकरी गई है. लेकिन मनबीर जैसे लोगों की हालत ज्यादा खराब है. जिन लोगों की नौकरी चली गई है, उन्हें सरकार आर्थिक मदद दे रही है. हर व्यक्ति को करीब तीन हजार ऑस्ट्रेलियन डॉलर प्रतिमाह की मदद दी जा रही है. पर यह मदद सिर्फ देश के स्थायी निवासियों और नागरिकों के लिए है. यानी उन लोगों के लिए नहीं, जो अस्थायी वीजा पर ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं. जैसे कि स्टूडेंट्स.
ऑस्ट्रेलिया में करीब 70 हजार भारतीय ऐसे हैं जो स्टूडेंट वीजा पर हैं. स्टूडेंट वीजा पर होने का अर्थ है कि उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती है, जैसी कि ऑस्ट्रेलिया के स्थायी निवासियों को मिलती है. मसलन, स्थायी निवासियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त होती हैं. नौकरी जाने की स्थिति में उन्हें आर्थिक मदद भी मिल रही है. व्यापारियों को भी विशेष मदद दी जा रही है. लेकिन स्टूडेंट्स के लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं है. बल्कि, सरकार ने स्पष्ट कह दिया है कि उन्हें अपने बारे में खुद ही सोचना होगा.
सरकार का रवैया
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि अस्थायी वीजा पर रहने वाले लोगों को अपने बारे में खुद ही सोचना होगा क्योंकि उनकी प्राथमिकता ऑस्ट्रेलियाई हैं. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "जब स्टूडेंट्स पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया आते हैं तो वे लिखित में देते हैं कि उनके पास एक साल तक अपना खर्च उठाने के लिए पर्याप्त धन है.”
समस्या यह है कि व्यवहारिक सच्चाई, कागजों पर लिखे तथ्यों से एकदम अलग है. ऑस्ट्रेलिया या फिर दुनिया के किसी भी देश में पढ़ने के लिए जाने वाले भारतीय इस भरोसे के साथ जाते हैं कि वहां नौकरी करेंगे और अपनी पढ़ाई का खर्च भी उठाएंगे. यह भरोसा उन्हें उस मार्किटिंग के दौरान भी दिया जाता है, जो विदेशी यूनिवर्सिटी उन्हें आकर्षित करने के लिए जोर-शोर से करती हैं. एजेंट इन स्टूडेंट्स को बताते हैं कि विदेशों में बहुत काम है और छोटे-मोटे कामों में भी बहुत पैसा मिलता है. इसिलए खर्चे की चिंता मत करो.
इस भरोसे के साथ लाखों लोग कर्ज लेकर भी विदेश जाते हैं. इस भरोसे का आधार भी है. विदेशों में स्टूडेंट्स सफाई, धुलाई, रेस्तरां, शॉपिंग मॉल्स, सुपरमार्किट आदि में काम करते हैं और अपना खर्चा उठाते हैं. इस मेहनत के दौरान वे इस उम्मीद पर पल रहे होते हैं कि एक दिन उनकी पढ़ाई पूरी होगी, वे बढ़िया नौकरी करेंगे और विदेश में ही बस जाएंगे. भविष्य की इस योजना में कोरोना वायरस जैसे संकट के लिए कोई कॉलम नहीं होता.
समुदाय बना सहारा
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले स्टूडेंट्स के लिए इस वक्त सबसे बड़ा सहारा यहां के भारतीय समुदाय हैं. हर शहर में ऐसे कदम उठाए गए हैं कि किसी स्टूडेंट को परेशानी ना हो. जैसे कि बहुत से भारतीय रेस्तराओं ने उनके लिए मुफ्त खाना उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है. विभिन्न संगठनों ने उनके किराए आदि की जिम्मेदारी उठाई है. समूह बनाकर मनबीर जैसे लोगों तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है.
Adopt an Indian Student Covid19 Support Group नाम से एक संगठन काम कर रहा है. इस संगठन की कोशिश है कि हर जरूरतमंद स्टूडेंट को एक परिवार मिल जाए जो उसकी देखभाल करे और संकट के समय में उसका साथ दे. इस कोशिश के तहत बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स को मदद मिली है.
इसके अलावा यूनिवर्सिटी भी अपने-अपने स्तर पर स्टूडेंट्स की मदद कर रही हैं. जैसे कि कुछ यूनिवर्सिटी ने फीस माफ कर दी है. यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने जरूरतमंद स्टूडेंट्स को पांच हजार डॉलर की मदद की घोषणा की है.
भारत सरकार का योगदान
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले बहुत से भारतीय स्टूडेंट्स ऐसे हैं जो स्वदेश लौट जाना चाहते थे. चूंकि पढ़ाई बंद हो गई है या क्लास ऑनलाइन हो रही हैं, तो जिनकी नौकरियां चली गई हैं वे भारत जाना चाह रहे हैं. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि भारत सरकार ने सीमाएं बंद कर दीं. सैकड़ों स्टूडेंट्स ने तो टिकटें भी बुक करवा रखी थीं.
बहुत से लोगों ने सरकार से मदद की औपचारिक मांग भी की. एक पत्र लिखा गया कि उन्हें एयरलिफ्ट करा लिया जाए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हालांकि भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने ऑस्ट्रेलिया से बातचीत की. लेकिन उस बातचीत का कोई ठोस नतीजा फिलहाल सामने नहीं आया है.
ज्यादातर लोग इस भरोसे पर हैं कि 14 अप्रैल को भारत की सीमाएं खुलेंगी, जिसके बाद उड़ानें शुरू होंगी और वे घर जा सकेंगे.
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