कहां चली गईं क्यूबा की मछलियां
२८ अगस्त २०१९क्यूबा के मछली भंडार में हाल के दशक में कई वजह से भारी गिरावट आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके पीछे मछलियों के बेतहाशा शिकार से लेकर जलवायु से जुड़े कारण जिम्मेदार हैं. आखिरकार सरकार को यह बात समझ में आई है और अब मछली के शिकार को नए नियमों में बांधा जा रहा है. 63 साल के कार्लोस दुरान को मछली का शिकार करते चार दशक से ज्यादा हो चुका है. वो बताते हैं, "हम पहले जितनी मछलियां पकड़ते थे उसके आधे से भी कम पकड़ पा रहे हैं. कुछ लोग तो 10 बार जाते हैं और बिना मछली के ही वापस लौट आते हैं."
क्यूबा ने आकलन किया है कि जिन 54 किस्म की मछलियों का व्यापार यहां होता है उनमें बीते पांच साल में ही 44 फीसदी तक की गिरावट आई है. इनमें ग्रुपर और स्नैपर मछलियां भी शामिल हैं. इस दौर में मछलियों का शिकार भी 70 फीसदी तक कम हो गया है. इस गिरावट से मछली उद्योग को भारी नुकसान हुआ है. यह उद्योग पहले से ही समस्याओं में फंसा हुआ है. सोवियत संघ की सरपरस्ती खत्म होने के बाद बहुत सारे बेड़े जो दूर दराज के इलाके तक जा कर मछली पकड़ते थे उन्हें खत्म कर दिया गया क्योंकि उनका खर्च उठा पाना संभव नहीं हो रहा था.
खस्ताहाल मछली उद्योग
मछली पालन का विस्तार उतना नहीं हो सका है कि वह नगदी की कमी से जूझते देश के घटे आयात की कमी पूरी कर सके. सीफूड के रूप में क्यूबा जो भी पैदा करता है जिसमें केकड़े और झींगे शामिल है उनका निर्यात कर दिया जाता है ताकि विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सके. साम्यवादी देश में एक दशक पहले निजी मछुआरों को मछली बेचने की अनुमति तो मिल गई लेकिन वो सिर्फ सरकार को ही मछली बेच सकते हैं. लालफीताशाही अब भी उनके राह की बड़ी बाधा है जिसके कारण उत्पादन बढ़ नहीं रहा है. क्यूबा के लोग सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1980 के दशक में जितना सीफूड खाते थे अब उसका एक चौथाई ही खा रहे हैं. अगर वैश्विक आंकड़ों से इसकी तुलना की जाए तो दुनिया के बाकी हिस्सों के मुकाबले यह बहुत कम है. ऐसे में लोग मजाक में कह रहे हैं कि वो द्वीप पर रहते हैं लेकिन सीफूड नहीं खा पाते.
नई मछलीपालन नीति का लक्ष्य है घरेलू भंडार को वापस हासिल करना और मछली के अवैध शिकार पर रोक लगाना. इसके लिए विज्ञान आधारित मछलीपालन का प्रबंधन लागू किया जा रहा है. इसमें इलाके को जोन में बांटा जाएगा और मछली पकड़ने का कोटा तय किया जाएगा. यह सब नियम दुनिया भर में लागू किए जा रहे हैं हालांकि कैरेबियाई देशों में क्यूबा इस मामले में आगे है. अमेरिकी गैर सरकारी संस्था इनवायरनमेंट डिफेंस फंड इस मामले में क्यूबा को सलाह दे रही है. संस्था के वरिष्ठ निदेशक डैनियल व्हीटल का कहना है कि ऐसे उपाय करने की जरुरत है जिससे कि मछली उद्योग जलवायु परिवर्तन जैसी नई चुनौतियों से निबट सके और साथ ही जैव विविधता को बचा सके. हालांकि कई मछुआरों को लग रहा है कि नए नियमों के बाद पहले से ही सख्ती बरतने वाले अधिकारियों को उन पर नियंत्रण का और एक जरिया मिल जाएगा जिससे उनकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.
सुधारों की पहल
क्यूबा में मछलीपालन में व्यापक सुधार करने वाले नए नियमों में उन सरकारी नावों को धीरे धीरे हटाना भी शामिल है जो पर्यावरण के लिहाज से अच्छे नहीं हैं या फिर आधुनिक मानकों पर खरे नहीं उतरते. इसकी वजह से सरकारी मछुआरों की तादाद और घट सकती है. इसके साथ ही नियमों में मछुआरों को कानूनी तौर पर मान्यता दी गई है. इस वजह से इन मछुआरों को सरकारी पेंशन भी मिल सकेगी. हालांकि मछुआरे फिर भी कह रहे हैं कि उनकी बहुत सी जरूरी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया है. यहां नावों के निर्माण और आयात की सीमा है. इसका नतीजा है कि निजी तौर पर कारोबार करने वाले मछुआरे जिन बोट का इस्तेमाल कर रहे हैं वो फिदेल कास्त्रो की 1959 में हुई क्रांति से भी पहले के हैं. इसी तरह यहां की विंटेज अमेरिकी कारें कई दशक पुरानी सोवियत गाड़ियों के मोटरों से चलाई जा रही हैं.
यहां तक कि नावों में भी इंजन के तौर पर गाड़ियों के मोटर लगे हैं. 47 साल के गोरिस लोपेज ने बताया, "हम जमीन पर चलने वाली गाड़ियों के मोटर का इस्तेमाल करते हैं. एंबुलेंस, ट्रेक्टर या यहां तक कि फोर्कलिफ्ट में इन्हीं मोटरों का इस्तेमाल होता है." हर मछुआरा जो खुद को सेल्फ एम्लाॉयड घोषित करता है उसे कानूनी रूप से अपनी सारी मछलियां सरकारी कंपनियों को तयशुदा कीमत पर बेचनी होती है. कई मछुआरों का कहना है कि वो अपना जीवन चलाने के लिए कुछ मछलियों को काले बाजार में बेच देते हैं. अकसर उनके खरीदार निजी रेस्तरां होते हैं जो यहां हाल के वर्षों में पर्यटन बढ़ने के बाद से तेजी से खुल गए हैं.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)
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