कंक्रीट को छह गुना मजबूत बनाने वाला फाइबर
९ दिसम्बर २०१६आज की दुनिया कंक्रीट से बनी है. लोहे के कंकाल पर खाल की तरह मढ़े गए इस पदार्थ ने दुनिया की शक्ल बदल दी है. लेकिन यही लोहा उसे कमजोर बनाता है क्योंकि लोहे को जंग लग सकता है. और यह भारी भी बहुत होता है. तो विकल्प क्या है? लोहे का क्रांतिकारी विकल्प है कार्बन फाइबर. यह कंक्रीट को हल्का, ज्यादा मजबूत और बहुत ही बनाता है.
ये हैं ड्रेसडेन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मानफ्रेड कुरबाख. उनकी टीम ने स्टील-कंक्रीट का विकल्प खोज लिया है. इसे क्या कहा जा सकता है? शायद टेक्सटाइल कंक्रीट. प्रोफेसर कुरबाख कहते हैं, "सामान्य कंक्रीट और टेक्सटाइल कंक्रीट में फर्क जंग से मुक्ति का है. जंग के खतरे की जद में रहने वाले स्टील की जगह इसमें कार्बन का इस्तेमाल किया गया है, जिसे जंग नहीं लगता.
कैसे बनता है कार्बन फाइबर
कार्बन से फाइबर तैयार किए जाते हैं, उनका व्यास होता है 5 माइक्रोमीटर. यानी इंसान के बाल से 10 गुना पतला. इन फाइबर्स को विशाल करघों पर 230 से ज्यादा बार घुमाया जाता है. कार्बन फाइबर मूल रूप से तो इतने नर्म होते हैं कि उन्हें सीधे कंक्रीट में नहीं मिलाया जा सकता. उन्हें सख्त करने के लिए उन पर एक लेप किया जाता है और उन्हें ऐसे रूप में ढाला जाता है कि वे कंक्रीट में मिलकर सबसे अच्छा काम कर सकें.
कार्बन फाइबर के 50 हजार धागों को मिलाकर एक तार बनाई जाती है. इस तार को करघों पर घुमाया जाता है उन्हें जोड़ा जाता है. इस बुनाई के बाद फाइबर के जाल बनते जाते हैं.
मटीरियल की गुणवत्ता को और बढ़ाने के लिए फाइबर जाल पर एक और लेप किया जाता है जो इसकी स्थिरता को बढ़ाता है. फिर होती है कटाई और 15 मिनट की प्रोसेसिंग के बाद मटीरियल को प्रोडेक्शन साइट पर भेज दिया जाता है. कंक्रीट में सीमेंट, रेत और पानी होता है. ड्रेसडेन यूनिवर्सिटी में एक खास तरह का मिश्रण बनाया गया है जिसमें सीमेंट के बेहद बारीक कण और अन्य कई चीजें मिलाई गई हैं.
इस महीन कंक्रीट की चादर बना ली जाती है जिसकी मोटाई मिलिमीटरों में होती है. कंक्रीट की इस पतली चादर के बीच में कार्बन फाइबर का जाल डाला जाता है. टेक्सटाइल कंक्रीट की इस चादर को फिर 24 घंटे तक सुखाया जाता है.
यह सामान्य कंक्रीट से बहुत हल्का होता है. केवल कुछ मिलीमीटर मोटाई वाली महीन कंक्रीट की चादर में फौलाद से भी ज्यादा मजबूती होती है. टेक्सटाइल कंक्रीट ईको फ्रेंडली भी है और बिल्डर ही नहीं, डिजायनर्स भी अब इसे अभिव्यक्ति का माध्यम बना रहे हैं. देखिए इससे रोजमर्रा की कैसी चीजें बनाने की कोशिश हो रही है.
लैब टेस्ट के नतीजे
अब टेक्सटाइल कंक्रीट को दिखाना है कि यह कितना दबाव बर्दाश्त कर सकता है. लैब में वे जानकारियां जुटाई जाएंगी जो बाद में टेक्सटाइल कंक्रीट से निर्माण की योजना बना रहे आर्किटेक्ट्स और सर्वेयर्स के काम आएंगी. ये जानकारियां लैब के नियंत्रित माहौल में ही हासिल की जा सकती हैं.
वैज्ञानिक टेक्सटाइल कंक्रीट पर इतना दबाव डालना चाहते हैं कि वह ब्रेकिंग पॉइंट तक पहुंच जाए. दबाव को लगातार बढ़ाया जाता है. दरारें दिखनी शुरू हो जाती हैं. लेकिन भीतर का कार्बन मैटिरियल इन ताकतों के खिलाफ संघर्ष करता रहता है. परीक्षण दिखाते हैं कि टेक्सटाइल कंक्रीट पारंपरिक कंक्रीट से छह गुना ज्यादा बलवान है. पर, यह नया मैटिरियल जितना भी प्रभावशाली दिखे, अटूट तो बिल्कुल नहीं है.
कहां कहां इस्तेमाल
टेक्सटाइल कंक्रीट से रोजमर्रा की चीजें बनाने के प्रयोग भी हो रहे हैं. ड्रेसडेन में स्टूडेंट्स कैंपस में इसी कंक्रीट से बनाए गए फर्नीचर पर आराम फरमा रहे हैं. प्रोफेसर कुरबाख कहते हैं, "कंक्रीट भद्दा होता है, भारी होता है. यह लिविंग रूम्स में तो नहीं जंचेगा. लेकिन कार्बन के इस्तेमाल का मतलब है कि अब हम कंक्रीट से दुबली-पतली कुर्सी, स्टूल या फिर मेज बना सकते हैं."
टेक्सटाइल कंक्रीट, इंजीनियरों और डिजायनरों को अभिव्यक्ति के नए माध्यम दे रहा है. कौन जाने, भविष्य में इस बेहद महीन और मजबूत कंक्रीट से कलाकृतियां भी बनने लगें.
वीके/ओेएसजे