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कश्मीर में ग्राम परिषद के चुनाव से क्या हासिल हुआ

२५ अक्टूबर २०१९

कश्मीर के ग्राम परिषदों के लिए हुए चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवारों ने बड़ी सफलता हासिल की है. ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इन चुनावों का बहिष्कार किया था. कश्मीर के आम मतदाता इस चुनाव में वोटिंग में हिस्सा नहीं लेते हैं.

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Barrikaden und Bücher im unruhigen Kaschmir
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म होने के करीब ढाई महीने बाद हुए ग्राम परिषद के चुनाव में उन पार्टियों ने भी हिस्सा नहीं लिया जिनके नेता भारत सरकार के प्रति सहानुभूति का भाव रखते हैं. ज्यादातर पार्टियों के नेता 5 अगस्त को भारत सरकार कार्रवाई के बाद से हिरासत में हैं.

मुख्य चुनाव अधिकारी शैलेंद्र कुमार ने बताया कि सबसे ज्यादा स्वतंत्र उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है. कुल मिला कर 217 इलाकों में प्रखंड परिषद के अध्यक्ष निर्दलीय चुने गए हैं. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों का नंबर है जिन्होंने 81 इलाकों में जीत हासिल की है. इन चुनावों में आम लोग हिस्सा नहीं लेते हैं. ब्लॉक के इलाके में आने वाले ग्राम परिषदों के पंच और सरपंच अध्यक्ष का चुनाव करते हैं.

Indien Kaschmir-Konflikt l Stadt Srinagar
तस्वीर: picture-alliance/Xinhua/J. Dar

चुनाव आयोग की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि 280 इलाकों में चुनाव के जरिए बीडीसी के अध्यक्ष बने हैं जबकि 27 जगहों पर अध्यक्षों का निर्विरोध चयन हुआ है.

पिछले साल 307 ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल और ग्राम परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव हुआ था. इन्हीं सदस्यों ने अब अपने अपने इलाके के लिए अध्यक्ष का चुनाव किया है. हर ब्लॉक में कुछ गांव आते हैं.

भारतीय अधिकारियों को उम्मीद है कि स्थानीय परिषद के नेताओं का चुनाव लोगों में भारतीय शासन के प्रति भरोसा पैदा करेगा और इस वक्त जो राजनीतिक शून्य पैदा हुआ है उसे दूर किया जा सकेगा. इसके साथ ही कोशिश यह भी है कि विकास के कामों में स्थानीय लोगों की सहभागिता बढ़ेगी और भ्रष्ट नेताओं को इस प्रक्रिया से दूर रखा जाएगा.

सुरक्षा की चिंता को देखते हुए परिषद के हजारों सदस्य और ज्यादातर उम्मीदवार कई महीनों से श्रीनगर के होटल में रह रहे थे. आतंकवादी पहले इन उम्मीदवारों को निशाना बनाने की कोशिश कर चुके हैं. आतंकवादी और अलगाववादी दोनों ने कश्मीर में चुनाव को अवैध करार दिया है क्योंकि यह सेना की भारी मौजूदगी के बीच हुआ.

Indien Kashmir | We want Freedom Graffity in Srinagar
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Andrabi

चुनाव केंद्रों पर पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी मौजूदगी थी. कुछ जगहों पर सेना ने भी सड़कों और पोलिंग स्टेशनों पर गश्त लगाई. पुलिस का कहना है कि किसी तरह की हिंसा की कोई खबर नहीं है.

राजनीतिविज्ञानी नूर अहमद बाबा मानते हैं कि यह कवायद कम से कम सैद्धांतिक तौर पर ही सही "लोकतंत्र की एक अहम परत है" हालांकि वह "इस बेहद मुश्किल और असामान्य वक्त में" इसे कराने पर सवाल भी उठाते हैं. उन्होंने कहा, "जब ज्यादातर लोग अपनी बुनियादी आजादी और रोजगार को लेकर चिंता में हैं, पाबंदियां झेल रहे है तब आप चुनाव करा रहे हैं. यह बस औपचारिकता निभाने भर जैसा है."

पिछले साल जब कश्मीर में ग्राम परिषद के सदस्यों को चुनने के लिए चुनाव हुए तब भी अलगाववादियों और आतंकवादियों ने उसका विरोध किया था. कश्मीर घाटी की कुल 21,208 ग्राम परिषद की सीटों में 60 फीसदी खाली हैं क्योंकि उनके लिए कोई चुनाव में खड़ा नहीं हुआ. इसके अलावा 30 फीसदी सीटों पर लोगों का निर्विरोध चयन हुआ.

सरकार अगले साल जून में कश्मीर में चुनाव कराने की तैयारी में है हालांकि मौजूदा परिस्थितियों को देख कर कुछ नहीं कहा जा सकता कि लोगों की भागीदारी उनमें कितनी होगी. सरकार की तरफ से कई पाबंदियां हटाई गई हैं और स्थिति को सामान्य करने की कोशिश जारी है लेकिन लोग अब भी इस पूरी प्रक्रिया से दूर हैं. दुकानें सुबह और शाम को थोड़ी देर के लिए खुलती हैं. सड़कों पर टैक्सियां अब तक वापस नहीं लौटी हैं. कुछ इलाकों में स्कूल खुले हैं लेकिन वहां भी ज्यादातर छात्र गैरहाजिर हैं.

कॉलेज टीचर मोहम्मद अब्दुल्लाह कहते हैं, "यहां के लिए हर चुनाव कश्मीरी लोगों की आंख पर पट्टी बांधने और यह दिखाने की कोशिश होता है कि यहां सब ठीक है. यह दुनिया को ये बताने के लिए किया जाता है कि भारत एक लोकतंत्र है और कश्मीर इस चमचमाते लोकतंत्र का हिस्सा है."

एनआर/एमजे(एपी)

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