केजरीवाल के 'मुफ्त' मंत्र को आजमातीं दीदी
१२ फ़रवरी २०२०अरविंद केजरीवाल को ममता बनर्जी का करीबी माना जाता है. बंगाल में अगले साल मई में विधानसभा चुनाव होने हैं और सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी की ओर से कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है. ममता ने अपनी ताजा रणनीति के तहत अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पेश राज्य के आखिरी पूर्ण बजट में आम लोगों और खासकर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया है. ममता के इस बजट को राजनीतिक हलकों में पूरी तरह चुनावी बजट माना जा रहा है. इसके तहत तीन महीने में 75 यूनिट बिजली खर्च करने वालों को इसके लिए एक पाई भी खर्च नहीं करनी होगी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) की जीत में मुफ्त बिजली, पानी देने के केजरीवाल सरकार के फार्मूले की अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए मुफ्त बिजली, पानी,सार्वजनिक परिवहनों में महिलाओं को मुफ्त सवारी, शिक्षा, चिकित्सा के दिल्ली मॉडल को अब दूसरे राज्य भी अपना रहे हैं. दिल्ली की तर्ज पर पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में 75 यूनिट बिजली फ्री देने की घोषणा कर दी है.
महाराष्ट्र और झारखंड सरकारों ने इस योजना को लागू करने का रोडमैप तैयार करने के लिए अधिकारियों को कहा है. माना जा रहा है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने इस मुफ्त फार्मूले के बल पर ही विधानसभा चुनावों में भारी कामयाबी हासिल की है. इस तथ्य के बावजूद कि बीजेपी नेतृत्व ने अबकी इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक ने ताबड़तोड़ रैलियां की थीं. चुनावी नतीजों से साबित हो गया कि दिल्ली के वोटरों ने बीजेपी नेताओं के हवाई दावों की बजाय केजरीवाल सरकार के कामकाज को ही तरजीह दी.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "हमारी सरकार ने हमेशा जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए बजट तैयार किया है. सरकार ने अपने बजट में राज्य के पिछड़े व गरीब तबके के लोगों पर विशेष ध्यान दिया गया है.” बजट में अनुसूचित जाति के वरिष्ठ नागरिकों के लिए 'बंधु योजना' व अनुसूचित जनजाति श्रेणी के वरिष्ठ नागरिकों के लिए 'जन जोहार योजना' शुरू करने का प्रस्ताव पेश किया गया है. इसके तहत इस समुदाय के 21 लाख बुजुर्गों को हर महीने एक हजार रुपए की पेंशन दी जाएगी. इसके लिए तीन हजार करोड़ का प्रावधान रखा गया है. पिछड़े तबके के डेढ़ करोड़ परिवारों की सामाजिक सुरक्षा योजना पर पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे.
यह महज संयोग नहीं है कि सरकार की ओर से घोषित योजनाओं में से ज्यादातर उन इलाकों में लागू की जाएंगी जहां बीते लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. दरअसल, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की ज्यादातर आबादी उत्तर बंगाल के छह जिलों और जंगलमहल के नाम से कुख्यात रहे झारखंड से सटे इलाकों में रहती है. इन इलाकों की 15 लोकसभा सीटों में से तृणमूल को महज दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था जबकि भाजपा को 12 सीटें मिली थीं.
सरकार ने इसके अलावा एक हजार करोड़ के कोष के साथ दो अन्य योजनाएं शुरू करने का भी एलान किया है. इनमें बेरोजगार युवकों को लिए 'कर्मसाथी प्रकल्प' और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए 'बिना मूल्य सामाजिक सुरक्षा योजना' शामिल है. अब इन मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा योजना का पूरा खर्च सरकार ही उठाएगी. पहले सरकार इस मद में हर महीने 30 रुपए देती थी और बाकी 25 रुपए मजदूरों को देने पड़ते थे. वित्त मंत्री अमित मित्रा का कहना था कि कर्मसाथी प्रकल्प के तहत हर साल एक लाख बेरोजगार युवकों को तीन वर्ष के लिए आसान शर्तों पर कर्ज दिया जाएगा. सरकार ने उन लोगों को मुफ्त बिजली देने का एलान किया है जिनके घरों में तिमाही 75 यूनिट की खपत होती है. मित्रा कहते हैं, "इससे 35 लाख परिवारों को फायदा होगा. इस मद में दो सौ करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है.”
उधर, विपक्ष ने ममता बनर्जी सरकार के इस बजट को चुनावी बजट करार देते हुए इसकी खिंचाई की है. बीजेपी ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस के पैरों तले की जमीन तेजी से खिसक रही है इसीलिए वोटरों को लुभाने के लिए उसने सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया है. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा कहते हैं, "सरकार ने बीते आठ-नौ वर्षों के दौरान पिछड़े तबके के लोगों के हित में कुछ खास नहीं किया है. अब सत्ता खतरे में देख कर वह इस तबके का समर्थन पाने के लिए हड़बड़ी में तमाम योजनाएं लागू कर रही है. लेकिन अब महज कागजी योजनाओं से लोगों को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता.” कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सोमेन मित्रा कहते हैं, "यह एक चुनावी बजट है और इससे आम लोगों को कोई फायदा नहीं होगा.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार ने बजट में जिन योजनाओं का एलान किया है उनको जमीन पर लागू करना ही सबसे बड़ी चुनौती है. इसकी वजह यह है कि पहले भी तमाम सरकारी योजनाओं में तृणमूल कांग्रेस नेताओं के कमीशन लेने के आरोप लगते रहे हैं एक पर्यवेक्षक डॉक्टर समरेश घोष कहते हैं, "सरकार को इन कल्याण योजनाओं को लागू करने में सावधानी बरतनी होगी. जमीनी स्तर पर लागू होने की स्थिति में तृणमूल कांग्रेस को इनका सियासी फायदा मिलना तय है. दिल्ली के मामले में यह बात साबित हो चुकी है.”
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