कितने पूरे हुए मोदी के वादे
२५ अगस्त २०१४आलोचकों के अलावा मोदी के समर्थक भी इस बात को मानते हैं कि जबरदस्त बहुमत हासिल करने के बाद भी वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाए हैं. नई सरकार की विदेश नीति में भी कोई बदलाव नहीं दिख रहा है. शपथ ग्रहण के वक्त मोदी ने पाकिस्तान के प्रधनमंत्री नवाज शरीफ को बुला कर एक उम्मीद जगाई थी लेकिन उसके बाद से पाकिस्तान के साथ बातचीत रुकी हुई है.
उन्होंने खुद राजनीतिक सिस्टम को साफ करने की बात कही थी और उन्हीं की पार्टी बीजेपी ने दागदार छवि वाले अमित शाह को अध्यक्ष बना दिया. नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रताप भानु मेहता का कहना है, "जिस सरकार ने नए बदलावों का वादा किया था, वह पुराने तरीके ही अपना रही है."
इस हफ्ते भारत ने पाकिस्तान के साथ सचिव स्तर की बातचीत को रद्द कर दिया और इसके लिए अलगाववादी नेताओं का पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मुलाकात का बहाना दिया गया. मुंबई के थिंक टैंक गेटवे हाउस की नीलम देव कहती हैं, "पाकिस्तान ने अलगाववादियों के साथ पहले भी बातचीत की है. यह भारत के लिए जरूरी नहीं था कि इस मुद्दे को वह बतंगड़ बना दे."
हर तरफ चर्चा
भारत के समाचारपत्रों के संपादकीय और चौक चौराहों पर भी मोदी के प्रदर्शन की चर्चा होने लगी है. "अच्छे दिन आने वाले हैं" का नारा देने वाली सरकार इसका बचाव नहीं कर पा रही है.
सत्तर साल की सुनहरी देवी का कहना है कि वह इस उम्र में नए तरीके से खाना बनाना सीख रही हैं. यह तरीका बिना टमाटर और प्याज की सब्जी का है, "इन दिनों टमाटर खाना किसके बस का है. अगर मैं टमाटर खरीद लूं तो कुछ और खरीद ही नहीं पाऊंगी." वह अपने थैले में सिर्फ आलू और कद्दू भरती हैं और कहती हैं कि नई सरकार ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया, "ये सभी नेता चुनाव से पहले बड़े वादे करकते हैं. अब देखिए क्या हाल हो गया है."
थोड़ा समय और
लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो मोदी सरकार को कुछ और वक्त देना चाहते हैं. राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार अशोक मलिक का कहना है, "आप पहले ही दिन से हमले नहीं कर सकते हैं. लेकिन चार या पांच महीने में मैं कुछ बदलाव की उम्मीद कर सकता हूं."
बीजेपी का कहना है कि उनकी सरकार सिर्फ तीन महीने पुरानी है और भारत की जटिल समस्याओं को निपटाने में तो वक्त लगता है. बीजेपी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं, "पिछली सरकारों ने जो समस्याएं छोड़ी थीं, हमें उनका सामना करना पड़ा. वे बड़ी समस्याएं हैं, जैसे महंगाई और हम उनका सख्ती से सामना कर रहे हैं. हर किसी को ध्यान रखना चाहिए कि यह दो, चार या छह महीने का फैसला नहीं है. जनता ने हमें पांच साल के लिए चुना है. हमने तो अपना काम अभी शुरू ही किया है."
लेकिन वोटरों को इन बातों से संतुष्टि नहीं है. मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के अलावा गुजरात की मिसाल देते हुए कहा था कि पूरे देश में विकास होगा. लेकिन जब 10 जुलाई को उनकी सरकार का पहला बजट पेश किया गया, तो वह कमोबेश पिछली सरकार के बजट जैसा ही लगा. मोदी सरकार ने भी तेल, चीनी और अनाज पर सब्सिडी जारी रखी. उन्होंने भी विदेशी निवेश पर नियंत्रण रखा.
पिछले हफ्ते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर बहुत सी बातें कहीं लेकिन ये सब सिर्फ भाषण का हिस्सा लगता है.
करप्शन का सवाल
जहां तक भ्रष्टाचार से निपटने और साफ सुथरी राजनीति की बात है, अमित शाह को बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के बाद से ही इस पर सवाल उठने लगे हैं. शाह पर आरोप है कि उन्होंने गैरकानूनी तौर से गुजरात के एक शख्स और उसकी पत्नी की हत्या के लिए पुलिस को आदेश दिया. उस वक्त वह गुजरात के मंत्री थे.
शाह और मोदी का लंबा साथ है. दोनों 1980 के दशक से साथ काम कर रहे हैं और दोनों ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य रह चुके हैं. भारत की वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का कहना है, "अमित शाह को ऊंचा पद देना दिखाता है कि किसी की निजी वफादारी सिद्धांतों से ऊपर है."
प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से मोदी ने किसी भी विवाद पर कोई बयान नहीं दिया है. चौधरी का कहना है, "पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ हुआ लेकिन वह एक खोल में बंद हैं. अगर वह लोगों से बातचीत नहीं करेंगे, तो लोगों की उनके प्रति सहानुभूति खत्म हो जाएगी."
एजेए/ओएसजे (एपी)