कोरोना से बचे या नहीं लेकिन प्राकृतिक इलाज का बाजार गर्म है
२९ अक्टूबर २०२०नई दिल्ली में रहने वाली गृहिणी शशि कोविड-19 "इम्युनिटी पाउडर" का एक बड़ा चम्मच जग भर पानी में घोल कर हर सुबह अपने परिवार को पिलाती हैं. वो भारत के उन लोगों की बढ़ती जमात में शामिल हैं जो मानते हैं कि पारंपरिक नुस्खे उन्हें महामारी से बचा लेंगे.
भारत में कोरोना पीड़ितों की संख्या 80 लाख को पार कर गई और इस मामले में उससे आगे सिर्फ अमेरिका है. कोरोना की चपेट में आकर मरने वालों की तादाद 1,20,000 से ज्यादा है. इस बीच बड़ी संख्या में लोग प्राचीन "आयुर्वेदिक" दवाओं का रुख कर रहे हैं. आधुनिक भारत की कंपनियां लोगों की वैकल्पिक तरीकों की मांग पूरी करने में जुटी हुई हैं. हल्दी वाला दूध और तुलसी की बूंदों जैसे घरेलू नुस्खे आकर्षक पैकेटों में बिक्री के लिए स्टोर की शेल्फ तक पहुंच रहे हैं.
50 साल की शशी ने टीवी पर एक हर्बल ड्रिंक का विज्ञापन देखा जो आयुर्वेद और योग के दिग्गज बाबा रामदेव की कंपनी बेच रही है. उनका कहना है, "यह मेरे परिवार को कोरोनावायर से सुरक्षित रख सकता है, मैंने सोचा कि टीवी पर दिखा रहे हैं, तो यह अच्छा ही होगा." महामारी ने भारत की पहले से ही कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में लोगों की व्याकुलता बढ़ा दी है. जानकारों का मानना है कि कम टेस्ट और कम रिपोर्ट होने के कारण भारत में असल मरीजों और बीमारी से मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से बहुत ज्यादा हो सकती है.
आयुर्वेदिक दवाएं कोरोना को रोकने में कितनी कारगर हैं इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण फिलहाल नहीं है. हालांकि आयुर्वेद का कारोबार महामारी के पहले ही काफी बड़ा हो चुका है. लोग मान रहे हैं कि प्राकृतिक इलाज कैंसर से लेकर सर्दी जुकाम तक सब ठीक कर सकता है. भारतीय कारोबार संघ सीआईआई के मुताबिक इस समय यह उद्योग 10 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है.
आयुर्वेद उपचार बताने वाली भास्वती भट्टाचार्या का कहना है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन और दूसरे पारंपरिक इलाजों की कमी ने लोगों को प्राकृतिक उपचारों की तरफ जाने पर मजबूर किया है. भट्टाचार्या ने कहा, "आयुर्वेद 5,000 साल पहले लिखा गया और उसके कम से कम दो गुना समय पहले से हमारे आस पास मौजूद है. इसने प्लेग से लेकर चेचक और दूसरी कई महामारियां देखी हैं, इसलिए लोग कह रहे हैं - चलो देखते हैं, शायद यह काम कर जाए."
आयुर्वेद यानी "जीवन का विज्ञान" और दूसरे इलाजों को सरकार भी खूब बढ़ावा दे रही है. 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार में इसके लिए बकायदा अलग से आयुष मंत्रालय का गठन किया गया. आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्धा, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी को शामिल किया गया है. जनवरी में आयुष मंत्रालय ने पारंपरिक इलाजों को कोरोना वायरस से लड़ने का उपाय बताया. हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने बिना लक्षण वाले कोविड के हल्के संक्रमण से पीड़ितों का इलाज आयुर्वेद और योग से करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए.
केमिस्ट की दुकानों में अब आयुर्वेद की दवाएं अंग्रेजी दवाओं के साथ ही प्रमुखता से रखी जा रही हैं. दिल्ली में दूध बेचने वाली मदर डेयरी का कहना है कि उसके नए प्रॉडक्ट बच्चों के लिए "हल्दी वाला दूध" को भरपूर खरीदार मिले हैं. मदर डेयरी के प्रॉडक्ट चीफ संजय शर्मा ने बताया, "मांग बहुत, बहुत ज्यादा है तो हम इसके प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन को बढ़ा रहे हैं."
संजय शर्मा कहते हैं, "सेहत और प्रतिरक्षक क्षमता को बढ़ाने वाले सामान एक नई घटना हैं. यह एक मौका है ग्राहकों को सावधानी वाली स्वास्थ्यवर्धक चीजें किफायती दामों पर मुहैया कराने का."
हर्बल दवाइयां और क्रीम बनाने वाली प्रमुख कंपनी हिमालया ड्रग कंपनी के सीईओ फिलिप हेडन भी मान रहे हैं कि महामारी से पहले की तुलना में अब इन चीजों की मांग 10 गुना बढ़ गई है. हालांकि वैकल्पिक इलाज की भूख ने विवादित और छद्मविज्ञानी दावों का भी अंबार लगा दिया है जो कोविड-19 का "इलाज" करने की बात कह रहे हैं.
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के कई नेता गाय के गोबर और गौमूत्र से कोरोना वायरस का इलाज करने की हिमायत कर रहे हैं. जून में आयुष मंत्रालय ने योग गुरु रामदेव को "कोरोनिल" नाम की हर्बल दवा की मार्केटिंग बंद करने का आदेश दिया. स्वास्थ्य मंत्रील खुद भी एक डॉक्टर रहे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी उनसे कहा कि वो कोरोना वायरस के इलाज में आयुर्वेद और योग के असरदार होने का सबूत दें. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में कम्युनिटी मेडिसिन प्रोफेसर आनंद कृष्णन कहते हैं, "इनमें से कोई भी कोविड-19 से आपका खास बचाव नहीं कर सकता. लोगों के लिए जरूरी यह है कि वो सामाजिक दूरी को अपनाएं, मास्क पहनें और हाथ धोएं."
एनआर/आईबी (एएफपी)
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