केले की मदद से कैंसर की जांच
१२ फ़रवरी २०१६जब केले कुछ दिन पुराने हो जाते हैं तो उनके छिलके पर काले रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं. ऐसा केले में मौजूद टायरोसिनेस एंजाइम के कारण होता है. यही एंजाइम इंसान की त्वचा में भी मौजूद होता है. स्किन कैंसर के गंभीर रूप, मेलानोमा से गुजर रहे मरीजों की त्वचा में इसकी मात्रा और भी ज्यादा होती है. रिसर्चरों की टीम ने इस जानकारी का इस्तेमाल एक खास तरह का स्कैनर बनाने में किया.
उन्होंने इस स्कैनर का इस्तेमाल केले के छिलके से शुरू किया. इसके बाद उन्होंने इससे मानव त्वचा की जांच भी की. स्विट्जरलैंड की फिजिकल एंड ऐनेलिटिकल इलेक्ट्रोकेमिस्ट्री की लैब में रिसर्चरों ने स्थापित किया कि एंजाइम मेलानोमा के विकास का अहम सूचक है.
त्वचा के कैंसर की प्रथम स्टेज में यह एंजाइम बहुत ज्यादा जाहिर नहीं होता. द्वितीय स्टेज में त्वचा में फैलता है. और तीसरी स्टेज में इसका समान वितरण होता है. इस अवस्था तक कैंसर शरीर के और हिस्सों तक फैलना शुरू हो जाता है. कैंसर का जितना जल्दी पता चल जाए इलाज और जीवन की संभावना उतनी ज्यादा रहती है.
अमेरिकी कैंसर सोसाइटी के मुताबिक अगर मेलानोमा का प्रथम स्टेज में पता चल जाए तो 95 फीसदी मरीजों की 10 साल जीवित रहने की संभावना रहती है. केले के छिलके पर पड़ने वाले धब्बे लगभग उतने ही बड़े होते हैं जितने मेलानोमा के धब्बे इंसानी त्वचा पर होते हैं. टीम ने स्कैनर की जांच पहले केले के छिलके पर ही की.
टीम प्रमुख हूबर्ट गिरॉल्ट के मुताबिक, "फल की मदद से हम इंसानी त्वचा पर इस्तेमाल करने से पहले जांच के तरीके के विकसित करने और टेस्ट करने में कामयाब रहे." टीम का मानना है कि हो सकता है कि आगे चल कर इस तकनीक के विकास के साथ बायोप्सी की जांच और कीमोथेरेपी जैसे तकलीफदेह तरीकों से पीछा छुड़ाया जा सके. गिरॉवल्ट को लगता है एक दिन स्कैनर कैंसर को नष्ट करने में भी मदद कर सकेगा. उनकी यह रिसर्च जर्मन साइंस पत्रिका अनगेवांटे शेमी में प्रकाशित हुई.
एसएफ/आईबी (एएफपी)