कैसे बच सकते हैं भूकंप के विनाश से
१६ जून २०२०दिल्ली में पिछले 45 दिनों में करीब एक दर्जन भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. ये सभी भूकंप कम ताकत के थे और इनमें सबसे शक्तिशाली भूकंप रिक्टर स्केल पर 3.4 मापा गया. मंगलवार को सुबह ताजिकिस्तान में आए भूकंप के हल्के झटके भी दिल्ली में महसूस किए गए. इस बीच पिछले दो दिनों में गुजरात के राजकोट में आए दो मध्यम ताकत के झटकों ने चिंता और बढ़ा दी.
अब सवाल यह उठ रहा है कि भूकंप अचानक लगातार क्यों आ रहे हैं. क्या दिल्ली और अब गुजरात में आए झटके किसी बड़े भूकंप का संकेत हैं. इस बारे में डीडब्ल्यू ने भूकंप विज्ञान पर काम कर रहे वैज्ञानिकों और जानकारों से बात की.
कैसे आते हैं भूकंप?
धरती का ऊपरी भाग कई ठोस परतों से बना है जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट कहा जाता है. ये प्लेट लगातार विस्थापन की अवस्था में रहती हैं. इस विस्थापन यानी मूवमेंट के दौरान या तो वे एक दूसरे से दूर जाती हैं, या एक दूसरे के पार्श्व में खिसकती हैं या फिर एक दूसरे से टकराती हैं. हिमालयी भू-विज्ञानी डॉ एस पी सती कहते हैं, "वैसे तो ये सभी प्रक्रियाएं भूकंप का कारण बनती हैं लेकिन सबसे विनाशकारी भूकंप तब आते हैं जब ये टेक्टोनिक प्लेटें आपस में टकराती हैं. हिमालयी क्षेत्र में आने वाले सारे भूकंप इसका उदाहरण हैं. इस प्रक्रिया में इंडियन प्लेट एशियन प्लेट से लगातार टकराती रहती है जिससे भूकंप का झटका महसूस होता है. 2015 में आया नेपाल का भूकंप हो या 1990 के दशक में उत्तराखंड के गढ़वाल में आए शक्तिशाली भूकंप, ये सब इसी का उदाहरण हैं."
दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय इलाकों में एशिया में भारत, अफगानिस्तान और टर्की, उत्तर अफ्रीकी देश और उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के देश शामिल हैं. हिमालय क्षेत्र और दिल्ली की स्थिति में भूगर्भीय अंतर यह है कि जहां हिमालय की उत्पत्ति ही इन दो प्लेट्स के टकराने से हुई है वहीं दिल्ली का इलाका एक ही प्लेट (इंडियन प्लेट) पर बसा है. इसलिए उसे अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है.
क्या लगातार आ रहे भूकंप के झटके असामान्य हैं?
वैज्ञानिक कहते हैं कि भूकंप विज्ञान को इतनी सरल नजर से नहीं देखा जा सकता. सिर्फ एक या दो साल में भूकंप के झटकों के आधार पर किसी क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि को कतई असामान्य नहीं कहा जा सकता.
"अब तक की स्थिति से यह असामान्य नहीं लगता. आप किसी क्षेत्र में भूकंप को एक या दो साल में आए झटकों के आधार पर नहीं समझ सकते. इसके लिए आपको 20 या 30 साल तक अध्ययन करना पड़ता है. अगर दिल्ली में अभी महसूस किए जा रहे झटकों को देखें तो इसे असामान्य नहीं कहा जाएगा. हर साल भूकंप (के झटकों) की संख्या में उतार-चढ़ाव होता रहता है. अधिक संख्या में भूकंप आना असामान्य स्थिति नहीं कही जा सकती.” ये कहना है राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक विनीत गहलोत का जो अभी हैदराबाद स्थित नेशनल जियोफिजकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (एनजीआरआई) में चीफ साइंटिस्ट हैं.
क्या दिल्ली और गुजरात के भूकंप में कोई रिश्ता है?
दिल्ली में आए झटकों के बाद गुजरात में 24 घंटे के भीतर आए दो भूकंपों ने लोगों को और डरा दिया है. लोगों को लगता है कि यह देश में कहीं न कहीं भूकंप आने की चेतावनी है. लेकिन जानकार कहते हैं इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और गुजरात के झटकों को दिल्ली में महसूस किए जा रहे भूकंपों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. गुजरात का इलाका बिल्कुल अलग भू-संरचना का क्षेत्र है जो अलग फॉल्ट लाइन पर है और जिनका अलग रॉक फॉर्मेशन है और ज्यामितीय स्वभाव बिल्कुल अलग-अलग है.
"मिसाल के तौर पर हिमालयन आर्क कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व तक फैला है लेकिन यह पूरे 2,500 किलोमीटर की लंबाई में एक ही फॉल्ट लाइन है. इसलिए उसमें अगर आप कहें कि कश्मीर की हलचल क्या अरुणाचल से जुड़ी है तो मैं कहूंगा कि शायद हो सकता है लेकिन यहां वाले केस में तो सभी चीजें (फॉल्ट लाइन, रॉक फॉर्मेशन, निर्माण का कालखंड और स्वभाव) अलग हैं. इसलिए इन्हें आपस में नहीं जोड़ा जा सकता.” गहलोत कहते हैं. 26 जनवरी 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप का मैग्निट्यूड 7.7 मापा गया था. गहलोत कहते हैं कि इस विषय पर शोध किया जाना चाहिए कि क्या कच्छ क्षेत्र में अभी महसूस किए गए झटके उस भूकंप से जुड़े हैं.
भूकंप की माप
भूकंप को उसकी ताकत (मैग्निट्यूड) और तीव्रता (इंटेन्सिटी) से मापा जाता है. ताकत का मतलब भूकंप के वक्त टेक्टोनिक प्लेटों के विस्थापन से निकली ऊर्जा है और तीव्रता का अर्थ भूकंप के प्रभाव से है. भूकंप की ताकत को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है. हालांकि रिक्टर स्केल पर ताकत की कोई सीमा नहीं है लेकिन कोई भी भूकंप अब तक 9.5 से अधिक नहीं मापा गया जो 1960 में चिली में आया था. यह भी महत्वपूर्ण है कि भूकंप की ताकत को लघुगणक स्केल पर नापा जाता है. इसका अर्थ ये है कि रिक्टर स्केल में 7 मापा गया भूकंप 6 के मुकाबले 32 गुना अधिक ताकतवर होगा. और 8 मापा गया स्केल 6 के मुकाबले करीब 1000 गुना अधिक ताकतवर होगा.
दूसरी ओर भूकंप की तीव्रता यूरोपियन मेक्रोसाइज्मिक स्केल (ईएमएस) से नापी जाती है जो भूकंप के प्रभाव को 1 से 12 तक अलग-अलग स्तर पर मापता है. सबसे निचले स्तर को महसूस भी नहीं किया जा सकता और 12 तीव्रता का मतलब है कि क्षेत्र का परिदृश्य पूरी तरह बदल जाना. वैज्ञानिक समझाते हैं कि भूकंप की ताकत तो हर जगह एक ही रहती है लेकिन जैसे जैसे भूकंप के केंद्र से दूर होते जायेंगे उसकी तीव्रता कम होती जाती है. इसलिए अगर भुज में 2001 में आए भूकंप की ताकत दिल्ली में भी 7.7 ही थी लेकिन उसकी तीव्रता भुज के मुकाबले दिल्ली में नगण्य रही.
भूकंप से बचने के लिए क्या करें?
भूकंप विज्ञानी कहते हैं कि मेनशॉक्स यानि भूकंप के वक्त आने वाले झटके और आफ्टरशॉक्स यानि बाद में महसूस होने वाले झटके को लेकर तो काफी अध्ययन हो चुका है लेकिन अब भी किसी भूकंप के फोरशॉक्स के बारे में जानकारी बहुत सीमित रहती है. इसी वजह से किसी भी भूकंप के बाद भी अभी विज्ञान यह चेतावनी देने की स्थिति में नहीं है कि अब कोई बड़ा भूकंप आने वाला है या नहीं. देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान में वैज्ञानिक अजय पॉल कहते हैं कि तैयारी ही एकमात्र बचाव है.
"हमको ये मालूम है धरती में प्लेट्स के बीच ऊर्जा इकट्ठा हो रही है. हमको ये भी मालूम है कि ये भूकंप के रूप में निकलेगी. हमको ये पता है कि भूकंप को आने से कोई रोक नहीं सकता और हम उसका पूर्वानुमान नहीं कर सकते तो एकमात्र बचाव क्या है? वह ये कि भूकंप से पहले, भूकंप के समय और भूकंप के बाद के लिए हम नुकसान को कम करने के लिए क्या कदम उठाते हैं. हमारे सामने जापान की एक बहुत अच्छी मिसाल है जहां बहुत भूकंप आते हैं. वहां सारे भवन इसी हिसाब से बनाए जाते हैं और गंभीरता से पूरा प्रोटोकॉल फॉलो होता है और नियमित अंतराल में मॉक ड्रिल होती है. इसीलिए हर नागरिक जानता है कि भूकंप आने पर उसे क्या करना है."
सवाल है कि दिल्ली जैसे शहरों में क्या किया जा सकता है जहां पहले ही काफी बेतरतीब निर्माण हो चुका है और बहुत सारी इमारतें भूकंप नहीं झेल सकती. वैज्ञानिक बताते हैं कि भूकंपरोधी कदमों की परिभाषा बिल्कुल साफ है और उनका सख्ती से पालन होना चाहिए लेकिन अगर ऐसी इमारतें या अपार्टमेंट बन चुके हैं जो भूकंप के लिहाज से सुरक्षित नहीं हैं तो फिर उनमें रेट्रोफिटिंग तकनीक के जरिए कुछ सुरक्षा दी जा सकती है. दिल्ली-एनसीआर में भवनों से सुरक्षित निर्माण की गाइडलाइन के लिए राष्ट्रीय भूविज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने 2016 में सीइज्मिक हेजार्ड माइक्रोजोनेशन मैप व रिपोर्ट तैयार की थी जिसका पालन होना चाहिए.
"सरकार की वेबसाइट पर वह नक्शा और रिपोर्ट उपलब्ध है और सभी बिल्डरों के पास भी होना चाहिए लेकिन उसे लागू करना कोई नहीं चाहता. यह मैप बताता है कि दिल्ली में भी कौन से इलाके अधिक खतरनाक हैं और कहां नुकसान कम होगा. मिसाल के तौर पर यमुना के आसपास का इलाका अधिक खतरे में है. इसलिए आपको इन इलाकों में मकान बनाने हैं तो उसमें आपको अधिक मजबूती देनी होगी. इसके अलावा अलग अलग इलाकों में ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड के हिसाब से तय किए गए भवन निर्माण कोड का पालन होना चाहिए.” विनीत गहलोत बताते हैं.
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