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किसान आंदोलन को लंबा खींचने की तैयारी

४ फ़रवरी २०२१

कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन जारी है. एक ओर आंदोलन को लंबे समय तक चलाने की योजना बनाई जा रही है तो दूसरी ओर धरना पर बैठे किसानों के लिए लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं भी हैं.

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किसानों के प्रदर्शन में राकेश टिकैततस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS

गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंदोलन और तेज करने के लिए किसानों को एक नया फार्मूला दिया है. उनका कहना है कि हर गांव से एक ट्रैक्टर पर 15 आदमी 10 दिन का समय लेकर आएं तो इस तरह हर किसान इस आंदोलन में शामिल हो सकेगा और गांव लौटकर खेती भी कर सकेगा. टिकैत ने कहा, "किसान संगठनों के नेता सरकार से बात करने के लिए हमेशा तैयार हैं, लेकिन सरकार बात ही नहीं कर रही. दरअसल, सरकार इस आंदोलन को लंबा चलने देना चाहती है."

आंदोलन को लंबे वक्त तक चलाने के लिए किसान नेताओं ने एक फॉर्मूला बनाया है ताकि हर किसान आंदोलन में भागीदारी कर सके और आंदोलन और ज्यादा लंबे वक्त तक चल सके. टिकैत ने कहा कि इस फॉर्मूले के मुताबिक यदि गांव के लोग आंदोलन के लिए कमर कस लें, तो हर गांव के 15 आदमी 10 दिन तक आंदोलन स्थल पर रहेंगे और उसके बाद 15 लोगों का दूसरा जत्था आ जाएगा. उनसे पहले जो धरना स्थल पर रहे, वे गांव जाकर अपने खेत में काम कर सकेंगे. सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है, जिसमें कोई नतीजा नहीं निकल सका है.

Indien Delhi Bücherei während Protest
धरनास्थल पर लाइब्रेरीतस्वीर: IANS

चिकित्सा शिविर और लाइब्रेरी

कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को सिंघु बॉर्डर पर जहां कई गैर-सरकारी संगठनों  ने नि:शुल्क चिकित्सा शिविर लगाए हैं और रोजमर्रा की जरूरत की कई चीजें बांट रहे हैं. वहीं यहां पर 4 छोटे पुस्तकालय भी बनाए गए हैं, जिनमें कई भाषाओं में किताबें उपलब्ध हैं. ये लाइब्रेरी टेंट के अंदर बनाई गईं हैं. इनमें किसानों के विरोध, कृषि, देशभक्ति से संबंधित किताबें हैं. ये किताबें हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी में हैं. लाइब्रेरी की किताबों में 'द फॉल ऑफ किंगडम ऑफ पंजाब', शहीद भगत सिंह और सिख गुरुओं की आत्मकथाएं शामिल हैं. इन लाइब्रेरी में 100 से 150 किताबें डिस्प्ले में हैं.

विरोध स्थल पर एक लाइब्रेरी बनाने वाले लुधियाना के निवासी बूटा सिंह ने आईएएनएस को बताया कि हर दिन किताबें पढ़ने के लिए 15 से 20 लोग उनकी लाइब्रेरी में आते हैं. बूटा ने कहा, "मैंने दिसंबर में लाइब्रेरी बनाई थी. पहले पाठकों को किताबें अपने साथ ले जाने की अनुमति थी, लेकिन उनमें से कई ने किताबें वापस नहीं कीं. लिहाजा, अब किताबें ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है और लोगों को टेंट में बैठकर ही किताबें पढ़नी होती हैं."

व्यक्तियों और किसान यूनियनों के अलावा कई अन्य संगठनों ने भी लाइब्रेरी बनाई है, जैसे-ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन  ने भी यहां लाइब्रेरी बनाई है. इसके एक सदस्य ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "मैं 2 महीने से वॉलंटियर के तौर पर यहां हूं. लाइब्रेरी में सेवाएं देने के अलावा मैं संगठन के दिशा-निर्देश के मुताबिक, अन्य सामाजिक सेवाएं भी करता हूं."

एमजे/एके (आईएएनएस)

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