कोरोना लॉकडाउन: उनका क्या जिनके लिए घर सुरक्षित नहीं?
१३ मई २०२०भारत में 25 मार्च को कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन लगने से पहले ही मुंबई के कई घरों में साफ सफाई और खाना बनाने का काम करने वाली पार्वती (बदला हुआ नाम) ने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करवाई थी. पुलिस ने उसके पति को धमकी देकर छोड़ दिया था. अपने दो बच्चों के साथ नाईगांव की झुग्गियों में रहने वाली पार्वती से जब उनका पति शराब पीकर मार-पीट करता था तो वह मदद के लिए पड़ोसियों को बुलाती थी, पर लॉकडाउन के बीच उसके पास ना तो पड़ोसियों का सहारा है, न ही काम पर जाने की राहत. वहीं दिल्ली के एक पॉश इलाके में रहने वाली मानसी (बदला हुआ नाम) जब पुणे से वापस अपने घर आई तब अंदाजा भी नहीं था कि अपना ही परिवार उस इंसान से शादी करने के लिए मजबूर करेगा जिसके खिलाफ मानसी ने छेड़खानी की शिकायत की थी.
कोरोना वायरस की वजह से देशभर में लगे लॉकडाउन ने भारत की 1.3 अरब आबादी को घर की चारदीवारी में कैद कर दिया है. शायद ज्यादातर लोगों के लिए इस महामारी से बचने के लिए घर में अपने परिवार के साथ रहना ही सबसे अच्छा उपाय है, लेकिन उन लोगों का क्या जिनका खुद का घर ही उनके लिए महफूज जगह नहीं? दुनिया भर में अलग अलग अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं को सबसे ज्यादा खतरा उनके आसपास के लोगों से होता है.
पार्वती और मानसी जैसी लाखों करोड़ों महिलाएं अपने ही घर में ऐसे लोगों के साथ बंद हैं जिनसे उन्हें खतरा है. 45 साल की पार्वती ने सालों से मुंबई की लोकल ट्रेन के जरिए कई किलोमीटर दूर वर्ली और बांद्रा जाकर काम करके जो आजादी हासिल की थी वो लॉकडाउन के दौरान आमदनी ना होने और बाहर निकल पाने की संभावना खत्म होने की वजह से अब गायब हो गई है. अब वो अपने उसी पति के सहारे है जिससे वो खुद को और अपने बच्चों को बचाना चाहती थी. हर शहर और गांव में लाखों महिलाओं को कोरोना वायरस ने घरों की ऐसी चारदीवारियों में बंद कर दिया है जहां उन्हें हर रोज शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है.
दोगुनी हुई घरेलू हिंसा की शिकायतें
पिछले डेढ़ महीने में राष्ट्रीय महिला आयोग एनसीडब्ल्यू के पास पहुंच रही घरेलू हिंसा और उत्पीड़न की शिकायतें लगभग दोगुनी हो गई है. आयोग ने लॉकडाउन के दौरान शिकायतों के लिए व्हाट्सएप नंबर 7217735372 शुरू किया था, जिसके ज़रिए सबसे ज्यादा शिकायतें मिली. आयोग के मुताबिक तालाबंदी से पहले जहां घरेलू हिंसा की एक महीने में 123 शिकायतें मिली थीं वहीं लॉकडाउन के दौरान घरेलू उत्पीड़न के सिर्फ अप्रैल के महीने में 239 मामले दर्ज कराए गए. कहीं किसी लड़की को शादी के लिए परिवार वालों के द्वारा मजबूर किए जाने की शिकायत है, तो कहीं पति और ससुराल वालों के द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न की आप-बीती. और ये सिर्फ वो केस हैं जो आयोग तक शिकायत के रूप में पहुंच रहे हैं.
भारत के राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक देश में हर तीसरी महिला किसी ना किसी तरह से घरेलू हिंसा की शिकार रह चुकी है. ये पूरे भारत में सैंपल परिवारों का कई चरणों में होने वाला सर्वे है. 1992 में शुरुआत के बाद अब तक चार सर्वे हो चुके हैं और पांचवां चल रहा है. सर्वे से सरकार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी आंकड़े मिलते हैं, जिनमें प्रजनन क्षमता से लेकर बच्चों का स्वास्थ्य, बाल मृत्यु दर, पोषण और परिवार नियोजन से लेकर घरेलू हिंसा जैसे मुद्दे शामिल हैं. 2015-16 के बीच हुए 6 लाख परिवारों में करीब 7 लाख महिलाओं के बीच कराए गए सर्वे में के अनुसार 31 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं. 4 फीसदी को तो गर्भ के दौरान भी हिंसा का सामना करना पड़ा है. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा कई सालों से सरकारी नीतियों के एजेंडे में रहा है. सरकारी आंकड़ों से एक बात साबित होती है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा एक वास्तविकता है और ज्यादातर मामलों में इसकी शिकायत भी नहीं होती.
लॉकडाउन की शुरुआत से ही राष्ट्रीय महिला आयोग के पास आई शिकायतों में खास बढ़त उन शिकायतों में है जिनमें महिलाओं ने प्रति भेदभाव और परिवार में बराबर सम्मान ना मिलने की शिकायत की है. पहले 25 दिनों में 117 महिलाओं ने भेदभाव का आरोप लगाया, वहीं, लॉकडाउन के दौरान 166 महिलाओं ने समाज या परिवार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिलाने की बात कही. आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा का कहना है कि बढ़ती शिकायतों का कारण ये है कि लॉकडाउन ने पीड़ित और अपराधी को एक साथ एक ही घर में बंद कर दिया है.
कई संस्थाएं कर रही हैं मदद
घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों में मदद के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग के अलावा भी कई संस्थाएं सामने आ रही हैं. इंडियन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन वकीलों की एक संस्था है जो लॉकडाउन के बीच घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की हेल्पलाइन के जरिए मदद कर रही है. हेल्पलाइन शुरु होने के कुछ ही वक्त के अंदर ही उसके पास मदद के लिए लगभग हर रोज एक नया केस आ रहा है. संस्थापक और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अनस तनवीर का कहना है कि अगर एक नई संस्था होने के बावजूद हमारे पास ही हर रोज एक नई कॉल आ रही है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंसा के मामले कितने बढ़ गए हैं.
इंडियन सिविल लिबर्टीज यूनियन की कम्यूनिकेशन हेड सनोबर फातिमा का कहना है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को घर से बाहर निकलकर किसी से बात करने या अपने लिए सेफ स्पेस बनाने का मौका ना मिलना सबसे बड़ी समस्या है. ऐसे में कोरोना महामारी के बीच बढ़ता तनाव, नौकरी और वित्तीय परेशानियां और अब शराब की दुकानें खुल जाना भी हिंसा के मामलों के बढ़ने का कारण बन सकती हैं. सनोबर फातिमा का मानना है कि इस वक्त पीड़ितों को कोई अपनी बात सुनने और समझने के लिए चाहिए जिससे चुप्पी की कड़ी को तोड़ा जा सके.
समाजवादी पार्टी की रूही सिंह की शिकायत है कि घरेलू हिंसा के मामलों को लॉकडाउन के दौरान कम प्राथमिकता मिल रही है. उनकी मांग है, "बढ़ते मामलों से निपटने के लिए ग्राउंड लेवल पर बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है. इस वक्त 1090 की तर्ज पर एक कॉल सेंटर होना चाहिए." उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान 1090 नंबर पर एक हेल्पलाइन खोली गई थी.
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