अरुणाचल के युवाओं को चीनी सेना में भर्ती करने की कोशिश
१३ अगस्त २०२१भारत में सत्ता पक्ष और विपक्ष जहां पेगासस जासूसी विवाद, कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन, मुद्रास्फीति और देश की अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर एक-दूसरे से उलझे हैं, वहीं पूर्वोत्तर में तिब्बत से लगी सीमा पर सब कुछ सामान्य नहीं है. अरुणाचल की 1126 किमी लंबी सीमा तिब्बत से सटी है. चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है और राज्य को भारत के हिस्से के तौर पर उसने कभी मान्यता नहीं दी है.
बीते साल गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद से ही चीन ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमा पर अपनी गतिविधियां असामान्य रूप से बढ़ा दी हैं. बांध से लेकर हाइवे और रेलवे लाइन का निर्माण हो या फिर भारतीय सीमा के भीतर से पांच युवकों के अपहरण का मामला, चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के भारतीय सीमा में घुसपैठ की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. अब यह बात सामने आई है कि चीन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं की भर्ती पीएलए में करने का प्रयास कर रहा है. इसके बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया है ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके.
ताजा मामला
कांग्रेस के पूर्व सांसद और फिलहाल पासीघाट के विधायक निनोंग ईरिंग ने दावा किया है कि चीन सरकार अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के युवकों की भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है. साथ ही राज्य से सटे तिब्बत के इलाकों से भी भर्तियां की जा रही हैं. सोशल मीडिया पर अपने एक वीडियो संदेश में कांग्रेस विधायक ने कहा है, "अब तक मिली सूचना के मुताबिक पीएलए तिब्बत के अलावा अरुणाचल प्रदेश के युवकों को भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है. यह बेहद गंभीर मामला है. ईरिंग ने केंद्रीय गृह और रक्षा मंत्रालय से इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जरूरी कदम उठाने की अपील की है. कांग्रेस नेता कहते हैं, "तिब्बत की सीमा से सटे इलाकों में रहने वाली निशी, आदि, मिशिमी और ईदू जनजातियों और चीन की लोबा जनजाति के बीच काफी समानताएं हैं. उनकी बोली, रहन-सहन और पहनावा करीब एक जैसा है."
ईरिंग की दलील है कि चीन जिस तरह सीमा से सटे बीसा, गोहलिंग और अनिनी इलाके में मकानों और सड़कों का निर्माण कर रहा है उससे अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के प्रभावित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. कांग्रेस नेता ने इस मुद्दे पर विदेश मंत्रालय को पत्र लिखने की भी बात कही है. लेकिन इलाके में तैनात सुरक्षा एजेंसियों या केंद्र सरकार ने अब तक ईरिंग के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
बढ़ती गतिविधियां
चीन बीते साल से ही अरुणाचल से लगे सीमावर्ती इलाके में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है. उसने सीमा से 20 किमी भीतर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से करीब सीमा तक नई तेज गति की ट्रेन भी शुरू हो गई है. उससे पहले उसने एक हाइवे का निर्माण कार्य भी पूरा किया था. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बीते एक साल के दौरान चीनी सैनिकों के सीमा पार करने की कई घटनाओं की सूचना मिली है. वह इलाका इतना दुर्गम है कि हर जगह सेना की तैनाती संभव नहीं है और सूचनाएं भी देरी से राजधानी तक पहुंचती हैं. हाल में भारत ने राज्य के पूर्वी जिले अंजाव में सेना की अतिरिक्त बटालियन भेजी है.
अंजाव के एक सरकारी अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "सीमा पार चीनी सेना की तैनाती जरूर बढ़ी है. लेकिन उनके सीमा पार करने की कोई पुष्ट रिपोर्ट नहीं मिली है." यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश ही केंद्र था. सुरक्षा विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि अरुणाचल अगला गलवान साबित हो सकता है. चीन बार-बार कहता रहा है कि वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं मानता. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने हाल में कहा था, "भारत से सटी पूरी सीमा पर हमारा रवैया एकदम स्पष्ट है. चीनी इलाके में अवैध रूप से बसाए गए अरुणाचल प्रदेश को हमने कभी मान्यता नहीं दी है."
भारतीय युवकों का अपहरण
बीते साल चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के काफी भीतर घुसकर अरुणाचल के पांच युवकों का अपहरण कर लिया था. कांग्रेस नेता ईरिंग ने ही सबसे पहले इस मामले की जानकारी दी थी. उसके बाद चीन ने पहले तो इससे इंकार किया. लेकिन बाद में दबाव बढ़ने पर उसने 12 दिनों बाद उन युवकों को छोड़ दिया था. स्थानीय लोगों का दावा है कि अपहरण की घटनाएं पहले भी होती रही हैं. कुछ महीने पहले इसी सीमा पर चीन की ओर से कई गांव बसाने की खबरें भी सामने आई थीं. स्थानीय लोगों का दावा है कि वह गांव भारतीय सीमा के भीतर बसाए गए हैं. लेकिन केंद्र सरकार ने न तो इसका खंडन किया था और न ही पुष्टि की थी.
दरअसल, इलाके में भारत जहां मैकमोहन लाइन को सीमा मानता है वहीं चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को. बीजेपी सांसद गाओ कहते हैं, "राज्य से सटी सीमा को सही तरीके से चिन्हित करना ही इस समस्या का एकमात्र और स्थायी समाधान है."
आरोप-प्रत्यारोप
सीमा पर चीनी सेना के बार-बार होने वाले अतिक्रमण जैसी गंभीर समस्या को सुलझाने की बजाय बीजेपी और कांग्रेस आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हैं. बीजेपी सांसद तापिर गाओ की दलील है कि यह समस्या केंद्र की पूर्व कांग्रेस सरकार की देन है. चीन सीमावर्ती इलाकों में अस्सी के दशक से ही सड़कें बना रहा है. राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में ही चीन ने तवांग में सुमदोरोंग चू घाटी पर कब्जा किया था. सरकार ने सीमा तक सड़क बनाने पर कोई ध्यान नहीं दिया. नतीजतन तीन-चार किमी का इलाका बफर जोन बन गया जिस पर बाद में चीन ने कब्जा कर लिया.
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि गलवान गाटी के बाद से ही चीन ने पूर्वी और पूर्वोत्तर सीमा पर ध्यान केंद्रित किया है. भारतीय सीमा में चीनी सीमा की बढ़ती घुसपैठ और सीमा से सटे इलाके में आधारभूत परियोजनाओं के काम में तेजी इसका सबूत है. इसके अलावा भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए वह भूटान की बांह भी उमेठता रहा है. कोलकाता में एक सुरक्षा विशेषज्ञ सुरेश कुमार मजुमदार कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस समस्या को गंभीरता से लेकर इसके स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए. इसके लिए सीमावर्ती इलाकों में विकास और आधारभूत परियोजनाओं को लागू करना जरूरी है ताकि इलाके के लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके."