कोरोना से बचाने के उपायों पर जर्मनी में गुस्सा क्यों
४ जनवरी २०२२बीते कुछ हफ्तों में जर्मनी का उत्तर पूर्वी राज्य मैक्लेनबुर्ग फोरपोमर्न ने विरोध प्रदर्शनों की आंच सबसे ज्यादा सहन की है. सोमवार को भी पुलिस के मुताबिक राज्य के कम से कम 20 शहरों या कस्बों में 10 हजार से ज्यादा लोग विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरे. सैक्सनी अनहाल्ट राज्य के माग्देबुर्ग में तो प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ झड़प भी हुई. प्रदर्शन कर रहे लोगों ने घेराबंदी को तोड़ा और पुलिस अधिकारियों पर बोतलें फेंकी. हालांकि किसी पुलिस अधिकारी के घायल होने की खबर नहीं है. माग्देबुर्ग में करीब 2,500 लोग विरोध करने निकले थे.
जर्मन कानून के तहत विरोध प्रदर्शन करने से पहले अधिकारियों को इसकी पूरी जानकारी देनी होती है. महामारी के खिलाफ होने वाले ज्यादातर प्रदर्शनों की जानकारी अधिकारियों को पहले से दी जा रही है लेकिन बहुत से ऐसे प्रदर्शन भी हो रहे हैं जिनके बारे में पहले से नहीं बताया जाता. जाहिर है कि ये प्रदर्शन गैरकानूनी है.
पुलिस पर हमला
थुरिंजिया राज्य में पुलिस का कहना है कि 16,000 लोगों ने गैरकानूनी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. लिष्टेनश्टाइन शहर में तो प्रदर्शनकारियों के हमले में 14 अधिकारी घायल भी हुए हैं. पुलिस ने उन पर पेपर स्प्रे का इस्तेमाल किया. हिंसा की घटनाओं के बाद 40 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ है.
इसी तरह रोस्टॉक में कई हजार लोगों ने सिटी सेंटर में मार्च किया. इस मार्च की मंजूरी तो दी गई थी लेकिन लोगों के लिए चेहरे पर मास्क लगाना जरूरी था. विरोध में शामिल बहुत से लोगों ने मास्क नहीं लगाया. इससे पहले हुए प्रदर्शनों के दौरान लोग तय रास्ते को छोड़ दूसरे रास्तों पर भी निकल गए. रोस्टॉक की पुलिस ने इस बार सख्ती की थी और मार्च के लिए तय रास्ते की घेरेबंदी कर दी थी ताकि ये लोग दूसरी सड़कों पर ना जाएं.
बवेरिया राज्य के न्यूरेमबर्ग में भी बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ. यहां 4,200 से ज्यादा लोगों ने मार्च किया हालांकि पुलिस को इससे आधी संख्या में ही लोगों के मार्च की उम्मीद थी. बवेरिया के आंसबाख और बायरॉइथ समेत कई और शहरों में भी प्रदर्शन हुए हैं जिनमें कई गैरकानूनी थे. कई शहरों में सोशल मीडिया के जरिए विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया और उनमें बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी रही. बर्लिन में तो एक टीवी चैनल के दफ्तर के सामने ही लोग प्रदर्शन करने जमा हो गए. ये लोग प्रेस पर झूठा होने का आरोप भी लगा रहे हैं.
नाराजगी की वजह
प्रदर्शन कर रहे लोग मुख्य रूप से कोरोना महामारी से बचने के लिए लगाई जा रही पाबंदियो के खिलाफ हैं. उन्हें लगता है कि उनकी आजादी में खलल डाली जा रही है. वो सरकार के आंकड़ों पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं और बहुत से लोग टीका लगवाने के लिए भी तैयार नहीं है. इस बीच कोरोना के संक्रमण की बढ़ती तादाद को देखते हुए सरकार और ज्यादा सक्रियता से टीका लगाने की कोशिश में जुटी है. जिन लोगों ने टीका नहीं लगवाया है उनके लिए तमाम दुकानों, रेस्तराओं और मनोरंजन की जगहों के दरवाजे बंद हो गए हैं. ऐसे में इन लोगों की नाराजगी और ज्यादा बढ़ गई है.
वैक्सीन का विरोध
तमाम कोशिशों के बाद भी जर्मनी में अब तक महज 71 फीसदी से कुछ ज्यादा लोगों को ही टीका लग पाया है. इनमें से ज्यादातर को दूसरी डोज दी जा चुकी है और उन्हें अब बूस्टर डोज दी जा रही है. कुल आबादी के कम से कम 25.8 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने कोई वैक्सीन नहीं ली है. इनमें 5 साल से छोटी उम्र के बच्चे भी शामिल हैं जिनके लिए अभी टीके की मंजूरी नहीं मिली है. जर्मन सरकार का नीति आयोग देश की कुल आबादी के अनिवार्य टीकाकरण के पक्ष में है. स्वास्थ्यकर्मियों के लिए तो इसे पहले ही जरूरी कर दिया गया है. टीके का विरोध करने वाले इस आशंका से भी काफी नाराज हैं.
एनआर/आरपी (डीपीए, एएफपी)