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कहां गायब हो गए गुरुजी

५ सितम्बर २०१२

पांच सितंबर को भारत में जोर शोर से शिक्षक दिवस मनाया जाता है. लोग फेसबुक पर भी अपने अपने गुरु को याद कर रहे हैं. लेकिन सवाल है कि क्या भारत के शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों का पालन ठीक से कर रहे हैं.

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तस्वीर: AP

व्यक्तिगत बात नहीं की जा रही. अपवाद होते ही हैं लेकिन ज्यादातर शिक्षक ऐसे हैं जो स्कूल से गायब रहते हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत का ही उदाहण लें. देश के इस सबसे बड़े राज्य में स्कूल न आने की बीमारी जितनी विद्यार्थियों को है उतनी ही शिक्षकों को भी है.

ऐसे ही एक स्कूल की प्रिंसिपल गुस्से में बताती हैं कि उनके स्कूल के सात शिक्षकों में से दो तो हमेशा ही गायब रहते है. नाम न छापने की शर्त पर उनका कहना है, "सरकार बच्चों की पढ़ाई के लिए किताबें देती है. स्कूल का ड्रेस और दोपहर का भोजन भी देती है. लेकिन अगर शिक्षक ही अपने काम पर ध्यान नहीं दे रहे तो फिर सरकार का पैसा तो व्यर्थ ही जा रहा है न."

दिल्ली से दो घंटे की दूरी पर मौजूद एक दूसरे स्कूल का हाल ये है कि वहां पर शिक्षकों की कमी है और विद्यार्थियों की संख्या काफी ज्यादा. हाल ही में इस इलाके में एक शिक्षक घोटाले का पर्दाफाश हुआ है. इसके बाद 77 शिक्षकों को एक साथ बर्खास्त कर दिया गया. ये सभी फर्जी स्कूल प्रमाण पत्र बनवाने के दोषी साबित हुए. वर्तमान खस्ता हाल शिक्षा व्यस्था भविष्य के लिए समस्याएं बढ़ा रही है.

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन प्रथम से जुड़ी हुई रुक्मिणी बनर्जी का कहना है, "हमारे देश में युवाओं की संख्या काफी है और इनमें अच्छी संभावनाएं भी हैं. अगर आप आज से 10 साल बाद बच्चों को 21वीं शताब्दी की जरूरतों के हिसाब से तैयार करना चाहते हैं तो आपको पहली और दूसरी कक्षाओं से शुरुआत करनी पड़ेगी."

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तस्वीर: AP

कैलीफोर्निया में लंबे समय तक शोध का काम करने वाले कार्तिक मुरलीधरन का कहना है कि भारत में प्राथमिक शिक्षा का स्तर बेहद खराब है. उन्होंने विश्व बैंक के साथ मिलकर भारत में शिक्षकों के स्कूल से गायब होने के बारे में व्यापक अध्ययन किया है. 2003 में किए गए एक सर्वे में सामने आया कि प्राथामिक स्कूल के 25 प्रतिशत शिक्षक किसी न किसी समय गायब ही रहते हैं. 2010 में जब दोबारा सर्वे किया गया तो साबित हुआ कि स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है. दो साल पहले ये आंकड़ा 23.7 तक पहुंचा था. उत्तर प्रदेश में तो ये आंकड़ा अभी तक 30 प्रतिशत है.

स्कूल न आने के लिए कुछ बातों को समझा जा सकता है जैसे बीमारी, बच्चों की देखभाल आदि लेकिन सर्वे बताता है कि 60 प्रतिशत कारण ऐसे होते हैं जिनके बारे में संदेह होता है. और खराब बात यह है कि जिन शिक्षकों की बड़े लोगों, नेताओं से पहचान है वो कुछ और नौकरी भी करते हैं और स्कूल की तनख्वाह भी लेते रहते हैं.

शिक्षकों के गायब होने की कीमत सरकार को चुकानी पड़ती है. एक सर्वे के मुताबिक ये आंकड़ा 85 अरब रुपये तक बैठता है. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी उपलब्धियां गिनाई. 51 हजार नए स्कूल खोले गए करीब सात लाख शिक्षकों को पिछले दो साल में नौकरी दी गई. पहली बार छह से चौदह साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा गारंटी अधिनियम योजना लागू की गई. लेकिन समस्या ये है कि आधारभूत संरचना और दाखिले के स्तर पर सुधार नहीं किया जा सका.

युवा आबादी भारत की सबसे बड़ी ताकत है. भारत में बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. अगले कुछ सालों में ये आबादी काम धंधे में लग जाएगी लेकिन खराब शिक्षा प्रणाली और ज्यादा उम्मीदों की वजह से ये भारत के लिए किसी खतरे से कम नहीं. इस आबादी का ज्यादातर हिस्सा काऊ-बेल्ट नाम से मशहूर देश के उत्तरी राज्यों से आता है. ये वही राज्य हैं जहां भ्रष्टाचार, कुपोषण और अशिक्षा सबसे ज्यादा है. प्रथम नाम के संगठन ने भारत के ग्रामीण स्कूलों के बीच एक सर्वे कराया है जिसमें साफ हुआ है कि पांच साल तक स्कूल में पढ़ने के बाद भी बच्चे अपनी भाषा की किताब तक नहीं पढ़ पाते. उत्तर प्रदेश में तो हालत और भी खराब है. अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के मानकों पर तो भारत की स्थिति और भी बुरी है. इसका नतीजा ये हुआ है कि निजी स्कूलों की बाढ़ आ गई है. भारत के शहरों में करीब 50 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो निजी स्कूलों में पढ़ने जाते हैं जबकि ग्रामीण इलाके में ये आंकड़ा 25 प्रतिशत है. इसका बुरा असर उन परिवारों पर पड़ता है जिनकी आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है.

वीडी/एएम (एएफपी)